Wednesday, June 29, 2016

मंथन ...गुलाम बनना तुम्हारी अपनी फितरत है इश्वर की मर्जी नही

प्राकृतिक नियम सब के लिये बराबर है फिर चाहे वो पापी हो, धार्मिक हो, या अधर्मी, चोर हो या साहूकार, बालात्कारी हो, सच्चा हो या झूठा, हिंसक हो या अहिंसक, ब्राहम्ण हो या शूद्र, हिन्दू हो या मुस्लिम.
सब पर समान भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान के नियम लागू होते है. सब एक ही हवा मे सांस लेते है एक ही सूर्य की रोशनी को ग्रहण करते है. प्राकृति इसमे कोइ फरक नही करती है. बाढ, भूकंप हो या सुनामी जेसे प्राकृतिक प्रकोप उसके लिये सब इंसान बराबर है. उनका इससे बचना और ना बचना पूरी तरह प्राकृतिक नियम के हिसाब से होगा. विज्ञान ने इन नियमों को समझकर जो प्रगति की है वो किसी से छुपी नही है.
गुलाम बनाना एक सोची समझी समाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसे पुरातन काल से इस्तेमाल किया जा रहा है.  फिर वो चाहे शरारिक गुलामी हो या मानसिक गुलामी हो. इन नियमों का इस्तेमाल कर अधिसंख्यों को गुलाम बनाया जाता है. जिससे वो उन की मेहनत के बल ताकतवर बन सके और राज कर सके.
डर, लालच, अहंकार और ताकत के बल पर पर किसी को हराया जाता है,  उसे नीचा दिखाया जाता है, और गुलाम बनाया जाता है। गुलाम की औलाद गुलाम मानसिकता की हो जाती है, अशिक्षा और धर्म इसका हथियार है।   इन नियमों को समझकर कोइ भी अपनी और अपनों की प्रगति कर सकता है. दूसरों को गुलाम बना सकता है. गुट बना सकता है, उसका संचालन कर सकता है. इसीलिये जब इन नियमों को समझकर उस शक्ति को प्राप्त करने का यत्न करता है तो उस क्षेत्र मे पहले से मोजूद ताकते घबरा जाती है.
सत्ता और ताकत के इस खेल मे कोन सच्चा हमदर्द है और कोन नही उसे गुलाम  मानसिकता मे रह कर समझना आसान नही होता है. क्योंकी उस समय हम किसी ओर की नजरिये से देख रहे होते है. वो गलत बोले तो गलत वो अगर सही बोले तो सही. उस पर भी लोग मानसिक गुलामी के इतने आदी हो जाते है की वो इसे अपनी नियती ही समझ लेते है. एसे मे जो उन्हे इससे मुक्त करना चाहता है, गुलामी के दल दल से निकालना चाहता है वो उन्हे ही अपना दुश्मन समझ बैठते है. उन्हे पता भी नही होता की कोन उनका सच्चा हमदर्द है और कोन उन्हे मात्र अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करना चाहता है.
जिन 85% को जगाने की बात हो रही है अगर वो सच मे जाग गये तो यह एक महा विस्फोट से कम नही होगा. जिसे ताकतवर सत्ताधीश कभी नही होने देंगे. साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल करते हुये उसे दबाने और खत्म करने की भरसक कोशिश करते है। अगर जरूरत पडी तो एसे विद्रोही नेता को या तो लोग खत्म कर देगे या फिर अपने मे शामिल कर लेगे. इस तरह एसा आंदोलन अपने आप खत्म हो जायेगा. कभी जाति , कभी धर्म , कभी अपने , कभी पराये, तो कभी रष्ट्र द्रोही तो कभी रष्ट्र वोरोधी का नाम देकर अधिसंख्यों को खुश और गुमराह करने का काम चलता रहता है.
कुछ दिन पहले गरीबी का विज्ञान पढ रहा था. उसमे एक मजेदार बात कही गई की अमीर अगर अपनी संपत्ती का थोडा सा भाग दान पुण्य करता रहे और उसके भांड उसे बढा चढाकर लोगों को बताते रहे तो एसे अमीर के विरूध गरीब कभी विद्रोह नही करेगा. बल्की  उसे अपना नेता मानकर उनकी पूजा करेगा उनकी हर बात मानेगा. यह एसा ही नियम है जिसे हर समझदार अमीर और ताकतवर आदमी पालन करता आ रहा है. जरूरत पढने पर एसे अमीरों के लिये गरीब मर मिटेगा पर उसका बुरा नही होने देगा. क्योंकी एसे अमीर की इमेज एक दानी और धार्मिक की होती है.
गुलामों को कभी एक जुट ना होंने दो. उन्हे जात पांत धर्म रंग लिंग के नाम पर बांट कर रखो. इस नुस्खे को इस्तेमाल कर अंग्रेजों के 200 साल तक राज किया और इसी का इस्तेमाल कर राजनैतिक पार्टीयां आज भी इस देश में अपना उल्लू सीधा कर रही है.
ये लोग काल्पनिक संकट दिखाकर उन्हे समय समय पर अपने छुपे हुये उद्देशय के लिये इस्तेमाल करते रहते है. जरूरत पडी तो संकट पैदा कर दिया. वो मात्र उन्हे अपने उद्देशय के लिये इस्तेमाल करने के लिये उनकी भावनाओं को इस कदर भडकाते है वो मर मिटने को तैयार हो जाते है. आग भडका कर सही समय पर वंहा से किस तरह खिसकना है वो यह अच्छी तरह जानते है 
एसे ही बहुत से लिखित और अलिखित नियम है जिसे अपनाकर सत्ताधीश ताकतवर बनते है. मजे दार बात यह है की शोषक और शोषित मे गहरा रिशता है, हम एक ही समय मे शोषक और शोषित होते है। हम केसी का शोषण कर रहे होते है और कोई हमारा शोषण कर रहा होता है। शोषण का सीधा मतलब  मेहनत का सही मूल्य ना देना।  डर , हिंसा, अशिक्षा, इसके हथियार है। भावनात्मक शोषण भी  एक तरीका है जिसके द्वारा लोग आसानी से किसी का शोषण कर देते है और सामनेवाले को पता ही नाही चलता , नेता भावनात्मक अपील कर अपना उल्लू सीधा करता है। हर शोषक शोषित का इसी तरह से शोषण करता है. यह  आपको हर गल्ली महोल्लों मे भी दिखाई देगा. 
लालच, सत्ता का खेल मे आनेकता को घृणा की हद तक भडकाया जाता है. वो इसे हर कीमत पर बनाये रखना चाहते  है. उसके लिये मानवता का खून होता है तो होने दो. मानवता लज्जित होती है तो होने दो हर किसी को अपना धर्म और जाति, संकट मे नजर आती है. देखा नही किस तरह हर दंगे मे भीड लूट, हत्या और बालात्कार का नंगा नाच करती है. सार्वजनिक संपत्ती को बरबाद करती है.
बाजारवाद के इस युग में जब सब कुछ बिकाउ है. जो पहले से ताकतवर है वो और ताकतवर होते जा रहे है. मुक्ती भले ही बलिदान मांगती है. जो इसके लिये तैयार हो गया उसे भी ये लोग केसे अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करना है अच्छी तरह जानते है. हम मे से 85% अपने दिमाग का इस्तेमाल इनके हिसाब से घटनाओं का विशलेषण करने मे लगाते है. असल मे हमे विश्वास ही नही होता की हमारी कोइ स्वतंत्र सोच भी हो सकती है. अगर कोइ स्वतंत्र सोच पैदा करता भी है तो एसे लोगों को वो राष्ट्र द्रोही, नकस्लवादी और आंतक वादी घोषित कर देते है सत्ता उन्हे “Enemy of State” घोषित कर देती है.
 इसे इश्वर की मर्जी कभी न समझे. इश्वर का इस सबसे कोइ लेना देना नही है. गुट बनाना हमारी नियती है. क्योंकी पुरातन काल से ही यह समझ आ गया की गुट मे रहना अकेले रहने से ज्यादा सुरक्षित और आसान है. स्वतंत्र सोच जेसा कुछ नही है. जिंदा रहने का पूरा खेल गुट बनाने का है. गुट होगा तो कोइ नेता होगा. और बाकी उसके रास्ते पर चलने वाले होंगे. उन्हे आप उस नेता का गुलाम कह सकते है. पहले मुझे यह समझ नही आता था की केसे हजारों लाखों लोग की भीड ये लोग जुटा लेते है. पर अब समझ आ रहा है.  गुट बनाना हमारे DNA मे है , हो सकता आप सब को भी यह सब समझ आ रहा होगा.
जिसे आप सरकार कहते है दुनिया का सबसे ताकतवर शोषक है। अब भारत का उदाहरण देता हू। आपको जानकार अचरज होगा की हम सब माध्यम वर्गीय लोग साल के 6 महिने सरकार के लिए बेगार करते है। आपकी बेगार से ये आलीशान  महल मे रहते है। ताकत का भोंडा प्रदरशन और दिखावा करते है । इसमे कुछ कम पड़ जाये तो लाखो करोड़ों का कर्ज जनता की भलाई के नाम पर लिया जाता है। दुनिया भर की सरकारे पूजीपतियों का सरक्षण करती है। जो नेता आपके वोटो से जीता है , वो जीतने के बाद आपको अपने आस पास भी फटकने नही देगा। बस दिखावा जरूर करेगा की आप ही उसके माइबाप हो पर मौका मिलते ही ....इसे ही लोकतन्त्र कहते है। 
आप सब ने देखा और सुना होगा की केसे कोई दस बीस साल मे जो फट्वेहाल था लाखो करोड़ों का मालिक बन गया। और एक दिन शादी ब्याह के नाम पर अपनी दौलत का बेहद  बेशर्म प्रदर्शन करता है। सरकार उसके लिए रेड कारपेट बिछाती है , पूरे देश का मीडिया उसे कवर करता है। कोई नही पूछता की इतनी दौलत केसे उसकी हो गई। 
आप की मर्जी की आप किन गुटों को अपना समझते है और किसे पराया. जब कोइ सिरफिरा आपकी भावनाओं को भडका रहा हो तो अपनी चेतना का इस्तेमाल करते हुये निर्णय करे. किसी को भी अपना नेता तो बना सकते है पर उसे अपना भगवान बनाने की भूल कभी ना करे. उसके अंधभक्त ना बने.
एक बात अच्छी तरह समझ ले जो आप दूसरों के साथ करते है, आज नही तो कल वो सब आप के साथ भी होगा. आज आप किसी को काट रहे है कल इसी तरह कोइ आपको काटेगा. आज आपको मोका मिला तो आपने लूटा ...कल उसे मोका मिलेगा तो वो आप को लूटेगा. यह सिलसिला चलता रहेगा जब तक की आप यह समझ नई जाते  की आप इस जगत मे लूटने और लुटने  के लिये नही आये है उस दिन आप खुद इशवाररीय हो जायेगे तब आप आसानी से इस बात को भी समझ जायेगे की गुलाम बनना तुम्हारी अपनी फितरत है इश्वर की मर्जी नही. 
देश और धर्म की परिकल्पना ही शोषण पर आधारित है, देश बनाना और देश चलाना दोनों ही शोषण के उदाहरण है। पता नही मानव कब एक दूसरे को दुशमन समझना बंद करेगे। जब तक इन दोनों का वजूद है तब तक शोषण होता रहेगा। 


