Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही  

मुझे समझ आ गया की अब मै इस दुनिया का हिस्सा नही हू मुझे अब आगे बढना है
मैने किशन की तरफ मुडकर कहा की अब हमे यंहा से चलना चाहिये
जैसी आपकी मर्जी
पर वापस केसे जायेगे और कंहा जायेगे मेने एक नया प्रशन किशन की तरफ दागा
यह आप पर निर्भर की कंहा जाना चाहते हो...
इस दुनिया के इलावा मुझे तो बस वो कमरा ही अपना लगता है पर मुझे वंहा जाने का रास्ता तक नही मालुम जिन सीढीयों से हम उतर कर यंहा आये थे उनका कोइ अता-पता नही ... किशन हम अब वापस केसे जायेगे क्या वापस जाने के लिये हमे सीढीयों की जरूरत नही होगी.
आप तो एसे बोल रहे हो जेसे उन सीढीयों का कोइ भौतिक स्वरूप था. और वो असली थी. वो  सीढीयां तो सांकेतिक थी. तुम जब चाहो उन्हे दुबारा बना सकते हो.
उसे बनाने के लिये मै क्या करू...मेने उलझन भरे भाव से उसे देखा.
आसान है  तुम्हे बस उस बात पर फोकस करना है
मै उसकी बात मान कर फोकस करने लगा की जिस जगह से आया था उस कमरे मे मुझे वापस जाना है. मै एसी सीढीयों की कल्पना गहराइ से करने लगा जो उस कमरे तक जाती हो. इस बारे मे गहराइ से सोचने लगा. मेरे चारो और धुंध के बादल घिरने लगे.... मेरे सामने सीढीयां नजर आने लगी... हम दोनों उस पर चलने लगे.
 हम वापस कमरे मे थे दुधिया सफेद दिवारों वाला दाग रहित कमरा. इस बार उस मे कोइ सीढी  नही थी जिस सीढीसे हम आये थे उसका भी कंही  नामोनिशान नही था. हां सामने एक दरवाजा दिखाई दे रहा है मेने देखा उसकी किनारों से आती हलकी चमक जेसे उस दरवाजे की पीछे कोइ बहुत चमकदार रोशनी हो.
मेने प्रशन वाचक दृष्टी से किशन की तरफ देखा.
इस दरवाजे की दूसरी तरफ इश्वर है. उसने मुस्कराते हुये कहा.
क्या यह सच है!... मै उसकी बात सुनकर विस्मृत रह गया. मुझे विशवास ही नही हुआ की मै इश्वर के इतने करीब हू. दरवाजा खोलते ही उनके दर्शन हो जायेगे. मे एसा सोचते हुये रोमांच का अनुभव करने लगा. मेरे लिये यह एक अनमोल क्षण था.
इस दरवाजे के पीछे सच मे इश्वर है ना. मेने दुबारा उससे कंफर्म करने के लिये पूछा...
हां भाई हां
पर यह दरवाजा बंद क्यों है ?
यह दरवाजा भी असली नही है इसे तुम्हारे चेतन मन ने ही बनाया है.  दरवाजा तो बस दृश्य भर है.
हां मे समझ गया जेसे मेने कमरे को बनाया है आपको बुलाया है. पर यह दरवाजा बंद क्यों है?
यह इसलिये की अभी तुम्हारा इश्वर से मिलने का समय नही हुआ.  
समय नही हुआ? तुम्हारे कहने का क्या मतलब है. मेने याचना से भरे हुये उसे देखा.  धरती पर सारी जिंदगी इस उम्मीद मे गुजार दी की मरने के बाद इश्वर के दर्शन हो जायेगे, अब वो उस दरवाजे के पार है और तुम बोल रहे की उनसे मिलने का अभी समय नही आया. ....
मै बैचेनी से भर उठा. मन कर रहा है की आगे बढ कर  दरवाजा खोल दू. पर हिम्मत नही हो रही है. मै अजीब कशमकश मे पड गया. अदंर किसी प्रकार का भय नही है, बस एक उलझन है.
किशन मे मर चुका हू अब ओर क्या होना बाकी रह गया है की जिसके बाद मेरी उनसे मुलाकात होगी. वो मुझे क्यों नही देखना चाहते ...मेने एसा क्या गलत कर दिया.
यह गलत और सही का सवाल नही है. यह पूरी तरह समझने की बात है.
मै उसकी बात सुनकर उदास हो गया. दरवाजे छनकर आती रोशनी भी अब कम होती जा रही है.
मुझे किशन की बात पर अब गुस्सा आ रहा है, वो चाहता तो मै इश्वर के दर्शन कर सकता था. मै इश्वर से मिलते मिलते रह गया. मै गुस्से से बिफर उठा. मै मर चुका हू
तो?
