Saturday, May 28, 2011

विश्व पर्यावरण दिवस...क्या अहमियत है इसकी?


पूरे विश्व का आर्थिक तंत्र इस समय भोगवाद पर टिका है । अधिक से अधिक उपभोक्ता सामग्री बाजार में उतारो, लोगों को उत्पादों के प्रति विज्ञापनों द्वारा आकर्षित करो, उन्हें उन उत्पादों का आदी बना डालो, हर हाल में जीवन सुखमय बनाना है, और सुख की परिभाषा जब् बजार तय करता हो तो यह एक मजाक ही लगता है कि एक तरफ पर्यावरण बचाने का संदेश फैलाया जा रहा है, और दूसरी ओर लोगों को अधिकाधिक कारें खरीदने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कार से मेरा मतलब उन तमाम चीजों से है जो लोगों को दैहिक सुख प्रदान करती हैं


एसे मे विश्व पर्यावरण दिवस, ऐसा ही एक दिवस जो दुनिया वालों को याद दिलाता है कि उन्हें इस धरती के पर्यावरण को सुरक्षित रखना है, उसे अधिक बिगड़ने से रोकना है, उसे इस रूप में बनाए रखना है कि आने वाली पीढ़ियां उसमें जी सकें । मैं पर्यावरण के प्रति समर्पित विश्व नागरिकों की सफलता की कामना करता हूं । और यह भी कामना करता हूं कि भविष्य की अभी अजन्मी पीढ़ियों को पर्यावरण जनित कष्ट न भुगतने पड़ें।

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Wednesday, May 25, 2011

सुपर केपेसिटर





परंपरागत तेज और शक्तिशाली पर उर्जा भंडरण में कमजोर केपेसीटर अब अपनी काया पलट कर सुपर अल्टरा केपेसीटर बनकर उर्जा भंडारण की अपनी क्षमता को दोनों-दिन बढाते जा  रहे है. यह जल्द ही कारों और इलेक्ट्रानिक उपकरणों में लगने वाली लेड एसिड या लिथियम आयन बैटरी की जगह ले रहे है. हाइब्रिड कारों के लिये यह आदर्श  साबित हो रहे है क्योंकी हाइबिर्ड कारों में बैटरी के साथ प्रयोग करने से ब्रेक और ऐक्सेलरैशन के समय बर्स्ट पावर की जरूरत को ये आसानी से पूरा कर सकते है. जनरेटिव ब्रेकिंग में यह आसानी से उर्जा को सोख लेते है और ऐक्सेलरैशन के समय यह आसानी से ड्राइव मोटर को उर्जा देते है. इसके साथ ही इनकी  जीवनकाल किसी भी कार की जिदंगी से लम्बा होता है 


जरा सोचिए, किसी बैटरी को चार्ज करने में घंटों की जगह कुछ सेकंड्स लगें तो जिंदगी कितनी आसान हो सकती है। वैज्ञानिकों ने इस सोच को हकीकत में बदल दिया है। परंपरागत बैटरी को चार्ज करने में घंटों का वक्त लगता है। ऐसे में आप रात भर बैटरी चार्ज करना भूल जाते हैं तो गड़बड़ होती है। अब उन्होंने परंपरागत तरीके के मुकाबले सौ गुना तेजी से बैटरी चार्ज करने का तरीका ढूंढ निकाला है। इस तकनीक से मोबाइल फोन, लैपटॉप, आईपॉड, डिजिटल कैमरा और दूसरे गैजिट्स का इस्तेमाल तो बेहद आसान होगा ही, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों के इस्तेमाल में क्रांति आ जाएगी। मोबाइल फोन की बैटरी को तो महज 10 सेकंड में चार्ज करना मुमकिन होगा। अब इलेक्ट्रिक कार की बैटरी को चार्ज करने में चंद मिनटों का वक्त लगेगा, आज कल इतना समय तो किसी कार में पेट्रोल भरवाने में लगता है। यह सब सुपर या अल्ट्रा केपेसिटर  के आविष्कार से सभंव हो गया है.

अल्टरा केपेसिटर दिखने में एक साधारण केपेसिटर जेसा ही है जो सब एटामिक गुण का इस्तेमाल कर इलेक्ट्रोन का भंडारण करता है. वहीं बैटरी रासायनिक प्रकिर्या का इस्तेमाल करती है. अल्टरा केपेसिटर सेल 2 से 3 वोल्ट के होते है पर इन्हे बैटरी की तरह सीरीज में लगाकर इनका वोल्ट बढाया जा सकता है. इसके कारण सुपर केपेसिटर में एसी खुबियां है जो सधारणत: बैटरी में नहीं होती है

1.       यह उर्जा के भंडारण  रासायनिक की जगह इलेक्ट्रोस्टेटिक रूप में करते है इसलिये इन्हे सिध्दांत: कितनी ही बार चर्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है.

2.       इनकी उर्जा भडारण और विसर्जन दक्षता बहुत अच्छी होती है. यह तुरंत चार्ज और डिस्चार्ज किये  जा सकते है. जितने भी अल्टरा केपेसिटर है वो सब अपनी पूरी उर्जा 2 सेकंड से कम समय में चार्ज और डिस्चार्ज कर सकते है

3.       इनमे आंतरिक अवरोध ना के बराबर होता है इसके कारण यह उर्जा को ना के बराबर बरबाद  करते है. और इनकी दक्षता 97 से 98% तक होती है

4.       यह बैटरी की तरह लीक नहीं करते या खराब नहीं होते क्योंकी चार्ज और डिस्चार्ज के समय इनमे कोई रासायनिक बदलाव नहीं होता

5.       बैटरी 2 से 3 वर्षों ही चलती है वही इन सुपर चार्ज केपेसिटर बैटरी का जीवन काल बहुत ज्यादा है. 