Thursday, June 9, 2016

पुनर्जन्म

एक अवधारणा है कि आदमी जब मरता है तो उसकी जीवात्मा उसमे से बाहर निकल जाती है और इस ज़िन्दगी के कर्मो के अनुसार उसको दूसरा शरीर मिलता है। अलग-अलग धर्मो और सम्प्रदायों में इस बात के लिए अलग-अलग सोच है। ज्यादतर वैज्ञानिक इसे धार्मिक अंधविश्वास मानते हैं पर  कुछ वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं।
यह अब भी कुछ हद तक रहस्य है की मृत्यु के बाद हमारी चेतना का क्या होता है.  भारत में पुनर्जन्म के बारे में बहुत प्राचीन काल से मान्यता  हैं। हिन्दूजैनबौद्ध धर्म के ग्रंथों में इस बारे मे बहुत कुछ कहा गया है।

यह माना जाता है कि जीवात्मा अमर होती है और जिस तरह इंसान अपने कपड़े बदलता है उसी तरह वह शरीर बदलती है। उसके अगले जन्म पिछले जीवन के पुण्य या पाप कि वजह से मिलता है। पश्चिमी देशों में भी कुछ जगहों पर इन धारणाओं को माना जाता है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरातप्लेटो और पैथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। वैज्ञानिकों में शुरू में इस विषय पर बहुत बहस हुईकुछ ने इसके पक्ष में दलीलें दीं तो कुछ ने उन्हें झूठा साबित करने कि कोशिश कीकुछ विज्ञानिकों ने कहा यदि यह सच है तो लोग अपने पिछले जन्म की बाते याद क्यों नहीं रखतेऐसा कोई भौतिक सबूत नहीं मिलता है जिससे आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में जाते हुए साबित किया जा सके. फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया और कुछ मनोविज्ञानिक पुनर्जन्म को मानकरइसी आधार पर मनोविकारो और उससे संबधित शरारिक बिमारीयों का इलाज कर रहे है।

पुनर्जन्म को लेकर मेरे मन मे भी शुरू से जिज्ञासा रही की चर्वाक के उस सिद्धांत को मानू की जीवन के खत्म होते ही सब कुछ समाप्त हो जाता है. कुछ नही बचता. मिट्टी का शरीर मिट्टी मे मिल जाता है. चेतना शरीर के साथ ही समाप्त हो जाती है. या कृष्ण की बात को मानू की जीवात्मा अजर अमर है. शरीर के खत्म होने के बाद भी अगर कुछ बचा रह जाता है तो वो जीवात्मा है जो जन्म और मृत्यु के अनगिनित चक्र से गुजरती हुई अनेकानेक अनुभव प्राप्त करती है. मुझे इन दो विचारों मे से किसी एक को चुनना है. क्योंकी इसी आधार पर मुझे अपनी बाकी बची जिदंगी केसे गुजारनी है यह तय करना है. क्योंकी अगर एक ही जन्म है तो फिर काहे का समाज और देश ... लूटो खाओ और मौज करो. उसके लिये किसी को मारना पडे तो मार दो... बस कानून की नजरो से बचे रहो वरना इसी जन्म मे नर्क के दर्शन (जेल) हो जायेगे. और अगर पुनर्जन्म है तो फिर मुझे अपने हर कर्म के प्रति चेतन रहना पडेगा. मुझे अपने कर्म सोच समझकर करने होंगे.
   
आज मै अपनी खोजों और दलीलों से अपने दिमाग को समझा सकता हू की पुनर्जन्म होता है. एसी बहुत सी दलीलों मे से कुछ दलीले आप के सामने रख रहा हू जिस से आप भी मेरी तरह इस बात को समझ कर अपनी जिदंगी के बारे मे तय कर सके की आप को अपनी जिदंगी मे क्या करना है.

यह एक खुली बहस है इसलिये आप की शंकाये और तर्क मेरे सिर आंखो पर ...मुझे नही पता की आप के सभी प्रश्नों का जबाब मेरे पास है. फिर भी मुझे आप के प्रश्न जानकर खुशी होगी जिससे मे अपनी मान्यताओं का एसिड टेस्ट कर सकू. अभी तो मेरा यह पूर्ण विश्वास है की पुनर्जन्म होता हैऔर इसी विश्वास के साथ जिदंगी बसर कर रहा हू , की मुझे हर किये का नतीजाआज नही तो कल भोगना है.  
 
