Saturday, November 30, 2013

Dynamic electricity tarrif ...an idea

Electricity has brought infinite possibilities to the life of people. Once used to it. It’s user can’t imagine life without electricity, that’s why demand is increasing day by day. This has created more demand then our power plants can cope. More over uneven distribution of electricity over the period of 24 hrs worsen the performance of power plants. Now a days peak load can be as high as 40% of base load. This creates immense stress on grid resulting in sudden collapse of poor quality of electric supply.
Electricity distribution is a complex system of network which connects generation to the user. Ensuring stability of the system requires fine balance of generation and consumption. If supply is more then demand or demand is more then supply, in both case complex network system can become unstable and collapse. It has happened many times in past
To some extent this problem of uneven loading can be solved by implementing 24 hours variable tariff plan for electricity users. This can ensure even distribution of power demand over the 24 hrs of the day. it is possible with  present technology. High rates at peak hours and low rates during lean demand will encourage users to plan activity to take advantage of it. This will ensure load as per base load all the time and avoid sudden peak loads.
Best way to judge overloaded grid is by frequency so metering can be designed in such a way that at low frequency it generates higher units and when frequency is higher it generates low units. Or else electrical meters can have sim card which are connected to the main server form where online rates are fed.
Trend of energy use is made available to users by which user can plan his works accordingly one can decide over using electricity with high rate at peak time to the low rate at lean time. Individual can set rates higher limit meaning that whenever rates crosses certain value as fixed by user, will automatically shuts off/ gives warning alarm to decide whether to remain in grid or get out of grid
Meters should have facility to meter pump in or power out and i.e. these meter should have reading both ways this will encourages distributed powers generators to pump in power to the grid. This will encourage user to install and operate micro power generating / storage units.

Era of mega power will over by next 2 decade. Next will be mini or micro power generator installed by individual user using solar , wind, biofuel, and such system will help these user to become self sufficient in power.

