Wednesday, March 15, 2017

खंण्ड- 13 दर्द क्यों

सफर (खंण्ड-1/16 एक्सीडेंट)
सफर (खंण्ड-2/16 देवदूत)
सफर ( खंण्ड-3 उलझन)
सफर (खंण्ड-4 स्वर्ग-नरक)
सफर (खंण्ड-5 नया आयाम)
सफर (खंण्ड-6 समझ)
सफर (खंण्ड-7 धरर्ती पर वापसी)
सफर (खंण्ड-8 हे इश्वर अभी क्यों नही)
सफर (खंण्ड-9 कल्पना की उडान)
सफर (खंण्ड-10 संगीत)
सफर (खंड-11 इश्वर से मिलने की जिद्द)
सफर (खंड -12 नर्क का अहसाहस)
सफर (खंण्ड- 13 दर्द क्यों)
सफर (खंण्ड- 14 जीवात्मा)
सफर (खंण्ड- 15 पुनर्जन्म)
सफर (खंण्ड- 16 पुनर्जन्म केसे)

खंण्ड- 13 दर्द क्यों
किशोर जब तुम्हे मे इस कमरे मे अकेला छोडकर गया तो तुम बहुत उत्साहित थे. तुम्हे लगा था की तुम अपनी कल्पनाओं का संसार बनाकर उसमे अनंत काल तक मजे लेते रहोगे. पर कुछ ही समय बाद तुम इस सब से उकता गये. तुम्हे लगने लगा जेसे इस सब मे तुम अपना समय बरबाद कर रहा हो, ओर तुमने मुझे फिर से याद किया.
आपने सही कहा किशन जब आप कमरे को छोडकर गये थे तो मुझे लगा की मै अपनी कल्पना का संसार बनाउगा और उसमे अनंत काल तक सुखी रहूगा. मै संगीतकार बना मेने बेहद खूबसूरत संगीत की रचना की. मे बेहतरीन डांसर बना. मेन अपनी पसंद का महल बनाया. मै वासना के सागर में डूबा. मै हर पल उन सभी सुखों को भोगा जिसकी कामना मेने कभी धरती पर रहते हुये की थी. मुझे समझ आ गया की लगातार सुख से कोइ भी कुछ समय बाद उकता जाता है.
मे अब समझ गया हू  की मे मात्र अपने को ही बार बार दोहरा था. जेसे एक ही फिल्म को बार बार देख रहा हू. अब मे इस सब से उब गया हू. उसमे जो भी नयापन था वो खत्म हो गया. अब सब बेमकसद लगने लगा है तो मेने तुम्हे याद किया. ...
किशोर तुम्हे अपनी कलप्नाओं का संसार बेमकसद इसलिये लगा क्योंकी वंहा कोइ स्पर्धा नही थी, कोई नई चुनौती नही थी. तुम उससे कुछ सीख नही रहे थे उससे तुम्हारे अनुभव मे कोइ विस्तार नही हो रहा था. जब तक तुम्हे लगा की तुम कुछ नया कर रहे हो तब तक ही तुम्हे वो सब करने मे मजा आया.
सीखने के लिये तुम्हे दूसरी चेतनाओं के साथ जरूरी है, जिससे तुम्हारा सामना नई चुनौतियों से हो, तुम्हे जीने के लिये दूसरों से स्पर्धा करनी पडे. तभी आप नये अनुभव ले सकते है. 
ओह अब समझा इसीलिये हम बार बार धरती पर जन्म लेते है 
आप सही कह रहे है..किशन मे गलत था. कल्पनाओं का संसार सुखकर जरूर है पर वो खुद सुख का कारण कभी नही हो सकता. क्योंकी सुख का आभास तो दुख के बाद ही हो सकता है .
अब तुम समझे ना की सुख और दुख प्राकृति के चलाये रखने और उसके विकास का मुख्य कारक है. जीवन का चलाने और उसे बनाये रखने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है. अगर तुम्हे भूख नही लगेगी तो तुम भोजन नही खोजोगे. अगर तुम्हे किसी बात से दुख न होगा तो तुम सुख का यतन भी नही करना चाहोगे. सुख और दुख का अहसाहस तुम्हे अपनी क्षमताओं को विकिसित करने कुछ नया करने के लिये प्रोत्साहित करता है. 
सही कहा ना मेने
हां कुछ हद तक सही कहा है तुमने, क्योंकी एसा भी होता है की मेने बहुत बार दुख को गले लगाया है जान बूझकर खतरे से खेला हू
पर किशोर वो सब तुमने अपने और अपनों के बेहतर सुख के लिये ही किया होगा. एसा कभी नही हुआ होगा की तुम ने दुख पाने के लिये ही दुख को गले लगाया हो... अगर एसा कोइ करता है तो सभी उसे बिमार मानसिकता का कहते है.
किशन मेने धरती पर कुछ लोगों को घोर तपस्या करते देखा है, अजीब सनक पन और हठ होता था उनकी जिदंगी में, कोइ एक टांग पर वर्षों से खडा  है तो कोइ तपती दुपहरी मे अपने चारों ओर आग जला रखी है. तो किसी ने हाड जमा देवने वाली सर्दी मे  पानी मे एसे खडा है जेसे वो सब अति सुखकर हो. यह जिद्द अखिर वो क्यों करते है और इससे उन्हे क्या हासिल होने वाला है.  
कुछ तो मात्र पेट के लिये करते है वो एसे करतब दिखाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते है. बाकी को लगता है की कष्ट ही सब पापों की जड है. अगर कष्ट पर विजय पाली तो उन्हे मोक्ष मिल जायेगा. 