डार्विन की क्रमिक विकास बताता है कि मछली पानी से बाहर आईवो हवा में सांस नही ले सकी. इसलिये हवा मे सांस लेने के लिये उसने गलफडे विकसित कर लिये. जब उसे जमीन पर चलने की इच्छा हुई तो उसके फिंस पेर में बदल गये और जब उसने उडना चाहा तो फिंस पंख में बदल गये. यह बात मुझे हजम नहीं हो पा रही है कि मछली ने चाहा और उसने अपने शरीर में बदलाव कर लिया क्योंकी मेंने भी बहुत चाहा की में भी हवा में उड सकू पर ऐसा कुछ नहीं हो पाया की मेरे पंख उग आते या ऐसा ही कुछ हो जाता. मेंने जब भी पानी में डुबकी लगाइ तो मुझे सांस लेन के लिये तुरंत बाहर आना पडा. बहुत चाहने पर भी मुझे समझ नही आ पा रहा की पानी में सांस ले पाने के लिये अपने को कैसे बदलू.

जिस बदलाब की बात डार्विन ने समझाने की कोशिश की वो एक जन्म में संभव नहीं था. शायद बदलाव कि रफ्तार इतनी धीमी रही होगी की जो बदलाव जीव चाह रहा होगा वो कई जन्मों मे संभव हुआ होगा. वो चाह कर भी अंश भर इस जन्म में नहीं बदल सकते एसा कभी नही हुआ की किसी ने उडना चाहा और वो रातोंरात पंखो का मालिक बन गया. इसका मतलब यह हुआ की बदलाव उस शरीर का संभव नहीं है जो पैदा हो चुका है. और जो पैदा नही हुआ उसे केसे मालूम है की उसे क्या चाहिये और क्यों चाहियेअगर विज्ञान की मानेतो जिसे बदलाब की जरूरत थी वो तो उसी शरीर के साथ खत्म हो गया.

इसका मतलब बदलाव तभी संभव है की जब उसे पिछले जन्म मे क्या भोगा उसे क्या बदलाव चाहिये वो उसे याद रहे. तभी तो वो अपनी रचना बदल सकेगा. और जो बदलाव हो रहे है उसे हर जन्म में एक सही दिशा दे सकेगा. अगर ऐसा है तो यह तो पुंनर्जन्म से ही सभंव है...पर विज्ञान तो पुंनर्जन्म को नहीं मानता. सच तो यह है की अगर आप थ्योरी आफ इवोल्यूश्न पर विश्वास करते हो तो आप को पुनर्जन्म पर भी विश्वास करना होगा.

क्रमिक विकास सिद्धांत में एक और दलील दी जाती है कि उत्त्पत्ति  अनियमित, आकस्मिक, निरुद्देश्य, बेतरतीब, क्रम रहित, और  सहसा उत्पन्न घटनाओं का परिणाम है और प्राणी का शरीर विकास और बदलाव इन्ही घटनाओं का परिणाम है..मुझे इसमे कोई दम नजर नही आता.  इतना परिष्कृत, जटिल और विवेकी शरीर सिर्फ सहसा उत्पन्न घटनाओं का परिणाम नही हो सकता. क्या आप यह मानने को तैयार है की लोहे का ढेर, कुछ कांच और रबर के सहसा अचानक बेतरतीव मेल से कार बन सकती है. नही ना..अगर कार जेसी साधारण चीज अगर बेतरतीव मेल का परिणाम नहीं हो सकती तो फिर चारों तरफ दिखाई देते करोडो जीव कैसे अनियमित, आकस्मिक, निरुद्देश्य घटनाओ का प्ररिणाम हो सकते है.

इसके लिये यादों और अनुभव का बने रहना जरूरी होगा जो जीवन के बाद भी बना रहे. क्योंकी इवोल्यूश्न एक ही जन्म मे संभव नही होता है वो जन्मों जन्मों तक चलने वाली निरतंर प्रक्रिया है. जो survival of fittest  के साथ जुडी है. जिन्होने अपनी चेतना का विकास कर अपने शरीर मे जरूरी फेर बदल किये वही आगे जिंदा रह सके. बाकी सब इतिहास बन गये.  

इसी तरह दूसरा उदाहरण बच्चे के जन्म का है. जब तक बच्चा मां के पेट मे होता है तो उसे गर्भ नाल से सभी जरूरी पोषण मिलता रहता है गर्भ उसे पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण देता है जिसमे वो विकास करता रहता है. जन्म के समय उसे मां का गर्भ छोडना पडता है और  उसका सामना बाहरी वातावरण से होता है. गर्भ से बाहर आने की पूरी प्रक्रिया मे वो मात्र जीवत मांस का जीता जागता पिण्ड भर होता है जिसमे कोइ हरकत नही होती.
जब उसे मां की नाल से अलग किया जाता है या उसे मां की नाल से जीवन मिलना समाप्त होता है. उसके बाद क्या होता है?  क्योंकी जिस मां के गर्भ मे वो है वंहा सांस लेने की जरूरत नही थी. असल मे उसे इसका ज्ञान भी नही होता की वो सांस भी ले सकता है. हां जरूरत पडने पर यदा कदा अपने हाथ पांव जरूर चलाता रहता है जिसे मां अकसर महसूस करती है.

गर्भ से बाहर आने के बाद भी उसे इस बात का ज्ञान नही होता है की अब उसे सांस लेना है. जन्म लेने के बाद भी वो एक तरह से मृत प्राय होता है. नर्स उसे दोनों टांगो से उल्टा कर उसके पिछाड पर चांटे मारती है. उसकी थोडी सी कोशिश के बाद वो अचानक जोर से सांस लेते हुये रोने लगता है. सब को लगता है की नर्स के चांटे मारने से एसा हुआ. अब तक मुझे भी एसा ही लगता थापर अब नही लगता क्योंकी रोबोटिक और कम्प्यूटर प्रोगार्मिंग की जानकारी के बाद मै यह दावे से कह सकता हू की रोने और सांस लेने की सरल सी प्रक्रिया उसकी स्वत: स्फूर्त प्रक्रिया नही हो सकती क्योंकी वो सब किसी प्रशिक्षित दिमाग से ही संभव है. सवाल यह है की उसे यह प्रशिक्षण कब और केसे मिला. यह सब देखने मे भले ही सरल लगता हो पर है नही.  उसे केसे मालुम की उसे केसे रोना है या केसे सांस लेना है. अगर उसे पता होता तो वो मां के गर्भ मे भी एसा ही करता और नतीजा हम सब को मालुम है उसके बाद क्या हुआ होता.

बाहर आने के बाद उसका दम घुट रहा होता है पर वो सांस नही ले सकता. उसे तो पता भी नही होता की उसका जीवन खतरे मे है. फिर अचानक जेसे उसकी चेतना का विस्फोट होता हैऔर उसे सांस लेना आ जाता है ... उसके बाद दूध पीने का लिये वो बैचेन होने लगता है. यह ज्ञान उसे अचानक कंहा से मिला ... मेरा मानना है यह संभव हुआ चेतना के पुनर्जन्म से. जेसे ही चेतना उसके शरीर को पूरी तरह अपने नियंत्रण मे ले लेती है तो उस चेतना को मालुम है की जीने के लिये सांस लेनी है और उसे चेतना को यह भी मालुम है की सांस केसे लेनी है. और वो सांस लेने लगता है... उसके साथ ही वो जोरदार  तरीक से अपने हाथ पेर पटकता है.

मेने जब एक रोबोट प्रोग्रामर से पूछा की अगर उसे नवजात बच्चे के रोने और सांस लेने की हूबहू क्रिया को रोबोट को सीखाना है तो उसे कितने instruction देने  होंगे . मुझे जानकर आश्चर्य हुआ जब उसने बताया की कम से कम उसे 2000 लाइन instruction की जरूरत होगी. मुझे विश्वास नही हुआ. तब उसने बताया की एक एक मांसपेशी जो उसके रोने और सांस लेने से जुडी हैउसे बताना होगा के उसे कब और केसे और कितना खिचांव और उसे कब और कितना ढीला छोडना है गले की मांस पेशियों को बताना होगा की उसे केसे हवा के दबाब को नियंत्रित करना है और जीभ को बताना होगा की उसे केसे हवा को काटना है की रोने की अवाज निकल सके. और उस सब का फीडबैक के लिये मुझे कोड लिखने होंगे जो यह बता सके की किस मे कितना खिचांव है और कोन कितना ढीला है. उसके लिये मुझे सही दर्द का अहसाहस भी पैदा कराना होगा.

