Wednesday, December 21, 2011

एक सपना सा लगता है

बनिया, बेटी की शादी और एफ डी आई....Retail FDI... Social responsibility 
पर प्रतिक्रिया लेख

एक सपना सा लगता है की हर भारतीय अपनी मर्जी का मालिक था। स्वयं की खेती या स्वयं का धंधा था। नौकर किसी का नहीं था।
यह कोन से जमाने के किस भारत की बात हो रही है? जिस जमाने के सपने आप दिखा रहे है वो जमीदारी और राजे महाराजाओं का युग था. आम आदमी तो कीडे मकोडो की तरह सेकडॉ की संख्या में या तो खेतीहर मजदूर की तरह बेगार करता था फिर अछूत था. उन्हे दो जून रोटी मिल गई तो उस मालिक ( जमीदार) की दुआ मांनते थे. एक छोटे से कर्ज में गरीब अपने घर बार और खेती की जमीन से जुदा जो जाता था. जिस साहूकार की आप तारीफ कर रहे है उसकी गिद्द दृष्टि उस गरीब की जमीन जायदाद और बहू बेटीयों पर होती थी. लठ्ठ का जमाना था..जिसकी लाठी उसकी भेंस. जी हजूरी मे झुकी आंखे. अगर राज्य के विरूध जरा भी मूह खोला तो सीधे मौत. किस जमाने की बात कर रहे है... आप.! 
आम आदमी जानवर से बदतर था और राजा इतना शक्तिशाली और दंभ से भरा हुआ की अपने को भगवान की तरह पुजवाता. आम आदमी उनेक द्वारा बनाये नर्क को भोगने का शापित वरना क्या कारण था की मोका मिलते ही लोग शहरो की तरफ भागे और मजदूर बन गये. आज भी किसानों कि हालत किसी से छुपी नहीं है. आज भी वो बेचने की जगह आलू को सड़क पर फेंकने को मजबूर हो जाता है. फसल पर 20 पैसे और बाद में 20 रूपये किलो...क्यों.

अब राजा महाराजा तो रहे नही, साहूकार मतलबी है. सरकार के पास कल्याण कारी योजनाओं के लिये पैसा है नही, नेता का धन स्वीस बेंक में जमा है. आम आदमी के पास थोडा बहुत अगर पैसा है तो वो उसे अपने बुरे समय के नाम पर दबा छुपा के बैठा है. विकास के लिये पैसा आये तो आये कहां से.... जो थोडा बहुत विकास आप देख पा रहे है सब उधार का.... अब अगर विकास के लिये उधार ही लेना है तो उससे तो अच्छा है की जिस से उधार लिया जाये उसे ही मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया जाये. कम से काम इससे योजनायें समय पर चलू हो सकेंगी. दूसरा उन्हे पैसा वापस तो नहीं करना पडेगा.
इस देश का आज लाखों लोग  15 रूपये एक बोतल पानी खरीदने के लिये प्राइवेट दुकान दार को दे सकते है, वही आदमी चाहता है की सरकार उन्हे पानी 5 पैसे प्रति बोतल से भी कम दाम पर दे. आप और हम भी भावनाओं मे बेहकर 5 पैसे प्रति बोतल की वकालात करने लगते है. जब की सब को पता है की इसकी असली कीमत भी वही आम आदमी ही दे रहा है. या फिर पानी  नाम पर कीचड पी रह रहा है.  5 पैसे के फेर मे 15 रूपये मे पानी बेचने वालों की चांदी हो जाती है.

पानी हो, सडक हो, या फिर  बिजली हो....ठेठ सरकारी योजनाओं का हाल यह देश देख रहा है उनके भरोसे रहे तो...! लालटेन और बेलगाडी युग वापस आने में देर नहीं लगेगी. सरकरी योजनाओं में पब्लिक धन की जो बरबादी हमने की है. उसके कसीदे पढने के लिये यह जगह छोटी है.

