Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड-10 संगीत

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड-10 संगीत

मेरे सोचते ही एक शानदार हवाइन गिटार मेरे हाथ मे था. मेने मन को शांत किया और और बचपन के उस गाने को मन ही मन याद किया... उसके नोटस अब भी मुझे याद है...और मेरी उगलियां गिटार पर थिरक उठी... कंही कोइ गलती नही.  इतना मधुर गिटार मे बजा सकता हू यह पहली बार मुझे पता लगा. मै खुशी से झूम उठा... एक के बाद एक मेने बहुत सी धुने बजाइ...सब शान दार रहा.
सच, कल्पना की यंहा कोइ सीमा नही थी अब मै महशूर रोक बेंड सितारों के साथ स्टेज शो दे रहा था ...लाखों की भीड से भरा हुआ स्टेडियम. मेने इस बार पृथ्वी के जाने माने संगीतकारों के साथ शानदार प्रस्तुती दी मेरे धुन पर थिरकते झूमते दर्शकों का सैलाब...
मुझे लोग छूना चाह  रहे है. Once more…once more  की गूंजती अवाजे. मै देर तक संगीत के मजे लेता रहा. एसी शानदार प्रस्तुती ने मुझे खुशी से भाव विभोर कर दिया.
अब मेने जाना की पैदाइशी गुण जैसा कुछ नही होता. ये तो हमारे अदंर का भय होता है जो हमे वो नही बनने देता जो हम बनना चाहते है.
किशन ने सच कहा यंहा कुछ भी सभंव है. यंहा शरीर बाधा नही है अब मेरे अदंर शक की कोइ गुजाइश नही थी. जो मे सोच सकता था, उसे कर भी सकता था.  
अब मे चाहू तो एक अच्छा डांसर भी बन सकता था. क्योंकी शरीर के लचीले पन की कोइ बंदिश ही नही थी. अगर मे डांस की कलपना कर सकता था तो उसे कर भी कर सकता था. धरती पर अच्छा डांसर बनने के लिये डांसर जी तोड मेहनत करते है, शरीर का लचीला बनाये रखने के लिये ना जाने कोन कोन सी कसरते करते है. उनके गुरू भी मन और शरीर का सही तालमेल बनवाने के लिये उंनसे ना जाने क्या क्या कराते है
यंहा एसा कुछ नही करना था. इस चेतना को भौतिक शरीर की सीमाओं का बाधा नही थी. नाही धरती के गुरूत्वाकर्षण कोइ बाधा था.
अब मुझे असीम कल्पना शक्ति का आभास हो गया था. जिस तरह से मेने अभी अभी संगीतकार बनकर स्टेज प्रसतुती दी थी. जिस तरह से किसी जादूगर की तरह मेने डिब्बे से पंक्षीयों को पैदा किया था उसके बाद मुझे अब कोइ शक नही रहा की इस आयाम मे कुछ भी एसा नही है जो संभव ना हो, अगर आप किसी की कल्पना कर सकते है तो उसे साकार भी कर सकते है.  
सब मेरे उपर है की अपने लिये कोन सी सीमाओं को बनाता हू. अपने लिये कोन से नियम निर्धारित करता हू. यंहा तक की धरती से अलग मै एक नई दुनिया बना सकता था जिसके नियम धरती से पूरी तरह अलग हो सकते थे. इस आयाम मे जो कुछ भी था उसका मे नियंता था.
एक के बाद एक मै अपनी कल्पनाओं को साकार करता रहा. मै अपनी वासनाओं की तृप्ती मे डूबता चला गया. लगा जेसे यह एक भवंर है जिससे बाहर निकलने का  मन नही होगा.
मै सारा संसार खुद रच सकता था. मुझे इश्वजरूरत्र या उसके बनाये स6सार की क्या जरूरत मै अपने संसार का खुद ही इश्वर था.
मै कितना गलत था कुछ ही समय बाद मुझे उस सब से मन भर गया. धरती पर रोक टोक बहुत थी तो मन ललचाता था. यंहा एसी कोइ बात नही थी. मै किसी भी हद तक किसी आनंद को ले सकता था. एक हद के आगे जेसे सब थम सा गया...लगा अब इससे आगे क्या?
मेरा हाल उस बच्चे की तरह हो गया जो किसी खिलोने के लिये मचल उठता है.  खिलोने को पाकर कितना खुश हो जाता है. पर सोचो उस बच्चे का क्या हाल होगा जिसे अचानक किसी खिलोने के विशाल माल मे भेज दिया और कहा गया की सब उसका है.
एसे मे मुझे पूरा विश्वास है वो शायद ही किसी खिलोने का हाथ भी लगायेगा. जेसे ही उसे मालुम होगा की सब उसका है वो उस सब के प्रति उदासीन हो जायेगा.
एसा ही कुछ हाल अब मेरा हो रहा है. जिस कलपना और सृजन शक्ति को पाकर मै इतना खुश था अब मजा नही आ रहा है. संगीत भी अब मुझे नही लुभा पा रहा है. धरती पर जिसमे महारत हासिल करने के लिये बैचेन था और जिसे हासिल नही कर पाने के कारण  मुझे सारी जिदंगी अफसोस रहा. अब वो मुझे नही लुभा रहा. 
मुझे यह भी समझ आ गया की सुख का दुख के बिना कोइ आसतित्व नही है. यह भी समझ आ गया की सुख से भी एक सीमा के बाद वितृष्णा होने लगती है. क्योंकी एसा ही अब मेरे साथ हो रहा था.
लग रहा है जेसे सब से मन भर गया है.  मेरी कल्पनाओं मे मेरे द्वारा धरती पर बिताई यादे सबसे महत्व पूर्ण थी. हर कल्पना का अधार धरती के अनुभव थे. चाहकर भी मे उससे  हटकर नही सोच पाया.
यह भी समझ आ गया की भौतिक नियम बदलने से मात्र समस्याओं के स्वरूप बदलता है,  समस्याओं को कभी खत्म नही कर सकते
अब मुझे समझ आ रहा है की क्यों हमे पिछले जन्म का कुछ याद नही रहता. यह शायद उस इश्वरीय व्यवस्था का अंग  है जिससे आप नये जीवन मे आपको उदासीनता ना घेरे. एसा ना लगे ..अरे यह सब तो मेने पहले किया हुआ है. एसे में प्रारब्ध एक दिशा द्योतक बन कर रह जाता है. जो कर्म के  चुनाव करने मे आपकी मदद करता है.
मुझे अब रह रह कर किशन की याद आ रही है. मै उसे बताना चाहता था की अपने आपको  नई उर्जा से भरपूर करने के लिये सुख और आनंद बस एक पडाव भर है.




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