यह बिकुल वेसा ही है जेसा आप से शास्त्रीय गान करने को कहा जाये. मुझे नही लगता की आप एसा कुछ कर पायेगे. उस बच्चे के लिये रोना किसी शास्त्रीय गान से कम कठिन नही जिसे वो कुछ सेकेंड मे सीख लेता है. क्योंकी वो उसकी चेतना मे अब मोजूद है...अब अगर उसकी चेतना मे शास्त्रीय गायन की यादे मोजूद है तो वो भी थोडी सी कोशिश के बाद कोइ भी गुरू उसे वह सब याद दिला देगा.
  
आप कह सकते है यह सब उसने मां और बाप से DNA के रूप में पहले ही उसने पा लिया होगा और समय आने पर उसने वही सब किया जो उसे करना चाहिये... अगर एसा होता तो पैदा होते ही रोना शुरू कर देता ...सांस लेना शुरू कर देते...एक अंतराल क्यों होता. एसे बहुत से बच्चे होते है जो जन्म के बाद सांस नही ले पाते और उनका शरीर नीला पडता जाता है और अगर उन्हे वेंटीलेतर नही रखा जाये तो कुछ देर बाद मृत हो जाते है. एसा सिर्फ इस लिये हुआ होगा क्योंकी किसी कारण वश किसी भी चेतना ने उसका शरीर ग्रहण नही किया.

बच्चे के जन्म की यह घटना पुनर्जन्म का एक ठोस सबूत हैएक डाक्टर और नर्स से बेहतर इस  घटना का कोइ साक्षी  नही हो सकता की उस पल मृत प्राय बच्चे मे केसे अचानक चेतना का संचार होता है. जेसे उसमे चेतना का महा विस्फोट हुआ हो... जेसे उस रोबोट शरीर के दिमाग मे पूरा प्रोग्राम डाल दिया गया हो. 

बच्चे जन्म के बाद जिस तेजी से सीखते है वो किसी को भी अचंभित कर सकता है. इस बात को किसी रोबोटिक इंजिनियर से पूछो और उसकी प्रतिक्रिया जानो. एसा वो इसलिये कर पाते है की अवचेतन मे वो सब पहले से ही मोजूद होता है.

यही वजह है की मोर्जाट चार वर्ष की अवस्था में संगीत कम्पोज कर सकता था। ‘लार्ड मेकाले’  और विचारक ‘मील’  चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक ‘जान गास’ तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्व में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारथ हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना और अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। चौपाया स्वत: ही चलना सीख जाता है। पक्षी आसानी से उडना सीख जाते है. इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरना इन नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है.

एसे सेकडो उदाहरण है जिन से पता चलेगा की उनके घर खानदान मे कोइ संगीतकार नही थाडांसर नही थापेंटर नही था  और बच्चे ने विपरीत परिस्थितियों मे भी वो सब सीखने की जिद्द की और मौका मिलने पर वो उसने इस सहजता से किया जेसे उसे पहले से ही सब पता हो.

इंटरनेट  पर एसे हजारों वैज्ञानिक शोध मिल जायेगे जिस मे उन्होने पिछले जन्म की यादों का मामलों पर खोजबीन की है. उसमे से बहुत से मामले वो अब तक झुठला नही सके. अगर एक भी मामला असली मे सही है तो फिर मेरे पूर्वजन्म के कथन को बल मिलता है. यह सच है की एसी घटनाओं मे जेसे जेसे बच्चे बढे होते जाते है वो भूलते जाते है जेसे हम अपने सपनों को भूल जाते है. जैसे-जैसे वो संसार में व्यस्त होते जाते हैं वो सूक्ष्म लोकों और पृथ्वी पर अपने पिछले जन्मों को भूल जाते हैं । हमारी भौतिक इंद्रियां यानी पंचज्ञानेंद्रियांछठी ज्ञानेंद्रिय उन यादों को पूरी तरह से ढंक लेती हैं । यह हम पर ईश्वर की कृपा ही है कि उन्होंने वह व्यवस्था की है कि हम पिछले जन्मों के विषय में भूल जाते हैं । अन्यथा अपने इस जीवन के क्रियाकलापों को संभालते हुए पूर्वजन्म के संबन्धों का भी स्मरण रहना कितना कष्टप्रद होता ।

कल्पना करो कि कोई बच्चा यदि पानी में जाने से डरता हैतो हो सकता है उसके मां बाप और रिश्तेदारों ने उसके अदंर यह भय बैठाया होगा. अगर एसा नही है तो यह तय है कि पिछले जन्म में उसकी मौत पानी में डूबने से हुई होगीया फिर उसकी मौत के पीछे पानी ही कोई कारण रहा होगा। इसी तरह हम सब सांप से डरते है कुछ तो इस कदर डरते है की उसका चित्र देखाकर भी उनका चेहरा भय से सफेद हो जाता है. जब की इस जन्म मे उन्होने कभी सांपो का सामना नही किया. वंही कुछ आसानी से सांप से एसे खेलते है जेसे वो कोइ रस्सी का टुकडा हो. आप ओरों की छोडीये आप अपने अदंर मोजूद डर का विशलेष्ण करेगे तो कुछ डर आप एसे पायेगे जिस का कोइ सिर पैर नही है.  
कुछ मनोविज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करने लगे है कि हमारी कई आदतें और परेशानियां पिछले जन्मों से जुड़ी होती हैं। कई बार हमारे सामने ऐसी चीज़ें आती है या ऐसी घटनाएं घटती हैंजो होती तो पहली बार हैं लेकिन हमें महसूस होता है कि इस तरह की परिस्थिति से हम पहले भी गुजर चुके हैं। चिकित्सा विज्ञान इसे हमारे अवचेतन मन की यात्रा मानता हैऐसी स्मृतियां जो पूर्व जन्मों से जुड़ी हैं। बहरहाल पुनर्जन्म अभी भी एक अबूझ पहेली की तरह ही हमारे सामने है। ज्योतिषधर्म और चिकित्सा विज्ञान ने इसे खुले रूप से या दबी जुबान से स्वीकारा तो है लेकिन इसे अभी पूरी तरह मान्यता नहीं दी है।

पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता हैमात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होतीवैसे ही हम यह क्यों नही मान लेते की चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना तो ऊर्जा से भी उच्चतम अवस्था हैं।

चेतना का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। जब भौतिक जगत मे कई पदार्थ मिलकर नई रचना कर सकते है और बने रह सकते है तो उसी प्रकार चेतना भी अपनी र्विकास कर सकती है. 
 
इसे समझने के लिए मे आपको एसी प्रवासी तितली के बारे मे बताता हू जो हर साल 5000 किलोमीटर का माइग्रेसन करती है, वो है मोनार्क तितली. इसके बारे मे जितनी जानकारी इकठ्ठा कर रहा हू उतना ही यह छोटा सा जीव मुझे अचंभित कर रहा है. 3 से 4 सेंटीमीटर का 0.5 ग्राम से भी कम वजन का यह जीव शरीर के अनुपात मे 150,000,000 गुना दूरी तय करता है अगर इसकी तुलना इंसानो के शरीर अनुपात से की जाये तो वो करीब 2.5 लाख किलोमीटर होगी. यानी पृथ्वी के 11 चक्कर के बराबर. 

पक्षी के तुलना मे इनका शरीर का डिजाइन भले ही कमजोर हो पर इनकी इच्छा शक्ति गजब की है. प्रवासी पक्षीयों की तुलना में यह जीव अपनी सीमित शरारिक क्षमता के बाबजूद उसका भरपूर उपयोग कर असंभव को कर दिखाता है. इसका माइग्रेसन पक्षीयों के माइग्रेशन से पूरी तरह अलग है क्योंकी पक्षी अपनी जीवन काल मे ही माइग्रेशन कई बार कर लेता है.