मामला सिर्फ इतना भर है की कोई आप के देश के बजार को देख पा रहा है और आपके यहां आकर पूजी लगाना चाहता है. उसे लगता है की इस देश के बजार में वो मुनाफा कमा सकता है. उसकी पूजी इस देश में थोडा बहुत विकास लायेगी, यह विकास जेसा भी होगा और जो भी होगा वो उधार की पूंजी से बेहतर होगा...कम से कम उस कर्ज को लोटाने की जरूरत तो सरकार को ना होगी. वरना आम आदमी के टेक्स का पैसा तो कर्ज चुकाने में ही चला जायेगा.

इस पूंजी को कुछ लोग इस देश में लाने से कतरा रहे है और उन्हे लगता है की अगर ऐसा किया गया तो यह देश फिर से गुलाम हो जायेगा...उन्हे लगता है की इस्ट इंडीया वाली गलती फिर से दोहराई जायेगी. क्या आज वाकई ऐसा हो सकता है?? क्या उन्हे पूजी निवेश करा देने भर से हम फिर से गुलाम हो जायेगे? और भारी कर्ज लेने के बावजूद हम गुलाम होने से बचा जायेगे...अब मेरा खुला सवाल ...यह देश अपने विकास के लिये पूंजी की व्यव्स्था कैसे करे...?

FDI आयेगा तो हो सकता है की आलू की चिप्स को वो 200 रूपये किलो में बेचे...पर कम से कम आलू 20 पैसे किलो में बरबाद होने से तो बच जायेगा. इसलिये भावनाओं में ना बहकर हम समय को पहचाने. और उनकी पूंजी को अपनी ताकत बनाये. ऐसा राजनितीक माहोल बनाये की वो पैसा हमारी शर्तों पर लगाये. और जिस सेक्टर में हम चाह रहे है उसमे लगाये.....इससे आगे बढकर सिमित संख्या मे उन्हे रिटेल सेक्टर में आने दे...कुछ समय उसे देखे परखे उसके बाद इस पर फेसला करे की क्या अच्छा था और क्या बुरा. वरना कही ऐसा ना हो की ख्याली खतरे के चक्कर में यह देश पूंजी निवेश का एक अच्छा मौका हाथ से गंवा दे.

...वो खतरनाक है इसलिये की वो हिम्मती है, पर इस देश के कानून से उपर नहीं. भले ही उनकी दुकाने आलीशान होंगी पर अच्छे गोदाम और अच्छी सडको के बिना सब बेकार होंगी.

रही बात RSS के बंदो के सेवा भाव की तो उसका FDI से क्या लेना देना वो तो आगे भी एसे ही चलता रह सकता है.

चलो एक कहानी सुनाता हू...एक कसाई बकरे को बेचने बजार जा रहा था गर्मी के दिन थे भरी दुपहरी थी रास्ते में एक गांव में पानी पीने के लिये रुका गांव के लडको को जब पता चला की बकरा कटने के लिये हाट जा रहा है तो उन्होने उसे वंही काटने को बोला. कसाई भी लालच में आ गया सोचा भरी गर्मी मे हाट जाने से अच्छा है कि इसे यही काट कर बेच देने में भलाई है, और वो बकरा काट बैठा....

लडके समझदार थे उन्हे मालूम था की अब कसाइ कटे बकरे को लेकर यहा से कही नही जा सकता.....और उन्होने उससे बकरे का मांस अपने चाहे गये दाम पर ही खरीदा...हो सकता है इस कहानी से आप भी कुछ समझ पा रहे हों...!

जब तक  हम जागरूक है....तब तक हमारे यहां पूंजी लगाकर खतरे मे वो है हम नही ...

Friday, December 16, 2011

Why don't we just live life?

Why don't we just live life?
we can't, we are born with minds and not with tails. Mind which question every thing around us. Explore every thing and that’s the reason we reached to present stage of our existence. We came out from caves and now living this life. The quest to know who we r why we r, what we r, how we r and where we r will keep our minds exploring and reasoning every thing around us until and  we find answer.

why don't we just live the life we have and treasure every single minute we spend here with our loves one and the people who we can meet?
… yes our ultimate goal is to live here with our love ones and with the people we  meet. But there are forces around us not allowing us to do that all time and at all places ..let it be the forces of natural calamity …disaster, disease, environment or simply war. So there has to be some one from us working consciously and continuously on it.

