Saturday, May 31, 2014

पोलीथीन या पैपर बेग



पैपर बेग और पोलीथीन बेग मे से कौन सा बेहतर विकल्प है यह सवाल हर रोज हजारों लोगों के दिमाग मे उठता है एक बार फिर 5 जून को मनाये जाने वाले पर्यावरण दिवस पर इस सवाल पर चर्चा होगी और पोलीथीन और प्लास्टिक को दोषी बनाया जायेगा. इस लेख मे मेरी कोशिश दोनों के बारे मे उपलब्ध जानकारी का विशलेषण करने की है जिससे आप सभी अपने स्तर पर सही निर्णय ले सकें.
जब भी पोलीथीन और पैपर/जूट बेग के बीच चुनने की बात आती है तो आजकल पैपर और जूट बेग के इस्तेमाल करने पर जोर दिया जा रहा है. इसके पक्ष मे दलील दी जाती है की पैपर /जूट बेग बायोडिग्रडेबल है और इसे रिसायकल भी किया जा सकता है, वंही पोलीथीन बायोडिग्रडेबल नही है. इसे अगर जानवर, चिडिया  खाले तो उसकी जान पर बन आती है. यह नालियां चोक कर देती है नदी और तालाब को गंदा कर पर्यावरण के लिये गंभीर खतरा बन जाती है. यह गंदगी हमारी आंखो को खटकती है. इधर उधर बिखरी पोलीथीन की पन्नियां भला किसको अच्छी लग सकती है.
प्लास्टिक केरी बेग पोलीथीन से बनाया जाता है. दुनिया भर में इसे खाद्य पदार्थ, दवा, और पानी को स्टोर करने के लिये सुरक्षित माना गया है. भारत में भी BIS मानक (refer IS 10146:1982 Reaffirmed on Feb-2003). के अंतर्गत इसे सुरक्षित माना गया है.   पोलीथीन Recyclable, reusable, light-weight, high strength, low carbon and water footprint, tear resistent, space saving, bacteria resistant, waterproof and tear resistant, सस्ता, सास्थ्यकर,  प्रयावरण के लिये सुरक्षित, कम उर्जा खपत के साथ साथ पैपर या जूट बेग से बहुत सस्ती होने के बावजूद यह आज हमे पर्यावरण की दुशमन नम्बर वन नजर आ रही है.
पोलीथीन रैपर और पैकिंग मिठाइ, नमकीन, ब्रेड, केक, बिस्कुट उद्योग और खान पान से जुडे दूसरे व्यवसाय जिसमें खाद्य पदार्थ को सुरक्षित रखना हो तो उसे पोलीथीन पैक किया जाता है. इसे आसानी से वेक्यूम् और नाइट्रोजन फिल पैक में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके इस्तेमाल से खाद्य पदार्थ अब 6 महिने तक आसानी से स्टोर किया सकता है. हमारे देश और अन्य विकासशील देशों मे 10% से 15% प्रतिशत खाद्य पदार्थ खराब पैकिंग और स्टोर की वजह से खराब हो जाता है.  इसकी वजह से सीधा नुकासान तो होता ही है इसके सडने की वजह से निकली मिथेन और कार्बनडाइओक्साइड गेसों के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव पर्यावरण पर उल्टा प्रभाव डाल रहा है. इस सच को हम नकार नही सकते की पोलीथीन रैपर के कारण आसानी से  खराब हो जाने वाले खाद्य पदार्थ को भी अब अधिक दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है. दूर दराज के इलाकों मे इसे सुरक्षित पहुचाया जा सकता है. बाढ और भूकंप जैसी प्राकृतिक विपदा के समय पोलीथीन पैक सुरक्षित खाद्य सामग्री, पानी, दवाइयां जीवनरक्षक का काम करती है.
यह सच है की आज पालीथीन पर्यावरण के लिये खतरा साबित हो रही है, पर क्या इसके लिये हम पूरा दोष पालीथीन को दे सकते है? सच है की जो जानवर इसे खा जाते है उनके जीवन के लिये खतरा साबित होती है इससे नालियां चोक हो जाती है. इधर उधर बिखरी पालीथीन की पन्नियां  देखने मे किसी को भी अच्छी नही लगती.
यह तो पोलीथीन निष्पादन का दोष हुआ क्योंकी हम शान से इसे कंही भी फेंक देते है जेसे आजाद देश मे हमारा यह जन्म सिद्ध अधिकार हो. इसे सही ठिकाने लगाने का काम नगर निगम का अदना से सफाइ कर्मचारी को दे दिया गया है. वो गरीब भी क्या करे बायोमास के बदबूदार कचरे मे से वो पन्नियां केसे अलग करे?
 मजबूरी मे वो भी इसे अनदेखा कर कूडे के ढेर पर पटक देता है या फिर यहां वहां उडती हुई पन्नियां कभी नाली को जाम कर देती है कभी नदी तलाबों के तैरती नजर आती है. जिस पोलीथीन को आसानी से रियासकल किया कजा सकता था हमारी गलत आदतों के कारण हमारे लिये खतरा बन गई. अब इसके लिये हम अपनी आदतों को सुधारे या फिर अपनी शाही आदर्तों को बरकरार रखते हुये पैपर और जूट बेग को अपना कर उस से बढे खतरे को अपने गले लगा लें! 
हमारी इस बेवकूफी को सही निराकरण पर्यावरणवादी और पर्यावरण को समर्पित हमारी सरकार को कागज या जूट से बने बेग के उपयोग मे दिखाइ देता है. इसे इस्तेमाल करो और फिर सडने के लिये इसे कंही भी फेंक दो यह जाने बिना की जब यह सड्ता है तो पर्यावरण का ज्यादा नुकसान करता है. यह नुकसान हमे समझ मे नही आता क्योंकी हमे दिखाइ नही देता. पोलीथीन पन्नियां हमे दिखाइ दे रही है शायद इसलिये हमारी आंखो मे ज्यादा खटक रही है.
यह सही है की पैपर रिसायकल हो सकता है पर क्या आपको मालुम है कि हमारे नदी नालों को प्रदूषित करने मे पैपर उद्योग का बडा हाथ है. सच तो यह है की पैपर या जूट बेग पोलीथीन से कंही बडा खतरा है क्यों विशवास नही होता ना? नीचे दिये आंकडों पर गोर करने से यह बात आसानी से समझ आ जायेगी. 