यह तितली कनाडा से मैकिस्को तक का 5000 किलोमीटर तक का सफर तय करती है जिसे वो करीब दो महिनों मे पूरा करती है. मजे की बात यह है की पूर्ण विकसित तितली का जीवन काल मात्र 2 से 4 हफ्ते का होता है छोटी सी जान अपने जीवन काल मे बस एक बार वो भी एक तरफ का की रास्ता और वो भी अधूरा रास्ता ही तय कर पाती है. यानी की कनाडा से चली तितली मैकिस्को तक वो बीच मे ही खत्म हो जाती है,  उसके बच्चे मेकिस्को पहुचते है. इसी तरह जो मैकिस्को मे पैदा हुये वो उडकर कनाडा जाते है, पर उसकी अगली पीढ़ी ही कनाडा पहुच पाती है . इस तरह यह आने जाने का सिलसिला चलता रहता है.

जेसे ही वो अपने गंतव्य पर पहुचती है वो समझ जाती है और वंहा से वापस जाने का क्रम शुरू करना है जो अकसर उसके बच्चे शुरू करते है जिन्हे गाइड करने के लिये उनके मां बाप नही होते. फिर वो केसे समझ लेते है की उन्हे कंहा जाना है किस रास्ते से जाना है और किस तरह जाना है. हो सकता है इसका रटा रटाया सा जबाब आप दे की यह सब उसके जींस मे लिख दिया गया है उसके DNA मे है. अजीब है ना की जिस तितली ने कभी पूरा सफर अपने जिदंगी मे कभी नही देखा उसके DNA में पूरा सफर दर्ज है. क्या सुनने मे आपको अजीब नही लगता.

सदियों से यह एसे ही चल रहा है. इस बीच इंसानी तरक्की ने शहरों को बनाया जंगलों को उजाडा बडे बांध बनाये... यानी की रास्ते को समझने के निशान बदलते रहे. इस छोटी सी जान को हवा भी अपने रास्ते से दूर उडा ले जाती है उसके वाबजूद यह अपने सही रास्ते को खोज लेती है.

दुनिया भर के वैज्ञानिक पिन हेड जितने छोटे से दिमाग को समझ्ने की कोशिश कर रहे है किस तरह वो सही नेवीगेशन कर पाती है. वैज्ञानिकों का कहना है की उसका नेवीगेशन इतना सटीक होता है की जिस पेड पर उसके पूर्वजों ने डेरा डाला वो उसी पेड पर वो वापस पहुच जाती है.

यह इतनी समझदार है की अपनी उर्जा बचाने के लिये हवा के बहाव का बेखूबी इस्तेमाल करते हुये एक दिन मे बडी दूरी तय कर लेती है उसके लिये वो 3000 फिट की उचाई पर उडती देखी गई है. बरसात और बर्फीले तूफान के समय वो सुरक्षित स्थानों पर छुप कर अपने को बचाती है.

ये रात मे सफर नही करती इसलिये वैज्ञानिक कहते है की सूर्य से दिशा निर्देश लेती है. अजीब है जो सूर्य धरती पर पल पल अपनी जगह बदल रहा हो उससे वो छोटी सी जान केसे दिशा निर्देश लेती होगी. खेर एक ना एक दिन हमारे वैज्ञानिक इस बात का पता लगा ही लेंगे.

मेरा कहना बस इतना है की 5000 किलोमीतर का सफर करने के लिये और भी बहुत सी तैयारी की जरूरत होगी. सफर मे आने वाली दिक्कतों का उसे अनुमान होना चाहिये की उसे कंहा और कब रूकना है किस जगह उसे खाने को मिलेगा किस जगह उसके दुश्मन मिलेगे, कोन उसके दोस्त है कोन दुश्मन.

बाकी जीव यह सब अपने मां बाप और अपने कुनबे से सीखते होंगे पर यह बिचारी किससे सीखे..उसके सीखाने वाले तो उसके पैदा होने से पहले ही अलविदा हो जाते है, क्योंकी अंडे से पूर्ण विकिसित तितली बनने मे उसे करीब एक महिने क समय लगता है. शायद ही किसी तितली के भाग्य मे अपने मां- बाप को देखना लिखा होता है. फिर भी वो विरासत को पा जाती है. उस रास्ते पर एसे चल निकलती है जेसे वो उसका जाना पहचाना रास्ता है.

मुझे खुशी होगे अगर कोइ भारतीय मोनार्क तितली के बारे मे जानकारी दे सके. मै खुद भी इस बारे मे इंटरनेट पर जानकारी खोजने की कोशिश करूगा.  यह वो सब केसे कर पाती है, इस बारे मे जितना सोच पाता हू. उतना ही यह विश्वास मजबूत होता जाता है की हम अपनी विरासत मात्र पदार्थ ( जींस) रूप मै ही अपनी पीढी को नही सोंपती, वो खुद भी चेतना रूप मे आने वाले पीढी मे मोजूद रहती है. 

 यानी जीव के खत्म होते ही सब कुछ खत्म नही होता है, उसकी चेतना जीवित रहती है.  इस के लिये  मोनार्क तितली से बेहतर ओर कोन उदाहरण हो सकता है.


हिन्दू मतानुसार हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वीजलअग्निवायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है और चेतना  शरीर से  मुक्त हो जाती  है। एक समय तक मुक्त रहने के पश्चात आत्मा अपने पूर्व कर्मों, संस्कारों और इच्छाओं  के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त कर सकती है। इस प्रकार जीवात्मा का जन्म मृत्यु  चक्र चलता रहता है।

मै कुछ स्थापित नहीं करना चाहता...मुझे जो पता था ईमानदारी से रख दिया है...सच तो मै भी जानना चाहता हूँ,,,किसी पक्ष के भी तर्क मुझे आसानी से पचते नहीं....विज्ञान का विद्यार्थी हूँआप सभी से एक अनुरोध है....आप शोध करें,,अनुभव लिखें.... मुझे जो समझ आया मैंने लिखा है,,,...लिखने के पीछे कारण आप लोगों से मार्गदर्शन की ही है. जब तक सच जान नही लेता खुद को अज्ञानी ही समझूगाखोज लगातार जारी रहेगी. मन सवाल करता रहेगा और उसके जबाब की खोज मे लगा रहेगा. सहिष्णु होकर सभी संभावनाओं पर विचार करते रहना चाहिये. भला को इंटरनेट का की इतनी सारी चेतानाओं के साथ इतनी आसानी से संपर्क मे हू .


Monday, June 6, 2016

मंथन-1 क्या यह सब सुधारेने के लिये किसी पर्यावरण दिवस की जरूरत है?

पानी की मारामारी: देखा गया है इस तरह की हालात मे जल्दबाजी और खींचातीनी और तानातानी की स्थति बन जाती है.  एसे में 10 से 20% पानी बरबाद हो जाता है. अगर कोइ कमजोर और बिमार है तो वो अपना पानी केसे भरेगा.  जिस तरह लोग अपने अपने पाइप टेंक मे डाल रहे है उससे पानी का दूषित होने की संभावना बनी रहती है, 
इस का एक उअपाय है, सभी महोल्लों में कुओं की तरह अंदर ग्राउंड सील्ड टेंक बनाये जाये. जिसे जरूरत के अनुसार पानी के टेंकर से भरा जाये. उन टेंकों के उपर हेंड पंप लगे हो जिससे लोग जरूरत के अनुसार कभी भी पानी भर सके. बरसात के मौसम मे इन टेंकों को रेन हार्वेस्ट के द्वारा भरने की व्यवस्था भी जाये. इससे लोगों को  रेन हार्वेस्ट के लिये प्रेरित किया जा सकेगा. इससे  धारा 144 भी नही लगानी होगी और आपसी भाई चारा भी बना रहेगा. 
अगर टेंकर को अडंर ग्राउड टेंक मे खाली किया जाये तो पानी को इस तरह दूषित होने से बचाया जा सकेगा और जरूरत मंदो को पानी के लिये इस तरह युद्ध की तैयारी भी नही करनी होगी.  


