Friday, January 15, 2016

सड़क सुरक्षा



हमारे शहर मे  सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है आला पुलिस अधिकारी और जिम्मेदार शहरी नागरीक  सुरक्षा पर भाषण देकर इसे मनाने की रस्म अदायेगी कर रहे है. मुझे भी जिम्मेदारी का नशा आ रहा है ...इसलिये आप जेसे गेर जिम्मेदारों को यह लेख समर्पित कर रहा हू, पर आप इस गलत फहमी ना रहना , इसको लिखते लिखते यह नशा उतर चुका होगा और इस लेख के पूरा होते ही मे एक बार फिर आप की बिरादरी में आ जाउगा.
विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की ‘’वैश्‍व‍िक सड़क सुरक्षा रिपोर्ट-2013’’ की रिपोर्ट के अनुसार विश्‍व में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं का करीब 10 प्रतिशत भारत में घटित होता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर बरस लगभग लाख 31 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं। असली आंकड़ा इससे बहुत ज्‍यादा हो सकता है उन्होने दुर्घटनाओं की कुल सामाजिक लागत लगभग दो लाख करोड़ रुपए बताई है. अरे दो लाख करोड़ सुनकर एसे आंखे क्यों फेला रहे हो. अरे भाई यह रिपोर्ट किसी विदेशी की बनाई हुई है, उनके यंहा अगर इतनी दुर्घटनाये हो तो इतनी रकम बीमा क़ंपनी और सरकारों को मिलकर खर्च करना पडेगी. हमारे यहा तो दुर्घटना हुई ...आदमी खत्म ...काम खत्म. जो नुकसान हुआ वो दुर्घटना गर्सत परिवार का है अगर उसमे कुव्व्त है तो वसूल ले मुआवजा.
आज का विषय मुआवजा ना होकर ...जरा उससे हटकर है. आज मेरी कोशिश है की  दुर्घटनाओं के कारणो पर एक नजर डालने की है। क्या हमारे जेसा आम नागरीक एसी दुर्घतनाओं को कम करने मे अपना योगदान दे सकता है. हम सब नीचे दिये कारणों को दुर्घटनाओं का मूल कारण मानते है