Weight
140 lbs.
15 lbs.
Cubic Feet
17.8 cu. feet
0.4 cu. feet
Cost
8 to 10 times
Biodegradable?
yes
yes
Recyclable?
yes
yes
Air Emissions
3.225 lbs. solids
1.62 lbs. solids
Petroleum used
3.67 lbs.
1.62 lbs.
BTUs required
1,629,000
649,000
Indefinite recycled life?
no
yes
CEII (Composite Environmental Impact Index)
77.69
6.46

   



Energy (GJ) for manufacture
29
67


Air pollution
 
 


SO2
9.9
28.1


NOx
6.8
10.8


CHx
3.8
1.5


CO
1
6.4


Dust
0.5
3.8


Waste water burden
 
 


COD
0.5
107.8


BOD
0.02
43.1


अगर उत्पादित बेग को दुकानदारों तक उपयोग के लिये पहुचाने पर होने वाले ट्रंसपोर्टेशन का पर्यावरण के असर को भी शामिल कर ले तो पैपर और जूट बेग के लिये स्थति और भी खराब हो जाती है. पैपर उद्योग को बढावा यानी जंगलों का और तेजी से सफाया. प्लास्टिक बेग की तुलना में  जूट या पैपर् बेग की बनाने में तीन गुना ज्यादा उर्जा की खपत होती है. इसके बावजूद जब जूट बेग के सडने से  मिथेन और कार्बनडाइओक्साइड गेसें निकलेगी उसका दुषप्रभाव क्या होता है यह भी हम सब को मालूम है.
लोगों द्वारा कूडा कचरा केसे भी और कंही भी फेंक देने से रोकने का काम किसका है. क्या इसके लिये भी हम को पुलिस का डंडा चाहिये. क्यों नही उस क्षेत्र की साफ रखने की नैतिक जिम्मेदारी उस जगह के आसपास या उसका उपयोग करने वालों के उपर डाली जाये. और जो ना करे उस पर भारी जुर्माना. यूरोप और अमेरिका, सिंगापुर, जिन शहरों की सफाइ की दुहाइ हम देते है वंहा गंदगी फेलाने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है. इसी जुर्माने की डर से लोगों ने कचरा सही तरह से ठिकाने लगाना शुरू किया और अब वो उनकी आदत बन गया है.
बुराइ पोलीथीन बनाने या इस्तेमाल में नही है बल्की इसके इस्तेमाल करने के बाद उसके निस्पादन के तरीके मे है. हम खराब आदत से मजबूर कचरे को मिक्स कर देते है यानी की बायो कचरे के साथ प्लास्टिक कचरा जिसे बाद मे अलग करना असंभव हो जाता है या फिर बेहद मंहगा साबित होता है. हम यह समझ लें की प्लास्टिक बेग अपने आप मे इतनी बडी समस्या नही की उसकी जगह हम पैपर बेग या जूट बेग को इस्तेमाल करने को मजबूर हो जाये समस्या की जड तो हमारी गलत आदत है. अगर पोलीथीन को कंही भी फेकने की जगह उसे सही कचरे के डिब्बे मे डाला जाये तो समस्या ही नही बचती. अगर सफाइ कर्मचारी मिले जुले कचरे को उठाने से ही मना कर दे और रहवासियों को कचरे के किस्म के अनुसार अलग अलग डिब्बे मे डालने पर जोर दे तो समस्या ही ना रहे.
क्या आपको पता है की पालीथीन और प्लास्टिक कचरे से कमाइ हो सकती है. अगली बार भंगार वाला  जब आपकी गली में आवाज लगाये तो उससे इस बारे मे बात करके देखना.