विसर्जन: विसर्जन आस्था से जुडा है. इसमे  जब भी प्रशासन ने इसे रोकने की सखती की तो इसे आस्था पर हमला माना गया. क्यों ना नदी तालाबों की जगह कुछ छोटे छोटे विसर्जन ताल नदी और तालाबों के किनारे बना दिये जाये और श्रधालुओं को विसर्जन उन मे करने को प्रेरित किया जाये.  एसे स्थानों पर कुछ वोलेंटिय़र को खडा किया जाये जो लोगों को प्लास्टिक पन्नियों के साथ पूजन सामग्री  को फेंकने से रोके. उसके बाबजूद भी कुछ लोग एसा करने से बाज नही आयेगे. उसके लिये  विसर्जन के स्थान पर पानी के अदंर नेट डालक़र एक घेरा बनाया जा सकता है. जिससे लोग विसर्जन की सामग्री डाले तो वो जाल मे फंस जाये . बीच बीच मे जाल को बाहर निकालते रहे . इससे प्लास्टिक और अन्य सामग्री को आसानी से बाहर निकाला जा सकेगा. 
उस ताल के पानी को सूर्य द्वारा सूखने दिया जाये. उसके सूखने के बाद उसकी सफाइ कर उसे पानी से फिर भर दिया जाये. 
हो सकता शि नीचे चित्र मे दिये गये गंदगी के नजारे को देखकर अपनी आस्था के बारे मे वो गंभीरता से सोचे और एसा करने से वो बाज आये.  



Sunday, June 5, 2016

क्या प्रकृति मनुष्य की दासी है



प्रकृति का जिस तरह से हमने दोहन किया है उससे लगता है की प्रकृति मनुष्य की दासी है, जिसे वह विज्ञान व टकनॉलॉजी के दम पर चाहे जैसा रौंद सकता है, लूट सकता है और उसके साथ बलात्कार कर सकता है। इसी के साथ यह भी मान लिया गया कि आधुनिक सभ्यता द्वारा विकसित हर टकनॉलॉजी श्रेष्ठ तथा अपनाने लायक है और प्रगति की निशानी है। आधुनिक टकनॉलॉजी के प्रति अंधविश्वास की हद तक भक्ति इसमें दिखाई देती है। 
अगर एसा ना होता तो हमे अपने चारों ओर लाखों टन इ-कचरा दिखाई  देने लगता. हर साल लाखों करोडो मोबाइल और लेपटाप की बैटरियां को कचरे की तरह हम डस्टबिन मे एसे फेंक देते है जेसे वो कोइ कागज का टुकडा हो. उसमे मोजूद हानीकारक रसायनों के प्रति हमारी इस कदर की उदासीनता एक गंभीर अपराध क्यों नही मानी जा रही है. इसी तरह वाहनों का कबाड हो या घर मे इस्तेमाल फ्रिज और टीवी और वाशिंग मशीन, इनकी उम्र पूरी होने के बाद हम नई खरीद कर पुरानी को भूल जाते है. कभी सोचा की उस पुराने का क्या होता है. पुरानी नजरों से दूर होते ही जेसे  हमारी उसके प्रति जिम्मेदारी खत्म हो गई. और उसके बदले नये के साथ हम आराम से जो है. 
हमारी भूमी, जल और वायु खतरनाक तरीक से प्रदूषित हो गई उसके विनाशकारी नतीजे लगातार सामने आने के बावजूद आत्मघाती राह पर हम लगतार उसे आगे बढ़ रहा है तो उसके दो कारण हैं। एक तो इनको आगे आगे बढ़ाने में साम्राज्यवादी देशों, कंपनियों, नेताओं, अफसरों व तकनीकशाहों के नीहित स्वार्थ हैं। मानव समाज का हित और भविष्य इनके मुनाफों, कानूनी-गैरकानूनी कमाई और अहंकार के सामने बौने पड़ जाते हैं। 
जैसे भारत में ही परमाणु बिजली के नए महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के पीछे अमरीकी, फ्रांसीसी व रुसी कंपनियों के स्वार्थ हैं, हमारे नेताओं ने इन भस्मासुरों को आधुनिक भारत के मंदिरकी उपमा दी। मंदिरों के भगवान की तरह आधुनिक टकनॉलॉजी एवं विकास को प्रतिष्ठित कर दिया गया और विवेक या तर्क को छोड़कर उसकी पूजा होने लगी। टकनॉलॉजी की यह अंधभक्ति इतनी प्रबल रुप में पढ़े-लिखे बौद्धिक समुदाय में छाई है कि इस पर सवाल उठाने वालों को कई बार अवैज्ञानिक, दकियानूसी, पीछे देखू व प्रगति विरोधी करार दिया जाता है।
यह सही है की  हमें बिजली चाहिए, कोयला, प्राकृतिक गैस, डीजल, नेप्था, परमाणु उर्जा या बड़े बांध - किसी से भी बिजली बनाएं तो समस्याएं पैदा होती हैं और फिर उनका विरोध होने लगता है। यह बिल्कुल सही है। इसका जवाब दो हिस्सों में है। एक तो यह कि उर्जा के अन्य सुरक्षित वैकल्पिक स्त्रोतों का विकास करना है। और समय के मानदंड पर जो उर्जा तकनीके खरी  उतरी हो उन्हे बढावा देना है. अभी तक साम्राज्यवादी देशों को पूरी दुनिया से कोयला, तेल, गैस व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने तथा प्रदूषण एवं पर्यावरण-विनाश करने की सुविधा इतनी आसानी से मिलती रही कि वैकल्पिक उर्जा के विकास व अनुसंधान पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। 
हमारा देश भी उन्हीं की नकल कर कोयला, प्राकृतिक गैस, डीजल, नेप्था, परमाणु उर्जा या बड़े बांध से आगे नही सोच पाया। बहुत देर बाद हमने सौर उर्जा जेसे विकल्पों के प्रति थोडी गंभीरता दिखानी शुरू की है.  आज  भी हम मांग के अनरूप सोर उर्जा सेलों के बनाने के लिये आधारभूत उद्योग नही लगा पाये. यह तरक्की भी चीन से आयातित निम्न  दर्जे  के सेलों के सहारे पर टिकी हुई है.  इस तकनीक में जन भागेदारी अब भी सरकारी आंकडो क खेल बन रही है. 

यदि बिजली पैदा करने में इतनी समस्याएं दिखाई दे रही हैं, तो इसके अंधाधुंध उपयोग को भी नियंत्रित करना होगा। खास तौर पर बिजली व उर्जा के विलासितापूर्ण उपयोग व फिजूलखर्च पर बंदिशें लगानी पड़ेगी। इसके लिए आधुनिक जीवन शैली और भोगवाद को भी छोड़ने की तैयारी करनी होगी।
आधुनिक टकनॉलॉजी, आधुनिक जीवनशैली, उपभोक्ता संस्कृति, कार्पोरेट मुनाफे, वैश्विक गैर बराबरी, साम्राज्यवाद, पर्यावरण संकट - इन सबका आपस में गहरा संबंध है और ये मिलकर आधुनिक औद्योगिक सभ्यता को परिभाषित करते हैं
इनके विकल्पों पर आधारित एक नई सभ्यता के निर्माण से ही मानव और उसकी मानवता को बचाया जा सकता है तथा एक बेहतर व सुंदर दुनिया को गढ़ा जा सकता है। अभी तो फिलहाल पर्यावर्ण के नाम पर कुछ स्लोगन बनाना. लेख लिखना, और बहुत हुआ तो कुछ पोधों को रोप देना भर है. जेसे हम इस को मनाकर प्राकृति पर कोइ बहुत बढा अहसान कर रहे है. 