Sunday, November 24, 2013

केरेक्टर या इमानदारी आदर या सम्मान पाने की गांरटी नही है


मै इस बात से सहमत नही हू की केरेक्टर या इमानदार होने से आपको सरकार/समाज से आदर या सम्मान मिल जायेगा. क्योंकी वो यह भी देखते है की आपकी इमानदारी किसके प्रति है आपके द्वरा बोला गया सत्य या अर्ध सत्य से उन्हे कोइ नुकसान तो नही होगा, उससे उन्हे कोइ दूरागामी खतरा तो नही!. 
नेता प्रिंट और मिडिया मे अपनी छवी को बनाये रखने और दूसरे की छ्वी को खराब करने का यह खेल झूठ और सच के सहारे चलाते रहते है. जनता सब जानते हुये भी बवकूफ बनती है 
जिन्होने सत्ता के खेल को करीब से देखा या भोगा है वो इस बात से कभी सहमत नही हो सकते की केरेक्टर या इमानदारी से सत्ता मिलती है या सत्ता से जुडा आदर मिलता है. क्योंकी सत्ता सिर्फ इमानदारी या केरक्टर से नही मिलती. इस बात को इस बार होने चुनाव मे एक बार फिर समझा जा सकेगा.
एसे हजारों लाखों उदाहरण है की सत्ता ने अच्छा केरेक्टर या इमानदार लोग की अवाज को दबाया है. अगर एसा नही होता तो उन्हे कभी जेल मे बंद नही किया जाता जो केरेक्टर या इमानदारी के धनी है. इस देश के 90% आबादी इमानदार और केरेक्टर की धनी है फिर भी वो दो जून रोटी की महोताज है. इस देश मे हुक्मरान उन्हे हिकारत की नजरों से देखते है और उनके वोट पाने के लिये कभी  BPL कार्ड बांटते है. तो कभी उन्हे घुन लगा अनाज बांटते नजर आते है. सत्य और इमानदारी को राजा हरीशचन्द्र की  तरह अपनी पत्नी से बेटे के कफन पर भी टेक्स वसूल करने पर मजबूर होना पडता है.
सच तो यह् है की आप चोर हो या डाकू...आप ने आकूत संप्पति गलत रास्ते की कमाइ है या सही रास्ते से पर अगर आप अपनी ब्रांडिंग जब तक एक इमानदार और संत की तरह कर सकते है तब तक सब ठीक होता है. यानी हाथी की दांत दिखाने के ओर खाने के ओर.
इस देश मे मरे हुये लोगों के बारे मे अच्छ-अच्छा बोलने की पंरपरा है. जिन लोगों का उदाहरण आपने दिया उनके बारे मे उनके विरोधियों की सुने तो तसवीर कुछ दूसरी ही नजर आयेगी. एक बात ओर जो रिषी मुनी सत्ता के साथ थे ग्रंथो में गुनगान उन्ही के हुये विरोधी तो दानव या राक्षस बना दिये गये.
हमे यह नही भूलना चाहिये की सत्य की लडाई में सत्ता ने गांधी जी को जेल का रास्ता दिखाया और भगत सिंह राजगुरू या सुखदेव जेसे क्रांतीकारियों को फांसी.. दूसरे महायुद्ध मे कंगाली की हालात मे पहुच चुके ब्रिटेन और बदलते राजनितिक समीकरण इस देश की आजादी का बहुत बढा कारण बने, देश को तीन भागों मे बांटकर यह आजादी हमे सोची समझी रणनिती के तहत थोपी गई थी जिसे कुछ लोगों ने अंग्रेजों का हृदय परिवर्तन कहा.
इतिहास मे सत्य की जगह अर्धसत्य का खुलकर इस्तेमाल हुआ. सतयुग हो , कलवुग हो या द्वापर , धर्म  सत्ता पर हावी था ...रिषी मुनियों से टकराने का मतलब शाप का डर, जिससे राजा भी भयभीत रहता था, तो आप बताइये डर बडा हुआ या सत्य.
सत्य और इमानदारी एश और आराम की जिदंगी जीने का मंत्र नही है. ना ही यह आदर और सम्मान पाने का. यह तो तपस्या है जो लोग आदर और सम्मान की परवाह किये बिना कुछ लोग करते रहते है क्योंकी यह उनका विशवास है की मानव जाति को अनंत काल तक बनाये रखने का यही एक सही रास्ता हो सकता है. इसी विश्वास के कारण वो हंसते हंसते जहर का प्याला पी लेते है, फांसी पर चढ जाते है या सूली पर लटक जाते है. इसलिये अगर आप सत्य और इमानदारी को आदर या सम्मान पाने का आसान रास्ता समझ बैठे है तो भगवान आपका भला करे!!.
राम हो या कृष्ण वो आग में तप कर कुंदन बने....मै नही मानता वो सब उन्होने आदर या सम्मान पाने के लिये किया होगा. वो सब आदर या सम्मान राजसत्ता के साथ मिलकर कंही आसानी से पा सकते थे....पर तब वो इश्वर तुल्य नही हो पाते.....आदर के साथ....दुर्वेश