हम सब को मालुम है की पोलीथीन और प्लास्टिक पेट्रोलियम उत्पाद से बनते है, वही जिससे पेट्रोल और डिजल बनता है. 93% पेट्रोलियम इधंन के रूप में इस्तेमाल होता है मात्र 4% ही प्लास्टिक या पोलीथीन बनाने मे इस्तेमाल होता है. हर बार बहस का मुद्दा होता है की प्लास्टिक और पोलीथेन का इस्तेमाल होने के बाद उसके कचरे का निस्पादन केसे होगा. अगर 4% प्लास्टिक कचरे को अंत भी इधन के रूप् मे जला दिया जाये तो क्या बुराइ है!
पोलीथीन को पूरी तरह से रिसायकल किया जा सकता है, अब तो प्लास्टिक और पोलीथीन कचरे को सडक बनाने मे भी इस्तेमाल होने लगा है और उसके उतसाहवर्धक नतीजे मिल रहे है.
पैपर और जूट उद्योग का पानी के स्र्तों को दूषित करने में बडा हाथ है. आजकल पैपर बेग या पैपर कोन/ ग्लास को बनाने मे एसे पदार्थों का इस्तेमाल होता है जो इसे तुरंत सडने से रोकते है, इसके कारण यह भी नालियों को चोक करते है. सडे-गले कागज से मिथेन उत्सर्जित होती है जो कार्बनडाइओक्साइड  से 20 गुना ज्यादा हानीकारक है.
पैपर बेगे के पक्ष मे कहा जाता है की पैपर रिसायकल किया जा सकता है. पर क्या आपको मालूम है रिसायकल पैपर नये पैपर से ज्यादा मंहगा होता जिसे सरकारी अनुदान देकर सस्ता किया जाता है. माना की  रिसायकल पैपर को बनाने में नये पैपर की तुलना मे कम पनी की खपत होती है. पर इंधन की खपत करीब 31% ज्यादा होती है.
अगर एक परिवार पोलीथीन बेग को साल भर के लिये पूर्णत: रोक लगा दें तो साल भर में वो 1 लीटर तेल की बचत कर पायेगा जो आसानी से हर रोज आधा  किलोमीटर गाडी कम चला कर या 40 वाट के बल्ब को 30 मिनिट हर रोज कम जलाकर भी इस कमी को पूरा किया जा सकता है.
मै मानता हू की हमारी बहुत सी पर्यावरण  समस्याओं की तरह पोलीथीन / पैपर बेग की समस्या का हल आसान नही है, पर हम सब के सम्मलित पर ठोस प्रयास अच्छे नतीजे ला सकता है. अपनी आदतों मे थोडा सा सुधार लाकर हम पोलीथीन को अपना और पर्यावरण का दोस्त बना सकते है.
इसके लिये हमे, हमारी कचरा फेलानी की नबाबी आदत से निजात पानी होगी. कचरा निस्पादन के लिये उचित प्रबंधन पर ध्यान देना होगा. देखा जाये तो शहरो द्वरा उत्पन्न कचरे मे मात्र 5% ही प्लास्टिक कचरा होता है. बाकी का कागज, मिट्टी, डायपर्स बायोमास होता है इसलिये पोलीथीन पर रोक इसका सही इलाज नही है उल्टा इसके बंद होने से स्थति और बिगडेगी. इसका सही इलाज हम सब मे उचित आदत का विकास है, जो कचरे को उसके प्रकार के अनुसार सही डिब्बे मे डाले और सही समय पर और सही तरीके से कचरे का प्रबंधन करे. जेसे बयोमास से बनी अच्छी खाद से हाजारों करोड रूपये की बरबादी को सीधे सीधे बचाया जा सकता है.
हम प्रण लें की :