Wednesday, June 1, 2016

शेरा

गेस्ट हाउस केयरटेकर ने मुझे सुबह चार बजे उठा दिया था. मेरे तैयार होते होते, श्याम भी अपनी ट्रावेरा के साथ मुझे ले जाने के लिये आ गया. उसने 4:30 से पहले मुझे फोर-बे रिसरवायर तक पहुंचा दिया. लेंड स्लाइअड के कारण आगे रास्ता बंद था,  मुझे मजबूरन गाडी को वंही छोडना पडा. अब रिम्बिक गांव तक मुझे पैदल ही जाना था.  कोहरे की हल्की चादर से ढका पहाड़ अभी सो रहा है. 15 किलो का मेरा रगशेक मेरे पीठ पर है. यह भारी है पर ये मेरी लाइफ लाइन है इसमे दो दिन के लिये खाने का सामान और गर्म कपडे है. स्लीपिंग बेग है.  मुझे नही पता की उपर चोटी पर रहने के लिये क्या व्यवस्था है. हो  सकता है मुझे अकेले ही वंहा रहना पडे.  मंकी केप और दस्ताने पहने हू उसके बाबजूद ठंड अपना असर दिखा रही है.  सुबह की ठंड में घास पर जमी ओंस को टार्च की रोशनी में निहारा. अपना रग-शेक ठीक किया और श्याम को विदा किया
...साहब चिंता ना करे कल रास्ता खुल जायेगा तो आपको लेने मै रिम्बिक आ जाउगा. अभी सुबह आप को रिम्बिक से  संदाकफू जाने के लिये बहुत से ट्रेकर मिल जायेगे. इसलिये कोइ चिंता ना करे.
मैने मुस्करा कर उसे विदा किया और बांस की छ्डी पर अपना वज़न डालते हुये मेंने सामने खडी चढाई को देखा और अपने कदम आगे बढाना शुरू कर दिये. घास पर जमी ओस रास्ते को फिसलन भरा बना रही है. 600 मीटर उपर बसा रिम्बिक मेरा पहला पढाव होगा. पहाडों की चोटी पर सुबह की सुनहरी धूप मन को भा रही है.
सुबह का आसमान साफ है मुझे पूरी उम्मीद है की 2 बजे तक आसमान साफ रहेगा पर इसकी कोई गांरटी नहीं ले सकता पहाड़ के मौसम का कोई भरोसा नहीं. मुझे हर हाल में 4 बजे तक संदाकफू गेस्ट हाउस तक पहुंचना है. समुद्र तल से 3600 मीटर पर रिम्बिक से 1800 मीटर उपर...घने जंगल से गुजरती 16 किलोमीटर चढाई...आसान नहीं होगा यह सब.
2 घंटे कि चढाई ने मुझे इतनी ठंड के बाबजूद पासीने से लथ पथ कर दिया है. मेने आसमान को निहारा. आसमान साफ और उसका रंग गहरा नीला है. इस तरह के असमान अब हमे शहरों मे दिखाई नही देते, शायद वायू प्रदूष्ण इसकी वजह हो सकता है . सम्मोहित कर देने वाला गहरा नीला आसमान. 1800 मीटर की उचाई पर सामने दिखाई देता रिम्बिक गांव. पहाड़ के हिसाब से ये एक शहर सा दिखाई दे रहा है मुझे इतना बढा गांव देखकर आश्चर्य हुआ. यहां तक पशिच्म बंगाल की स्टेट बस आती है.
 रिमबिक मे दुकाने  खुल चुकी है. एक छोटे से ढाबे में मेंने याक का गर्म दूध मक्के की रोटी और एक मीठा ताजा सेब लिया. एक काला झबरीला कुत्ता मेरी तरफ देख रहा है शायद उसे मुझे से कुछ खाने की उम्मीद है. मे एक रोटी का टुकडा उसकी तरफ बढा देता हू. वो पूंछ हिलाता हुआ मेर पास आकर बैठ जाता है.  मै उसके सिर पर हाथ फेरता हू मुहे उसका नाम भी नही पता मै उसका ढाबे वाले पूछता हू.
सर उसे हम शेरा बोलते है. मै भी उसे शेरा बुलाता हू,  तो मेरे हाथ को प्यार से चाटने लगता हि , मै उसे एसा करने से रोकता हू. और एक रोटी उसे ओर देता हू. चाय वाले से आगे के ट्रेक की जानकारी लेता हू... उसने बताया आज कोइ ट्रेकर उपर की तरफ नही गया है. ना ही किसी के जाने अब उम्मीद है. मै सोच मे पड जाता हू. साहब आप अभी अपर की तरफ चल देगे तो रास्ते मे आपको गांववाले जरूर मिल जायेगे जो जंगल से लकडी लाने काम करते है...उपर चाय बागान के खेत भी है. उसके मजदूर भी मिल जायेगे..मेरे लिये इतनी जानकारी काफी थी. मै अकेला ही आगे चलने का मन बना लेता हू.
सुबह की धूप भी बहुत तीखी लग रही है. जेकेट, मंकी केप और दस्ताने निकाल दिये और स्वेटर को अपनी कमर पर बाँध लिया है अब में सिर्फ एक सूती शर्ट और कार्गो पेंट में हू धूप तेज होने लगी है, आसमान साफ और गहरा नीला है पर तीखी धूप एसे चुभ रही है की जेसे सब कुछ जला देगी. मेंने आंखो पर रेबेन का चश्मा लगा लिया जो मुझे अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचायेगा. अभी तो सुबह के 8 भी नही बजे है और इतनी तीखी धूप. मुझे बीएसएनएल का सिंगनल अब भी मिल रहा है. मै जेसे ही आगे बढा देखा वो काला कुत्ता मेरे पीछे पीछे आ रहा है...
अरे मेरे पास कुछ नही तुझे देने को कुछ नही है  ...जा अब जा...मुझे उपर जाना है भाई...मेने उसे वापस जाने का इशारा किया   पर वो लगातार मेरी तरफ देख रहा है जेसे कह रहा हो की मुझे भी साथ ले चलो... जेसे उसने मेरे साथ आने की ठान ली थी. मुझे भी तो किसी साथी की जरूरत थी मे उसे अपने साथ ले लेता हू..देखते है कितनी दोर वो मेरे साथ चलता है. शायद एक रोटी ने उसे मेरा दोस्त बना दिया था. सच बोलू तो मुझे भी उसका साथ अब अच्छा लग रहा था. मेने एक बार उसे अपने पास बुलाकर उसके गले पर एक बार फिर हाथ फेरा. तो वो तेजी से पूंछ हिलाने लगा.
2500 मीटर पर मुझे यंहा वंहा पुरानी स्नो दिखाई दे रही है. हवा मे ठंडक है पर धूप चेहरे को झुलसा दे रही है. ठंडी हवा और सूरज की गर्म तीखी किरणों का अजब मेल, चेहरे से सारी नमी सोख ले रहा है . इस हाइट पर मुझे वनस्पति मे साफ अंतर दिखाए दे रहा अब मुझे सेब और चाय के खेत दिखना बंद हो गये. मौसम अब भी मेरा साथ दे रहा है. यंहा वंहा अपने याक को चराते या फिर जंगल से लकडी बटोरते गांव वाले मुझे देख कर मुस्करा देते है. मेरे साथ शेरा लगातार चल रहा है, उसको देखकर बार बार मुझे भालू का अहसाहस होता है.
शेरा मेरे साथ लगातार चल रहा है. दिन के 12:00 बजे एक छोटे से झरने के पास रूका. सडक के किनारे पर लगे पत्थर पर लिखा है 3000 मीटर. धूप से बेहाल मे नहाने का मन मना लेता हू. बर्फ की तरह ठंडा पानी. मेरी सारी देह जेसे अकड जाती है. शेरा को खाने के लिये बिस्कुट देता हू और खुद भी साथ लाइ रोटी सब्जी खाता ह. ताजा दम होकर अब आगे जाने के लिये तैयार हू.