Tuesday, November 12, 2013

समाजवाद



हमें समाजवाद की भाषा तो समझ नही आइ. हम मिल जुलकर जन सेवा का काम करना भूल कर हम बेशर्म होकर अपने काम की / माल की ज्यादा से ज्यादा कीमत वसूल ना चाहते है और सामने वाले को कम से कम कीमत देना चाह्ते है. पैसे और रूतबे की शान दिखाते हुये मंहगी गाडी  में घूमते है, फिर बजारवाद तो आना ही है .
 दबंगी, चालाकी, मक्कारी, चापलूसी गुण में गिनने लगे. जब किसी की प्रतिष्ठा इस बात से हो की उसका बैंक् बेंलेस क्या है...और वो किस गाडी मे सफर करता है. जब इस बात को अनदेखा कर दिया जाने लगे की कमाइ के साधन पवित्र और कानूनी है या फिर कुछ ओर जब रक्षक ही भक्षक बन जाये तो समाज और देश को बरबादी से कोन रोक पायेगा.. अगर नही, तो  फिर बजारवाद तो आना ही है .
पढा लिखा होने का मतलब जरूरी नही की आप देश और समाज के कानून के साथ  हो समाज के लिये हो. आज ज्यादा पढा लिखा होने का मतलब चालाकी, मक्कारी, चापलूसी को अपने लिये इस्तेमाल करने की कला को जानना है.. जो सीख गया वो तर गया और जो नही सीख सका वो लाइन मे सबसे पीछे खडा दिखाइ दे रहा है. अगर आप पैसा फेंकने को तैयार है तो कानून के जानकार आपको बतायेगे की केसे अपने फायदे के लिये उसका इस्तेमाल किया जा सकता है. तो फिर बजारवाद से शिकायत केसी.
हम भले ही किसी जमाने मे समाजिक थे पर अब समय का पहिया उल्टा चल पडा है. जिस संस्कृति ने ‘हम’ का पाठ पढाया आज वो मै ...मै कर रही है. समाज तेजी से अपने मूल्य बदल रहा है, सादगी कब हमारी कमजोरी बन गई हमे पता ही नही चला. राजनिती भी सफेद से गरूये रंग मे ढ्लने लगी. इन बदलते मूल्यों मे शब्द भी  अपनी परिभाषा बदल रहे है. अन्ना जेसे लोग गंदगी से भरे तालाब मे लहर तो पैदा कर देते है पर गंदगी की सफाइ का टाइम आया तो अन्ना अलग खडे दिखाइ देते है, तो  फिर बजारवाद तो आना ही है.
हमे समय ने इस हद तक सुविधा भोगी बना दिया है कि अपनी सुविधा के लिये हम कुछ भी कर गुजरते है. हमने हम की परिभाषा को इतना समित कर लिया है के पडोसी भी हमे दुश्मन नजर आता है. जब तक हमारी सुविधा बरकारार है हमें कोइ चिंता नही. हमने समाज को कमजोर किया हर वो काम जो समाज मे आसानी से मिलजुलकर हो सकता था हमने खुद सरकार की झोली मे डाल दिया और जब सरकार नही कर सकी तो उसे बजार ने हडप लिया, तो  फिर बजारवाद तो आना ही है ..
सरकारी अस्पतालों हो या स्कूल उनका जो हाल है किसी से अब छुपा नही है. हमने भी तो सरकार की बुरी गत नबाने मे कोइ कसर नही छोडी. हम ने हर सार्वजनिक काम उसके जिम्मे छोड दिया. इस उम्मीद मे की वो हर काम मुफ्त मे या बेहद सस्ते मे कर देगी. चाहे वो बिजली हो पानी हो या फिर सडक हर जगह हमने चोरी की और सीना जोरी की. उसका नतीजा की जिस सडक पर कभी 10 रूपया चुंगी लगती थी अब 100 रूपये है...पहले 10 रूपया देने मे नानी मरती थी अब 100 रूपये खुशी खुशी दे रहे है तो फिर बजारवाद तो आना ही है ..
हम चाहते है की सरकार हमे पानी 5 पैसे प्रति लीटर से भी कम दामों मे दे. वही पानी हम बाजार से 15 रूपये में खरीदते है. हद तो यह है की हम 15 रूपये मे पानी की बोतल खरीद कर गर्व महसूस करने लगे है. तो फिर बजारवाद तो आना ही है ..
सरकार भी हमें सब्ज बाग दिखाते हुये विश्व बेंक और अन्य विकसित देशों से कर्ज पर कर्ज लेती  रही और लोगो को मुफ्त खेरात या रियायत देकर सस्ती लोकप्रियता बटोरती रही. आज कर्ज मे डूबा देश विश्व बजार में बिकने को तैयार है. तो फिर बजारवाद तो आना ही है ..
हमारा लोकतंत्र टिका है वोट बेंक पर. जिसे वोट देना है उसको अपनी ओर मोढने के लिये प्रचार की जरूरत होती है प्रचार होता है पैसे है ...बहुत सारे पैसे से. ये पैसा चंदे से हासिल नही किया जा सकता. ना उसे खून पसीने की कमाइ मे से उसे दिया जा सकता. उसे हासिल किया जाता है उन लोगों से जो बाजार से पैसा कमाना जानते है अगर यह सब सही है तो फिर बजारवाद तो आना ही है ..
सच तो यह है की हम ने बजारवाद को अपना लिया है. इसलिये अब हमे किसी मुगालते मे नही जीना चाहिये क्योंकी  बजार चलता है पूजीवादियों से, राजसत्ता से, राजनेताओं से, डर से, लडाइ से और आंतक वाद से, इसलिये अब बाजार को कोसना या गाली देना छोडो और जो चल रहा है उससे बेहतर विकल्प दे सकते हो तो दो.
वर्ना अपनी समझ से तो जब तक देश का प्रत्येक नागरिक, 'व्यक्तिवाद' को त्याग कर, समाज  को नहीं अपनायेगा तो देश में बजारवाद आना ही है


Sunday, November 10, 2013

ICE- in case of emergency (...?.....)