1.     ह्म पोलीथीन और पैपर बेग के अति प्रयोग से बचेगें.
2.     पोलीथीन को प्राथमिकता देगें पर उसके निस्पादन को भी सुनिन्श्चित करेगें.
3.     जब पोलीथीन बेग का सही निस्पादन करने में संदेह हो, तो ही हम पैपर बेग का इस्तेमाल करेगें.
4.     कचरे को उसके प्रकार के अनुसार सही कचरे के डिब्बे मे डालेगें.
5.     अच्छा हो की दुकानदार केरी बेग के लिये ग्राहक से पूछे. जब तक ग्राहक ना मांगे उसे पोलीथीन या पैपर बेग देने से बचे. अगर ग्राहक बेग मे लेने से मना करे तो उसके लिये उसे धन्यवाद दें.
6.     सामान की अतिरिक्त पैकिंग से बचे. हम अकसर पहले से ही पैक किये सामान को एक बेग में और फिर वो बेग दूसरे बेग मे डालते है, जब की उस सामान को कुछ दूर खडी गाडी में रखना भर होता है.
7.     हमारी गलत आदतों के कारण सरकारी एजंसियों को मजबूरन बाजार मे 40 माइक्रोन से कम मोटाइ की पोलीथीन बेग पर रोक लगानी पडी जबकी 10 से 15 माइक्रोन की पोलीथीन भी एक सामान्य पैपर बेग का आसानी से मुकाबला कर सकती है. बस हमे इतना करना है की इस्तेमाल के बाद उसे सही कचरे के डिब्बे मे डालें.  
8.     हम कचरे को पोलीथीन में डालकर उसे सीधे कचरे मे डाल देते है. एसा कभी ना करें. पोलीथीन बेग के कचरे को उसके सही कचरे के डिब्बे मे डालने के बाद पोलीथीन को भी उसके लिये किये गये नियत डिब्बे मे डाल दें.
9.     हम अकसर घरों मे पैदा होने वाले कचरे को पोलीथीन मे भर देते है और फिर उस कचरे को पोलीथीन के साथ ही कचरे की डिब्बे डाल देते है. जो गलत है. इससे पोलीथीन और बायोमास एक साथ मिसक्स हो जाता है जिसे बाद मे अलग नही कर पाते. हमें पोलीथीन मे मोजूद गंदगी को उसके सही कचरे के डिब्बे मे डाल कर पोलीथीन को भी उसके सही कचरे के डिब्बे डालना चाहिये.
10.  100% रिसायकल हो सकने वाली पोलीथीन का फायदा समाज को दें.


No comments:

Post a Comment