क्या मरने के बाद इश्वर नही मिलता. वो ही तो हमारे पिछले जन्म का लेखा जोखा देखकर हमारी नियती तय करता है.
ओह तो तुम इस के एक्सपर्ट हो , किशन ने मुझे घूरते हुये कहा.
मै एक्सपर्ट तो नही हू
फिर तुम केसे कह सकते हो की मरने के तुरंत बाद इश्वर से मुलाकात होती है.
मै कभी दरवाजे को तो कभी किशन को देख रहा हू. और पूरी तरह कनफ्यूस हो गया हू.
तुम्हारी तरह सब सोचते है की मरने के बाद इश्वर से मुलाकात होती है और अगर अच्छे कर्म हुये तो स्वर्ग मिलता है.
पर क्या कभी तुमने सोचा है की स्वर्ग है क्या?
मै समझ गया किशन मुझे बांतो मे उलझा रहा है. उसकी बात का मुझे जबाब देना था.
स्वर्ग एक एसी अच्छी जगह है जिसे आप चाहकर भी छोडना नही चाहते. मेने भी उसकी बात का फिलोस्फीकल जबाब दिया.
ओह तुम्हे लगता है स्वर्ग कोइ सोने की नगरी है. तुम गेट से अदंर जाओगे ...इश्वर को हेलो बोलोगे.... उसके बाद तुम उसके महल में चारो तरफ फेली शान और शोकत को निहारोगे. और एशो आराम का मजा लोगे और एयाशी मे डूब जाओगे.
पर यह सब तो तुम अपनी ही चेतना द्वारा कभी भी बना सकते हो उसके लिये इश्वर की तुम्हे जरूरत क्यों है?
अब तुम अचानक स्वर्ग की बात क्यों कर रहे हो. याद है जब मेने तुम्हे पूछा था की क्या यह स्वर्ग है तो तुमने कोइ जबाब नही दिया था.
तुम इसी बात से चिंतित हो ना की तुम्हे देर क्यों लग रही है.
नही, मे इस बात से  चिंता है की इश्वर से मै क्यों नही  मिल सकता!
नही किशोर तुम्हे इस बात का गम है की इश्वर इसी वक्त तुम्हे क्यों नही मिले. तुम यह  क्यों नही समझते की इस आयाम में तुम्हारा नया जन्म हुआ है.
तो क्या हुआ ?
अरे धरती पर जन्म लेते ही क्या तुम्हे सब कुछ समझ आ गया था. उस समय तो तुम मात्र एक एसे मांसपिंड थे जो सिर्फ रोना, खाना, हगना और सोना जानता था. धीरे धीरे समय के साथ तुम सीखते गये और समझते गये.
इसका मतलब धर्म मे लिखा सब गलत है.
यह मेने कब कहा
तो?
मेरा बस इतना कहना है की यंहा अभी तुम्हारा जन्म हुआ है. यंहा तुम्हे अभी बहुत कुछ सीखना और समझना है.... तुम अपने को भले ही समझदार समझते हो. पर यंहा तुम्हे अभी बहुत कुछ  सीखना और समझना है.
वेसे अब तक की तुम्हारी प्रोगरेस से मे बहुत प्रभावित हू.
तो तुम बोल रहे हो की मुझे इंतिजार करना होगा...
ओके मुझे अब थोडा समझाने दो. तुम्हारा चेतना का वजूद अनंत काल के लिये है. हम घंटे और मिनिट की बात नही कर रहे है. ना ही हम दिन, हफ्ते और महिनों या सालों की बात कर रहे है.
अरे सालों की बात तो छोडो यंहा शताबदीयों का भी कोइ मतलब नही है. यंहा समय के मायने अलग है.
किशोर स्वर्ग और नर्क से परे तुम्हे अभी बहुत कुछ सीखना और समझना है तुम्हे एक बार में एक कदम उठाते हुये आगे बढना है. बिना यह सोचे की उसमे कितना समय लगने वाला है.
अगर मे इंतिजार ना करना चाहू... अजीब झमेला है यह,  मै मर चुका हू पर इश्वर को नही देख सकता. और कितने बंधन है यंहा
बस इतना समझ लो जब तक इश्वर नही चाहेगा तुम उनसे नही मिल सकते. यह दरवाजा बंद रहेगा.
मै बंधनो की चिंता क्यो ना करू
इसलिये क्योंकी तुम अभी यह सब नही समझ पाओगे, अगर मे दो साल के बच्चे को बोलू की प्रमाणुओं को बिखंडन करने की तुम्हे इजाजत नही है तो उसे क्या समझ आयेगा?
उसके लाजिक अजीब होते हुये भी मेने बहस का अंत करते हुये पूछा ..क्या मुझे कोइ परिक्षा पास करनी होगी.
अरे नही ...बस तुम सीखो और आगे बढो.

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