  • ट्रेफिक अनुशासन और नियमों के प्रति घोर लापरवाही.
  • ·शहरों का अवैज्ञानिक बेतरतीब विकास.
  • ·  बदहाल खराब सडके.
  • ·जर्जर वाहन
  • · ओवरलोडिंग
  • ·    नियमों और कानून  की अनदेखी
  • ·      गेर जिम्मेदार वाहन चालक
पर इसके इलावा एसे  ओर भी बहुत से कारण है जिन्हे हम अनदेखा करते रहते है. इस लेख मे उन्ही सब का जिक्र किया गया है.
1.      तेज और अंधादुध रफ्तार दुर्घटनाओं का एक बडा कारण है. उसके लिये आजकल की तेज रफ्तार गाडीयों को जिम्मेदार मानता हू. जब हमारी देश की ज्यादातर सडके 60 km/hr  की स्पीड के लायक भी नही है तो जबरदस्त पावर वाली SUV’s, कारे मोटरबाइक  जो  आसानी से 160 से 200 km/hr की स्पीड पकड लेती है, को क्यों इन सडको पर चलाने की इजाजत दी जा रही है. इसे रोकने और टोकने के बहुत से उपाय है पर शायद इस बात पर किसी का ध्यान नही जा रहा है.
2.      जुगाड की तारीफ मे लेख भरे पडे है. पर किसी ने यह देखने की कोशिश की यह सडकों के लिये कितने सुरक्षित है. ओवरलोड ट्राली को ढोते ये जुगाड आसानी से पंजाब, यूपी, हरियाणा और दिल्ली के  राष्ट्रीय और राजकीय  मार्गों पर देखे जा सकते है. गंभीर दुर्घटनाओं को दावत देते ये वाहन आज तक RTO की नजरों से ओझल है. मजे दार बात यह की इन्हे चलाने के लिये किसी लायसेंस की भी जरूरत नही होती है.
3.      ट्रेक्टर कृषी का बहुउपयोगी वाहन है. किसान को मदद देने के नाम पर इस चलाने वालों को बेहिसाब छूट दी गई है. नियम है की हर वाहन के पीछे टेल लाइट लगानी जरूरी है. ट्रेक्टर निर्माता इस नियम का पालन करते है पर जब इसके पीछे ट्राली लगा दी जाती है तो यह टेल लाइट छुप जाती है. रात के अंधेरे और धुंध भरे माहोल मे ये बहुत ही खतरनाक हो जाते है. मुझे समझ नही आता की यातायात पुलिस को इतनी बढी खामी दिखाई क्यों नही देती. इस खामी के कारण रात्री मे भयंकर सडक  दुर्घटानाये होती है. अगर कम से कम इन ट्रालियों के पीछे फ्लोरोसेंट पेंट ही लगा दिया जाये तो इन सडक हादसों मे बेहद कमी लाइ जा सकती है.
4.      सडक की हालत, मौसम, और ट्रेफिक कनजेशन जेसे बहुत से कारण होते है जो किसी सडक पर अधिकतम सुरक्षित स्पीड को निर्धारित करते है. जिसकी चेतावनी सडक पर लगानी चाहिये. पर एसा होता नही है. स्पीड का निर्णय ड्राइवर की मर्जी पर होता है एसे मे अकसर होता यह है की अच्छी सडक समझकर वाहन चालक तेजी से वाहन चला रहा होता है की अचानक उसे सामने सडक पर गड्डा नजर आता है. अब बताइये वो नादान ड्राइवर क्या करे.
सड़क पर गड्डे स्थानीय प्रशासन को मालुम होते है फिर भी कोइ चेतावनी नही. इसी तरह सडक पर वाहन खराब हुआ तो उसकी सुरक्षा के लिये उसके चारो तरफ पत्थर लग देते है. ठीक हो जाने पर वाहन तो चला जाता है और  पत्थर वंही रह जाते है. जिस जमाने मे वाहन की अधिकतम गति 40 से 60 km/hr बीच हुआ करती थी तो सब मेनेज हो जाता था पर आज स्पीड 100 से 120 के बीच होती है एसे मे इस तरह सडक पर गड्डे और छोडे गये पत्थर जान लेवा साबित होते है.  
5.      कुछ मनचले दिवाने चालकों को बेहिसाब बेतरतीव गति से वाहन चलाने मे मजा आता है. उसे (alderine hormone) एक नशा जो अपनी और दूसरों की जान के दुश्मन बन जाता है. उन्हे रोकने और टोकने और उन्हे सबक सिखाने का कोइ कारगर तरीका किसी के पास नही है. यह नशा हाथ पैर तुड़ाने के बाद ही उतरता है। 
6.      वाहन फिटनेस चेक कभी कभार ट्रेफिक पुलिस के लिये बसूली का जरिया भर है. या फिर कभी गंभीर दुर्घटना के बाद उस पर चर्चा हो जाती है. अकसर ओवर लोड जरजर हालत मे पब्लिक वाहन को ढेर सा धुआ छोडते हुये सडको पर देखा जा सकता है. पर हमारे प्रशासन को दिखाई नहीं देता है वो तो BS-IV या BS-VI वाहनों का पोलयूषन प्रमाण पत्र चेक करते हुए ही नजर आते है क्योंकी वसूली जबरजस्त है। 