Its perfectly ok to live the way world around us offers. most of us live that way only. its like running on trade mill but some of us dare to step down and moves away from it. global issue like environment, hunger and population can not be addressed properly without knowing the reason of our being. the more we r knowing about mystery of life ..the more we r close to the solutions. as i said till now u could live your life the way u want but as we progressing we r getting more global. it means that even though your acts are in perfect harmony with local surroundings, some one else can make your life hale!

Finding answer to the basic question will remain valid to the curious mind of some of us. recent news that scientist has invented chip which replicate human brain thinking...if that’s true...then we will see an massive change in next few decade. where we will b surrounded with designer babies and human robos...it means what!..no wonder when u come across ‘terminator’ ( hope u hav seen this movie..:) like situation when war will be fought by machines. When these machine will be designed to kills humans and only humans.

today Also war is getting more with machine but right now these are controlled by humans..but later due to its complicacy it will be controlled by more intelligent machines who can think like we do…? So if we don’t know our own true purpose and jus go with knowledge and science where it will lead to...very theoretical and very imaginative question but some body has to work on it before its too late.

… look if we don’t do some other will do…and it is not necessary that they will take care of us too… In India, today most suffered population r our tribes. They were in total harmony with nature, keeping there desires and need to the bare minimum.  in that way they lived there life with nature for thousands of years.   They are now at the verge of extinction due to non of there fault. there forest …river and mountains are exploited by so called smart and intelligent civilization. It means being simple and harmonious is not the perfect way of living. As today it will not take us long on the road of survival. Those who think and act global will decide world fate.
durwesh

Monday, December 12, 2011

भ्रष्टाचार के नाले में

मेरा देश इंडिया दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र
इसका नागरिक होने का अविवादित लाभ यह कि
यहां आप पूरी तरह स्वतंत्र है कि
सच-झूट, सार्थक-निरर्थक, मीठा-कड़ुआ
आप जो चाहे कर लें
भ्रष्टाचार के नाले में
जब चाहें, जितना चाहें नहा ले
पर इसी देश ने अपने नागरिकों को
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी दी
इसी का लाभ लेते हुए
मैं कुछ कहने जा रहा हूं
ओछी राजनिती का गंदा राज खोलने जा रहा हू
क्षमा करें यदि आप ‘ऑफेंडेड’ या आहत हों
पर क्या गलत कर रहा हूं?
‘फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ नामक अधिकार
का ही तो प्रयोग कर रहा हूं,
इसलिये राज की बात ध्यान से सुने कि
प्रधानमंत्री देश का असरदार सरदार होता है
पूरे देश के राजकाज को
करीने से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है
अगर वह बेईमान लोगों को साथ लेकर चल रहा हो
उनको जो जी में आए उसे करने की छूट देता हो
उनके क्रियाकलापों की समीक्षा करने से कतराता हो
तो उसे पाक साफ नहीं कहा जा सकता है
क्योंकी कोई भी ईमानदार व्यक्ति
बेईमान लोगों की शर्तों पर
राजकाज चलाने को तैयार नहीं हो सकता
भ्रष्टाचार बढ़ता जाए
लोग ‘त्राहि माम’ कहने लगें
फिर भी प्रधानमंत्री ‘गठबंधन धर्म’
जैसे भ्रामक शब्द
बोलकर अपने दायित्व से बचता रहे
और निहायत बचकानी हरकत करते हुये
स्वच्छ छवि वाली स्वपोषित स्वघोषित घोषणा कराता रहे
कभी-कभी तो मुझे लगता है
कि वो महात्मा गांधी के
‘तीन बंदरों’ का अनुयायी हैं
इसलिये भ्रष्टाचार के बारे में वो
न देखता है, न सुनता और न कुछ बोलता हैं
शायद चुप्पी लगा आँख मूंद सोच लिया उन्होने की
समय के साथ, सब शांत हो जाएगा
जनता कि है यादाश्त कमजोर, सब वो भूल जयेगी
पर उन्हे नही मालूम की जनता को
खाने को मिले या न मिले
पास में पहनने-ओड़ने को कुछ रहे या न रहे,
खुले आसमान के नीचे पडे रात गुजारनी
फिर भी वो दाग़ी को छोडते नहीं ये बात है पुरानी

