Tuesday, October 2, 2012

अरविंद जी क्या आपको लगता है की आप ने राजनितिक पार्टी बनाने का एलान कर गलत किया


अरविंद जी क्या आपको लगता है की आप ने राजनितिक पार्टी बनाने का एलान कर गलत किया अगर नही तो फिर चिंता और अफसोस क्यों ......  हो सकता आप सबसे अच्छा विकल्प ना दे पायें पर एसा भी नही होगा की आप सबसे खराब विकल्प दे बेठें वेसे भी जब आप पार्टी बनाने की कोशिश करेगे तभी आप इस देश की रजनितिक पार्टी की असली परेशानियों से  रुबरू हो पायेगे. 
आज देश को राजनितिक विकल्प की सख्त जरूरत है यह सच है कि अन्ना साथ  होते तो अच्छा था. पर उनके साथ ना होने का, आपके अपने निर्णय से पलटने का बहाना ना बन जाये.
वेसे अगर धर्म संकट की इतनी चिंता है तो आपको भी हम जेसे देशवासियों की तरह आराम से घर बैठ कर हर नेता और राजनेता को गाली देते हुये सोचना चाहिये था की बहुत बडा नेक काम कर लिया.

चंद घंटों के लिये रास्ता जाम कर देना , एक दिन के लिये देश बंद करवा देना या फिर जंतर मंतर पर भीड  जमा कर लेने से कही बहुत बडा काम है इस देश को सही राजनितिक विकल्प उपल्ब्ध कराना. आपको पता चलेगा की जो लोग आपके साथ भीड थे... वोट देते समय वो किसी और के है.
जब आपके कार्यकर्ता हर छोटे बडे काम के लिये आपके सामने पेसे के लिये हाथ फेलाकर खडे हो जायेगे या फिर आपका नाम लेकर जबरदस्ती चंदा उगाही करेगे. केसे आप अपनी पार्टी मे गुंडे और मवालियों को जुडने से रोक पायेगे. आपको जब पार्टी चलाने के लिये रूपये की जरूरत होगी और जो आपको यह साधन उपल्ब्ध कराय्रेगा वो आप से कुछ उम्मीद करेगा.

 देश देखना चाहता है की इन सब का विकल्प केसे निकालते है.   

Monday, October 1, 2012

मंथन ...एफ़डीआई


 बुराइ ताकतवर है क्योंकी वो अकसर एकजुट होती है. और अच्छाइ कमजोर क्योंकी वो अकसर बिखरी हुई होती है . वेसे भी जो खुद आसानी से बिखर जाता हो वो केसे लोगो को एकजुट कर पायेगा . हमारी इसी कमजोरी ने FDI के लिये रास्ता साफ किया . FDI के विरोधी उसके चंद समर्थकों से कही ज्यादा थे...पर वो हार गये. 51% हिस्सेदारी का लोग मतलब ही नही समझ पाये
भारत मे व्हाइट और ब्लेक अर्थ व्यवस्था है। मेरे हिसाब से व्हाइट अर्थ व्यवस्था वो जिससे सरकारो को  टेक्स मिलता हो और ब्लेक वो जिससे सरकारो कोई टेक्स ना मिले । FDI के कारण ब्लेक अर्थ व्यवस्था खतरे मे है। सरकार खुश है की एफ़डीआई से उन्हे टेक्स ज्यादा मिलेगा। पर वो भूल जाते है की ब्लेक अर्थ व्यवस्था गाँव ,  देहात  और कस्बो की व्यवस्था है। किसान मजदूर गरीब देहाड़ी की व्यवस्था है । FDI की मार इन पर पड़ेगी। छोटे दुकानदार ऑनलाइन सामान विक्रेता के सामने नही टिक पायेगे। 
अब इस देश मे असली कटपुतली सरकारों के दर्शन होंगे. आगे स्थति और भंयकर होने वाली है. आगे आने वाला समय अब गुलाम सरकारों का है. यह देश 65 सालों से गरीबी मिटाओ का नारा देता रहा....अब नारा होगा गरीब मिटाओ...ओह क्या इसके लिये उन्हे किसी नारे की भी जरूरत होगी
सरकार  अपनी कमाई  के हर 100 मे से 28 रूपये व्याज के देती है। अब नंगा पहनेगा  क्या और नहा कर निचोड़े क्या 
...FDI का दुनिया भर मे यही कुचक्र है.