आसमान पर बादल दिखाई देने लगे है. रास्ते मे खेत पर ही बने इक्का दुका घर. महिने में एकाध बार ही रिम्बिक बजार करने जाते होंगे. अपने आप मे पूरी तरह आत्म निर्भर जिंदगी. वनस्पति के नाम पर अब इक्का दुका पाइन के पेड है. हवा मे ठंडक बड रही है. असमान मे घिरते बादल मुझे अब तेज चलना होगा. खडी चढाइ और हवा मे आक्सीजन की कमी अब सांस जल्दी उखड जाती है. दिन के 14:00 अब चला नही जाता ..मे अपने कंधे से रगशेक उतार देता हू. खडे खडे ही सांसे नोर्मल होने का इंतिजार कर रहा हू. अभी बैठ नही सकता...एक बर बैठा तो जोड अकड जायेगे. उसके बाद मुझ से चला नही जायेगा.
शेरा बदलते मौसम से बैचेन हो रहा है वो बार बार मुझे देख रहा है जेसे पूछ रहा हो की मे चल क्यों नही रहा हू. अब मुझे थोडा आराम मिला है ..मेने रगशेक को पीठ पर लादा और चलने लगा. फिसलन भरी  काइ पर नाप तोल कर एक के बाद एक कदम बढाता. खडी चढाइ और उस हवा मे ओक्सीजन की कमी से सांस बार-बार फूल जाती है. लग रहा है हवा मे इस बार ओक्सीजन कुछ ज्यादा ही कम है मुझे हर चार कदम के बाद रूकना पड रहा है. उससे मेरे आगे की रफ्तार बहुत कम हो गई है.  
16:00 मौसम अब खरतरनाक तरीक से खराब हो गया है ...धुंध और कोहरे ने मुझे चारों ओर से ढक लिया. मेने तुरंत बेग से अपने गर्म उनी स्वेटर और मंकी केप निकाला हेड ग्लोब पहने. पिछले 2 घंटों से मुझे एक भी आदमी रास्ते मे दिखाइ नही दिया. अगला मोड काटते ही...  शुक्र है मुझे दूर उपर एक घर  दिखाइ दे रहा है. हो ना हो वो ही गेस्ट हाउस हो सकता है, मजिल दिखाई देने से मेरा होसला थोडा बढ जाता है. मन को समझाता हू की मुझे वंहा तक हर हाल मे पहुचना है वो गेस्ट हाउस भले ही ना हो पर वंहा मुझे कोई ना कोइ मदद जरूर मिल जायेगी. बस 1 किलोमीटर ओर बचा है, लग रहा है जी वो कितनी दूर है, सा6स नही ले पा रहा, कोहरा इतना गहरा की मै 10 मीटर दूर भी नही देख पा रहा हू.
हवा तेज कांटे की तरह चेहरे पर चुभ रहे है. तापमान मे इस तरह के तेज गिरावट की मुझे उम्मीद नही थी. मै अब ठंड से कांप रहा हू. शेरा अब भी मेरे साथ है. आखरी 500 मीटर. लगा जेसे यह अब जीने या मरने का मामला है. मै अब एक कदम भी आगे नही बढा पा रहा हू. काश मुझे कोइ साहयता मिल पाती. सांस नही ले पा रहा हू सर दर्द से फट रहा है. लगा जेसे दम घुट रहा है. मै समझ नही पा रहा हू की 3600 मीतर की हाइट पर इतनी कम आक्सीजन केसे हो सकती है. एसा तो 4500 मीटर पर कभी कभी होता है. आखरी 200 मीटर....  तेज तूफान जेसे सब कुछ उडा कर ले जायेगा...मै तुरंत वही रगशेक की आड लेकर बैठ जाता हू.  हे भगवान अब मे क्या करू लगा जेसे जिस्म अकड कर जम जायेगा. दिमाग खाली...भारी शून्य मुझे शेरा के भोंकने की आवाज सुनाइ दे रही है...अंधेरा
आंख खुली तो मेने अपने को रजाइ मे पाया. मेरे दोनों तरह पानी की गर्म बोतल. मै अब भी जिंदा था. बाहर तूफान की तेज आवाज. लेम्प हाथ मे लिये वो मेरे उपर झुका है
उसने मुसकरा कर मेरे बालों मे हाथ फेरा..अब केसे हे सर....मे धनीराम इस गेस हाउस का केयरटेकर  ...
साहब अब केसे हो...भला हो शेरा का की उसने मुझे सही समय पर आप के बारे मे बता दिया...वरना भगवान जाने आज क्या हो जाता
आप पागल हो क्या जो अकेले ही इधर आ गये...वो तो अच्छा था की मे आज यंहा पर मिल गया.
...शुक्र है शेरा ने मुझे सही समय पर आप तक पहुचा दिया. बाहर देखिये तेज तूफान और ठंड है एसे मे आपका बचना नामुमकीन हो जाता. और मेने अपने हाथों मे उसके हाथ ले लिया.
मेने प्यार से शेरा के सिर पर हाथ फेरा..ओह तो आप इसी लिये मेरे साथ थे... शुक्रिया शेरा जी
आप भी इस कुत्ते को जनते है!  
अरे साहब यह मेरा ही कुत्ता है, दो दिन पहले गायब हो गया था. इसके भोकने की अवाज सुनी तो बाहर आया... वो मुझे खीचकर आपके पास ले कर गया.
गर्म दूध और रोटी ..बाहर तूफान अब थम गया है ..चारो ओर गहरी शांती.
...साहब मौसम की पहली बर्फबारी शुरू हो गई है. देखा आप इसे साथ लेकर आये.
साहब आप खुश किस्मत है मौसम की पहली बर्फ साथ लेकर आये हो
धनीराम जी अभी तो मुझे आप पागल बोल रहे थे
.... वो हंसा और बोला हां साहब इधर सभी पागल ही आते है.
ओर तुम धनीराम !!
हम तो यंही पैदा हुये. साहब लोगों ने गेस्ट हाउस का केयर टेकर बना दिया है. आप भाग्यशाली थे जो मे आज यंहा हू वरना आज मुझे नीचे घर मे जाना था. पता नही क्या सोच कर रूक गया.  
सुबह मेरी नींद खुली, असल मे शेरा ने ही मेरी नींद खोली थी. कमरे से बाहर निकला..जो देखा विसमृत कर देने वाला नजारा था चारो तरफ स्नो, बर्फ की  सफेद की चादर गेस्ट हाउस के पीछे से उगता सूरज अपनी सुनहरी किरणे बिखेर रहा है...और सामने अपने पूरे सोदंर्य से मंत्र मुग्ध कर देने वाला कंचन चुंगा की चोटी का शानदार नजारा. मै सम्मोहित हर पल बदलते उसके रंग और नजारे को निहार रहा हू,
धनीराम ने मुझे काफी का मग दिया. मे काफी पीते हुये शेरा का सिर सहला रहा हू..आज उसकी वजह से ही यह दिन देख पा रहा हू. शायद उसे मेरे उपर आने वाली मुसीबत का अहसाहस था जो मेरे साथ यंहा तक चला आया था या फिर एक रोटी और थोडे से प्यार ने उसे मेरे साथ आने को मजबूर कर दिया था
9 बजते घाटी की गहराइ से बादल उठना शुरू हो गये है. एसा नजारा पहले कभी नही देखा. स्नो और बादलो का एसा मेल. हर पल बदलता मंत्र मुग्ध कर देने वाला नजारा
याक के दूध और गुड की खीर. सारे दिन नो सेल फोन, नो कंप्यूटर, नो एस एम एस. नो ईमेल बस मे और मेरी यांदे और यह ना भूल सकने वाला नजारा!!
शाम को मौसम फिर से खराब हो रहा है पर इस बार मुझे घबराने की जरूरत नही है. इस बर मे धनी रम के साथ पूरी तरह सुरक्षित हू. सुबह के ...5 बजे ही वो मुझे उठा देता है. आज मुझे लोटना जो है. याक क दूध और रोटी खाकर में जाने के लिये तैयार हो जाता हू. धनीराम रास्ते के लिये भी रोटी और साग पेक कर देता है. शेरा को भी रोटी मिल जाती है. मै उन्हे विदा देकर चल देता हू पर इस बार शेरा मेरे साथ नही है वो धनीराम के साथ खडा है...धनीराम हाथ हिलाकर विदाई दे रहा है और शेरा पूछ हिलाकर ....नीचे उतरते हुये कोइ खास परेशानी नही हुई. शाम के 4 बजे जब रिम्बिक पहुचा तो मेने वंहा श्याम को इंतिजार करते पाया.
दुर्वेश