Sunday, December 11, 2011

LPG गेस स्वास्थय और जेब के लिये खतरा

जब LPG गेस पर लिखने का मन में विचार आया तो लगा की इसके बढे हुये दामों ने मेरा दिमाग घुमा दिया है, ऐसा कैसे हो सकता की लाखों घर का जिससे खाना बनता हो उसमे कुछ खराब हो. जब नेट पर इस बारे मे जानकारी ली तो मुझे पता लगा की मैं गलत नहीं था पचास सालों से भी ज्यादा, भारतीय घरों की रसोई में खाना बनाने वाली गेस के बारे में इस नजर से कभी देखा ही नहीं गया. ज्यादा से ज्यादा गेस लीक से होने वाली आग की दुर्घटनाओं के बारे में लोगों को सचेत भर किया गया.
इसमे कोई शक नहीं की यह हर तरह से लकडी के चूल्हे और अगीठी से तो अच्छी है. इस का चूल्हे और अगीठी तुलना में आधुनिक, साफ सुथरा और सस्ता होना इसके प्रसार का बहुत बढा कारण रहा. ये चूल्हे और अगींठी से ज्यादा दक्ष भी साबित हुई.
भारतीय घरों के अदंर LPG गेस पर खाना बनाने से होने वाले नुकसान का अभी तक कोई अधिकारिक सर्वे मेरे पास नहीं है, मुझे नहीं लगता इस बारे मे कभी सर्वे हुआ होगा. इस तरह के सर्वे विदेशों में जरूर हुये है. वहां हुये सर्वे के परिणाम चिंता जनक है. हम सब जानते है की गेस के जलने से कार्बन डाइ ओक्साइड बनती है पर अगर किसी कारण से गेस ठीक से पूरी ना जेल तो वो जहरीली कार्बन मोनो ओक्साईड गेस भी बनाती है. जो गंध रहित बेहद जहरीली गेस होती है और हमे इसका पता भी नहीं चलता. अकसर एसी गंभीर दुर्घटना के समाचार ठंड के दिनों मे मिलते रहते है की जब बंद कमरे में खाना बना और फिर सोते समय ही इस गेस ने सब को अपने आगोश मे ले लिया.
गेस चूल्हे में बर्नर के जलने पर और भी कई तरह की गेस निकलती है जो हमारे स्वास्थ के लिये नुकसान देह है. यह बात सही है की अगर खिडकी खुली हो तो सब गेस बाहर निकल जाती है पर यह कुछ हद तक ही ठीक है क्योंकी गेस जो बर्नर से निकलती है वो खिड़की से बाहर निकलने से पहले सारे घर में भी फेलती है उसी तरह जेसे खाने की भीनी भीनी गंध घर के सारे लोगों को बता देती है की घर में क्या बना रहा है.
गेस में मिलावट का अंदाजा उसके फ्लेम को देखकर किया जा सकता है. रंग बिरंगी लो मिलावट या बर्नर चोक होने का संकेत हो सकता है. खाना बनाते समय गेस का धुआ चाहे या अनचाहे हमारे अदंर जाता है. खासकर जब आप गेस के उपर झुक कर काम कर रहे होते है तब आप हर सांस के साथ इन सारी गेसों को भी अदंर ले रहे होते है. BTEX (benzene, toluene, ethylbenzene and xylene), methane, radon and other radioactive materials, organometallic compounds such as methylmercury organoarsenic and organolead, mercaptan odorants, nitrogen dioxide, carbon monoxide, fine particulates, polycyclic aromatic hydrocarbons, volatile organic compounds (including formaldehyde), and hundreds of other chemicals. यह सब गेस रोटी सेंकते हुये रोटी में भी जाती है. इन सब के बुरे असर में बारे में कृपया नेट में खोजे. हम तो बस इतना कहेगें की यह एक बहुत ही धीमा पर मारक जहर है. क्या पता की यह आपके शरीर के मोजूद बिमारीयों की एक बहुत बढी वजह हो.