क्या वो एसा करके इश्वर को चुनौती नही देते ..की देखो मुझे कुछ नही हो रहा है. मेने तुम्हारे हर कष्ट पर विजय पाली है. ..पर यह तो अहंकार हुआ ना...मेरी समझ से अहंकार तो उससे भी बुरी बात है 
किशन मेरी बातों को सुनकर मुसकरा दिया खुद ही सवाल करते हो और खुद ही जबाब भी देते हो...मुझ से क्या चाहते हो...
आपकी सहमती...मे भी मुस्कराये बिना नही रहा... अगर मेने  गलत कह रहा हू तो आप मुझे टोक सकते हो 
किशोर गलत और सही जेसा कुछ नही होता. यह तो जो आप उस कर्म से प्राप्त करना चाहते हो उस पर निर्भर करता है, अगर जो चाहते हो वो प्राप्त हो गया तो तुम्हारा रास्ता सही था और अगर नही मिला तो गलत
मै समझा नही किशन, जेसे  धन तो चुराकर भी प्राप्त किया जा सकता है और मेहनत से भी प्राप्त किया जा सकता, पर दोनों सही केसे हो सकते है जब  तक मात्र धन प्राप्त करने की बात है दोनों सही है. पर जब उससे थोडा आगे सोचोगे तो तुम्हे समझ आ जायेगा की अब क्या सही है और क्या गलत.  
ओह अब समझा 
क्या समझे 
यही की  चोरी से प्राप्त धन,  घर और समाज को ज्यादा समय तक सुख नही दे सकता ना ही एसे कर्म किसी समाज का लम्बे समय तक बने  रहने की गारंटी है. अगर हम घर और समाज की सोचोगे तो एसा कर्म कभी नही करेगे 
हां किशन कभी कभी  दुख और कष्ट देने वाला काम  अपराधबोध के कारण भी  कर बैठते है.
एक तरफ दर्द, दुख और भय होता है तो दूसरी तरफ आशा, सुख, और आनंद. इन दोनों के बीच रहते हुये चेतना नये अनुभव लेते हुये अपना विस्तार करती है....किशोर, सुख और दुख हमे नये अनुभव देता है. हमे सोचने पर मजबूर कर देता है की किस तरह हम अधिक से अधिक सुखी हो आनंदित हो. हम किस तरह का यतन करे की हमें अधिक समय तक सुख और आनंद की प्राप्ती हो. अगर तुम्हे किसी बात से डर नही होगा तो तुम उस का निदान करने का यतन भी नही करोगे.
तुम्हे  सही कर्म करते हुये अपने को और अपनों को जिंदा रखना है उन्हे सुखी और आनंदित करना है. किसी के अपने मात्र खुद का शरीर होता है तो किसी के अपने उसके बच्चे होते है तो किसी के अपने उसके जात भाई  होते है तो किसे के अपने पूरा समाज होता है तो किसी का अपना देश तो किसी के लिये वासुदेव कुटुम्ब होता है. कोइ मात्र अपने धर्म के लिये जिंदा है तो किसी के लिये सभी धर्मों से उपर सारी मानवता और प्राकृति है.
किशोर एक बात अच्छी तरह समझ लो की जेसे जेसे अपनों का दायरा बढाते जाओगे, तुम इश्वरीय चेतना का असीम विस्तार अपने अदंर पाओगे.
सुख और दुख को देखने और समझने का सब का नजरिया अलग अलग होता है. किसी को पानी मे रहकर मजा आया तो कोइ हवा मे सांस लेना चाहता था, कोइ धरती पर चलना चाहता था उस पर राज करना चाहता था तो कोइ आसमान मे उडना चाहता था. उसी के हिसाब से उसकी चेतना ने उस मे बदलाव किये. समय के साथ उसने अपने को बदला और इस काबिल बनाया की वो यह सब कर सके.
धरती पर सब एक दूसरे पर निर्भर है. उन्हे जीने के लिये किसी को मारना होता है. तो किसी को बचाना है. किसी को बिगाडना है तो किसी को संवारना है. यह सब भी उनकी अपनी अपनी समझ और जरूरत के हिसाब से होता है. एसा कभी नही हो सकता की कोइ स्थति सभी के लिये एक समान हो . एक के लिये जो सही है दूसरे के लिये वो गलत हो सकती है, इसी से आपस मे स्पर्धा होगी और जो बेहतर होगा वही रहेगा और दूसरे को खत्म होना होगा. हर किसी को खुद को बेहतर साबित करना होता है.
किशन, इस स्पर्धा, माया के खेल में आखिर किस का भला हो रहा है, कोन है जो इस सब के अनुभव का लाभ ले रहा है.
हम खुद किशोर, वो सब जो इस का हिस्सा है. यंहा कर्ता और कारक खुद ही है. इस तरह उसकी चेतना जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरती हुई निरंतर विकास करती रहती है.


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