8. रसूखदार लोग अपने मर्जी के रजिस्ट्रेशन नबंर लेकर मनचाहे तरीके से लिखवाते. अब जेसे 4147 ऐसे लिखा जाता है की देखने वो “मोदी“ की तरह लिखा दिखाई दे. उसी तरह 2741 “सापा” की तरह लिखा देखाइ दे, वेसे ही 8055 “ BOSS”  की तरह लिखा दिखाई देता है. कुछ नंबर प्लेटों की बेकग्राउंड इतना चमकदार होता है की नबंर ही ठीक से दिखाइ नही देता. मजेदार बात यह है की यह ठीक ट्रफिक पुलिस के नाक के नीचे हो रहा है. क्योंकी ये गडीयां बेधडक सड़क पर आज भी घूम रही है. मुझे नही पता की वो कानून की किस धारा के तहत अब तक बच रहे है   
7.      वातानुकूलियत एसी और वोल्बों बसों के नाम पर आरामदायक बसे चलने लगी है. अकसर उनमे आग लग लगने और उनके गंभीर दुर्घटना के समाचार अखबारों मे छपते रहते है. पता नही कोन इनकी डिजाइन को पास करता है. पूरी बस मे यात्री को निकलने के लिये एक संकरा सा गेट और अदंर ज्वलनशील पर्दे और सीटें, एक नजर मे ही ये यमदेव के वाहन नजर आते है. उपर से इनके मालिक ड्राइवरों पर इसे तेज चलाने का दबाब बनाये रहते है. उम्मीद है ट्रेफिक पुलिस और प्रशासन इन पर अपनी नजरे इनायत करेगा और यह सुनिशिचत करे की  उनके डिजायांन एसे हो की आगे पीछे मिलासकर कम से कम 8 एमरजेंसी गेट हो जिससे उसके यात्रियों को आपातकाल मे उससे बाहर निकालने मे 1 मिनिट से ज्यादा का समय ना लगे।  
यह लिस्ट भविष्य मे और लम्बी होती जायेगी फिलहाल इसे यंही विराम देते हुये दिमाग मे कुछ सुझाव आ रहे है उस पर बात करते है. अब कुछ एसा करना होगा जिससे जो कुछ गलत हो रहा है उसे हर नागरीक आसानी से उजागर कर सके और दोषी को सजा दिलाने मे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके,  क्योंकी  उसे यह समझ मे ही नही आता की जो अभी अभी कट मार कर गया है उसका वो  क्या करे. किसे बोले.
ट्रेफिक पुलिस भी हर सरकारी महकमे की तरह बजट और कर्मचारीयों की कमी का रोना रोती रहती है. उन्होने जगह जगह केमरे लगाने शुरू कर दिये है... पर क्या इन्हे लगा देने भर से काम चल जायेगा. मजबूरी यह है की इसके फुटेज को अदालत भी सबूत मानने से इंकार कर देती है.  
विदेशों के सर्वीलेंस केमरे ट्रेफिक और वाहनों पर नजर रखते है और उन सब केमरों को कंट्रोल रूम में लगातार  नजर रखी जाती है और कंही भी कुछ अनहोनी होती है तो तुरंत उस जगह हर जरूरी साहयता पहुचाई जाती है, दोषीयों को सजा दिलाइ जाती है. उनके नागरीकों को पता होता है की अगर उन्होने कोइ गलती की तो छुपे हुये केमरे मे उनकी हरकत केद हो जायेगी और प्रशासन उन पर भारी फाइन या कडी सजा दे सकता है. यह डर उनके अदंर इतना जबर्दस्त होता है की जानबूझकर वो कोइ गलती करने की हिम्मत नही कर सकते.
एसा ही कुछ हम भी कर सकते है  और यह जन भागदारी से आसानी से किया जा सकता है. आज की हालात मे इक्का दुक्का चोराहे पर ट्रेफिक पुलिस खडी कर देने से समस्या का समाधान नही हो सकता. जगह-जगह केमरे लगाये जा स्कते है. पर वो भी सही तरीके से नही हो पा रहा. 
आज हमारे यंहा करोडों केमरा युक्त स्मार्ट फोन है मेरा सुझाव है ट्रेफिक पुलिस और स्थानीय नगर प्रशासन को मिलकर एक बेव साइट चलानी  चाहिये जिसमे कोइ भी नागरीक तेज और गलत तरीके से चलते वाहनों का विडियों,  ओवर लोड के विडियों और फोटो उस वेब साइट पर  अपने स्मार्ट फोन द्वारा तुरंत पोस्ट कर सके.
उन विडियों और फोटो को आधार बनाकर एसे लोगों के विरूध कानूनी कार्यवाही की जाये. उसी तरह जिस तरह ट्रेफिक पुलिस दोषी  वाहन चालक को तुरंत पर्ची काट देता है. ये कम से कम उन लोगों को रास्ते पर ले आयेगा जो सिर्फ डर की भाषा ही समझते है. आर्थिक दंड का कुछ हिस्सा उसे भी मिलना चाहिये जिसने उस फोटो या विडियो को पोस्ट किया. इस तरह कुछ लोग स्वत: ही निगारानी की भूमिका मे आ जायेगे और ट्रेफिक पुलिस का रोल निभा पायेगे.

सच मानिये इस पर आने वाला खर्च जो उपर लाखों करोडो का सरकारी हिसाब बताया गया है उससे काफी कम होगा ...आप सब का क्या विचार है 

दुर्वेश 




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