इसका तुरंत कोइ असर नहीं होता इसलिये हम इसकी चिंता नहीं करते. सिगरेट के धुयें का भी तो तुरंत कोई असर नहीं होता. पर हम सब को मालूम है की सिगरेट पीने से क्या होता है. इस पर भले ही हमारे देश में सर्वे ना हुये हों पर विदेशों में हुये सर्वे बताते है की गेस और गेस चूल्हे को हानि कारक ना मानना बहुत बढी गलती है.
धुम्रपान के पैकट पर जो लिखा गया क्या वो गेस चूल्हे और गेस सिलिडंर पर नहीं लिखना चाहिये. ऐसा करने पर कम से कम गृहणियां कुछ तो सावधान होगीं. किचन को हवादार बनाने पर वो गंभीरता से सोचेगी. आज किचन को हवादार सिर्फ इसलिये बनाने की सोचते है कि तलने पर तेल की वाष्प किचन को चिकना किये बगेर बाहर निकल जाये. उन्हे आज भी गेस से कोई खतरा नजर नहीं आता.
यह गर्म और हल्की होने से उपर के कमरों में भी तेजी से फैलती है. अगर गेस लीक हो रही हो तो वो और भी गंभीर प्रणाम देती है. ये हल्की लीक किचन के वातावरण को प्रदूषित करती रहती है. आकडे बताते है की यह अस्थमा और सांस की अन्य बिमारी की एक बडी वजह है. इसलिये अगर खाना बनाने वाले को असथ्मा या फेफडॉं की बिमारी के अन्य रोग है तो वो इसे और बढायेगी. यही हाल गेस से चलने वाले बाथरूम वाटरहीटर का है. बंद बाथरूम में ये और भी नुकसान दे सकते है.
अब गेस को अलविदा कहने का वक्त आ गया है. उसकी कई वजह है. पहली वजह उसकी बढती कीमते, दिनों दिन इसके घटते स्रोत और तीसरी सबसे बढी वजह स्वास्थय के लिये खतरा.
खतरे की एक और वजह इस पर सेंकना और  तलना आसान होना. अब हर किसी क मालूम है की तला हुआ और सिका हुआ खाना हमारी सहेत के लिये कितना हानीकर है पर हम स्वाद से मजबूर ऐसा करने के लिये मजबूर है जब तक की डाक्टर का अंतिम फरमान ना आ जाये. देखा जाये तो तला हुआ या सिका हुआ खाना अब जेब पर भी हावी होने लगा है, क्योंकी यह उर्जा का बहुत बढा हिस्सा बरबाद करने का कारण है.
गेस की उपलब्धता तेजी से कम होती जा रही है. आजकल 21 दिन पहले नबंर लगाना पडता है फिर भी कोई भरोसा नहीं की गेस समय पर मिल ही जायेगी. दाम दिनों दिन बढते जा रहे है. इसलिये अब यह सही समय है कि हम इसके विकल्प की तलाश करें. और इसकी तुलना बजार में उपलब्ध दूसरे साधनों से करें.
आज हमारे पास सोलर और बिजली पर खाना बनाने का कम से कम दो सबसे बेहतर तरीँके है. क्यों ना हम सोलर को प्राथमिकता देते हुये दूसरे नंबर पर बिजली और तीसरे नबंर पर गेस को रखे. आज माइक्रो वेव और इंडक्शन कूकिंग जेसे दक्ष उपकरण बजार में है. जो लोग गेस को बिजली से सस्ता समझते है,  गेस पर सबसिडी के खत्म होते ही उन्हे उसकी असली कीमत का अदांज हो जायेगा. अच्छा हो की हम गेस को बडे उद्योगों और बिजली घरों में इस्तेमाल होने दे क्योंकी वहां शायद अभी यह इंधन का अच्छा विकल्प सबित हो! वेसे भी वहाँ के उपकरण उसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते है.
अगले किसी लेख में हम गेस चूल्हे की तुलना में इंडक्श्न कूगिंग और माइक्रोवेव को परखेगे! तब तक आप सभी से इस लेख पर प्रतिक्रिया जानने की उम्मीद है.