उत्तरा खंड के वासी और और वंहा गये प्रयटक और तीर्थ यात्री गंभीर त्रासदी से गुजर रहे है. यह एक प्राकृतिक आपदा थी जिसने यह भीषण तबाही मचाइ. पर एसा पहले भी हुआ है और आगे भी होता रहेगा. क्योंकी एसा बहुत कुछ है जिस पर अब भी हमारा कोइ बस नही है. कुछ लोग इसके लिये बेतरतीव विकास और इंसानी लालच को दोष दे रहे तो कुछ लोग ग्रह-नक्षत्रों को.
यह भी सच है की अगर हमने कुछ एतिहियाती कदम उठाये होते तो इसकी गंभीरता को कम किया जा सकता था. हर बार की तरह हमारी सेनाओं ने एक बार फिर अपने को साबित किया की वो शांति के समय भी किस तरह अपने फर्ज को निभाने मे सबसे आगे खडी होती है.  वो शायद एसा इसलिये कर सकी क्योंकी वो इसके लिये प्रशिक्षित थी.
इसके साथ ही बहुत सारे NGO और देश भर मे मोजूद बहुत सारी स्थानिय संस्थाओं ने इसमे बढचढ कर मदद की. पर इसमे आपसी सामंजस्य का अभाव हम सब ने महसूस किया.
यह सच है की जिन पर यह गुजरी उसे शब्दों मे व्यक्त नही किया जा सकता पर एसे समय मे लोगों की थोडी सी मदद और हिम्मत फिर से अपने पेरों पर खडा मे एक अहम भूमिका अदा करते है. इसलिये यह समय उन्हे पहचानने का  भी है जो इस कष्ट के समय आपके साथ कंधे से कंधा मिलाये खडे है. जिन्होने समय पर हस सभंव मदद की. हम उन्हे पहचाने और उन्हे और मजबूत बनाने के लिये हर जरूरी कदम उठाये और उन्हे भी पहचानने जो इस त्रासदी की अनेक वजहों मे से एक थे.
इस त्रासदी से कुछ प्रमुख सबक जो मेरी समझ मे आये वो इस तरह है:

1.   खतरनाक और नाजुक स्थलों को पूरे देश मे चिन्हित करना और उन्हे खतरे के अनुसार ग्रेडिंग़ करना और उसकी सूचना सार्वजनिक करना और उससे जुडे खतरों के बारे मे आम नागरिकों को जागरुक करना.
2.   आपदा कंही भी और किसी भी रूप मे आ सकती है फिर वो चाहे भूकंप हो, दंगे हो, महा मारी हो, बाढ हो, सुनामी हो या फिर न्यूकिलियर रेडियेशन, ट्रेन एक्सीडेंट या फिर आंतकवादी हमला. हर नागरिक यह सुनिशिचित करे की उसे केसे इससे निबटने के लिये सहयोग करना है क्योंकी आप इस मुगालते मे ना रहे कि एसा आप के साथ नही हो सकता .
3.   आपदा प्रबंधन जरूरी नागरिक ट्रेनिंग का हिस्सा हो. इसे हम स्कूल शिक्षा मे शामिल कर बच्चों के लिये अनिवार्य कर सकते है. NCC को स्कूलों और कालेजों मे अनिवार्य किया जाये. कब तक शिक्षा को हम किताबी ज्ञान तक सिमित रखेगें.
4.   अति खतरनाक जगहों पर रहने वाले आम नागरीकों को जरूरी ट्रेनिंग देना. और यह सुनिश्चित करना की जो लोग अति खतरनाक जगहों पर पर जाना चाहते है उन्हे इसके लिये जरूरी ट्रेनिंग मिली हो.
5.   एसी व्यवस्था हो जिससे एसी जगहों पर लोगों का सही संख्या और लिस्ट का पता लग सके.
6.   शांति के समय moke drill  जिसमे आम नागरिक इसका हिस्सा हो , समय समय पर आयोजित की जानी चाहिये. जो हमारी तैयारी को सुनिश्चित करेगी. अब तक यह सिर्फ सेनाओं के लिये ही आयोजित की जाती है. या फिर कभी कभी फायर बिर्गेड इसको करती नजर आती है.
7.   सभी अपने मोबाइल मे उस जगह से संबधित आकस्मिक नम्बर जरूर स्टोर करे
8.   ICE(in case of emergency) के नाम से एसा नम्बर स्टोर करे जिसे अगर आप किसी मुसीबत मे फंस गये हो तो मददकर्ता आपके मोबाइल से उस पता कर उस नम्बर पर मेसेज दे सके. एसे समय मे बेहद किमती समय अकसर सही नम्बर पता करने मे नष्ट हो जाता है.

जेसे जेसे ओर सुझाव मुझे मिलते जायेगे मे उसे इस पोस्ट में उसे शामिल करता जाउग़ा.