1745 में पहला इलेक्ट्रोस्टेटिक केपेसिटर लेडन जार के नाम से जाना गया जो इलेक्ट्रोस्टेटिक उर्जा को जमा कर सकता था. उसका सिद्धांत आसान था कि दो मेटल प्लेट के बीच इंसुलेटर लगाने के बाद जब इन प्लेटों को विद्युत सर्किट से जोडा जाता है तो उन पर इलेक्ट्रीकल चार्ज के रूप में उर्जा जमा हो जाती है. इस उर्जा को बाद में इस्तेमाल किया जा सकता था. उसके बाद रासायनिक बैटरी का उर्जा भंडारण के लिये इस्तेमाल होने लगा क्योंकी  रासायनिक बैटरी की तुलना में केपेसिटर की उर्जा भंडारण क्षमता नगण्य थी. 200 वर्षों से ज्यादा समय तक रासायनिक बैटरी विद्युत उर्जा संग्रह का काम करती रही.

देखा जाये तो केपेसिटर की विद्युत उर्जा संग्रह करने की क्षमता तीन मुख्य कारणों से निर्धारित होती है. 1. मेटल इलेक्ट्रोडप्लेट का क्षेत्रफल 2. इलेक्ट्रोड प्लेट के बीच की दूरी और 3. उसके बीच लगे इंसूलेटिंग पदार्थ का डाईइलेक्ट्रिक का मान. इसकी विकास  प्रक्रिया में  मेटल प्लेट कि मोटाइ, इनके बीच की दूरी और इनमें लगने वाला इंसूलेटर के डाईइलेक्ट्रिक मान में लगातार सुधार होता गया इलेक्ट्रोड प्लेट और डाईइलेक्ट्रि पदार्थ पतले से पतले होते गये और इनकी उर्जा संग्रहण क्षमता में लगातार सुधार होता रहा.   ‘

1930 में जब इलेक्ट्रोलाईट आधारित केपेसिटर का अविष्काकार हुआ तो इनकी उर्जा भंडारण क्षमता मे अभूतपूर्व वृध्दी हुई. इलेक्ट्रोलाईट केपेसिटर दिखने में इलेक्ट्रोस्टेटिक केपेसिटर जेसे ही होते है. इलेक्ट्रोस्टेटिक केपेसिटर में मेटल प्लेट के बीच माइका ,ग्लास या पेपर लगाया जाता है जिसे 0.3 mm  से अधिक पतला नहीं बनाया जा सका. वही  इलेक्ट्रोलाईट केपेसिटर ने इसा सीमा को तोडा क्योंकी इसमे एल्यूमिनियम फिल्म पर ही एल्यूमिना (Al2O3) की लेयर बनाइ गई. जो मात्र कुछ माइक्रोन की होती है. इससे केपेसिटर क्षमता को कई गुना बढा दिया पर फिर भी रासायनिक बैटरी की तुलना में इनकी संग्रहण क्षमता अभी भी बहुत कम थी.  पर हाल ही के वर्षों में नेनोटकनोलोजी को इस्तेमाल कर अल्ट्रा केपेसिटर का विकास किया गया जिसने इनकी  उर्जा भंडारण  क्षमता को हजार गुना बढा दिया.

आपने गरजते बादलों को देखा होगा यह पृकति के महा सुपर केपेसिटर है. इनकी शक्ति ने आपको भी अचंभित किया होगा इसमे बादल बहुत बढी प्लेटों का रोल निभाते है जिसकी बदौलत इनमे इअनी सारी उर्जा इकठ्ठीहो जाती है. अब केपेसिटर की उर्जा भंडारण क्षमता या तो बेहतर डाइइलेक्ट्रिक पदार्थ अपनाकर या फिर प्लेट का क्षेत्रफल बढाकर या फिर इनके बीच की दूरी को कम करके बढाई जा सकती थी. इनके विकासक्रम को भी इनकी चार्ज प्लेट की बीच की दूरी से समझा जा सकता है. पहले चार्ज प्लेट के बीच दूरी मिलीमीटर में होती जो इलेक्ट्रोलाईट केपेसिटर के कारण घटकर माइअक्रोन मे आ गई और अब सुपर केपेसिटर में यह नेनोमीटर में है,

सुपर केपेसिटर में भी सधारण केपेसिटर की तरह दो प्लेट के बीच डाइइलेक्ट्रिक पदार्थ होता है. पर प्लेट पोरस पदार्थ जेसे अक्टीवेटड  चार्कोल से बनी होती है. इसको समझने के लिये  हम विद्युत को पानी मान ले तो सधारण केपेसीटर पानी से भीगा एक कपडा है वही सुपर केपेसिटर पानी से भीगा स्पंज जो कपडे की तुलना में असाधरण रूप से ज्यादा पानी सोख सकता है. एक समय था जब 1 फेराड केपेसीटर का साइज एक कमरे से भी बढा होता था और उसे बनाने में लाखों रूपये खर्च होते थे पर आज नेट सर्च करने पर 4000 फेराड का केपेसीटर जो सोडा केन से भी छोटा है 250 डालर से भी कम में मिल सकता है.   इसके कारण अब आसानी से यह 4000 फेराड तक के बनाये जा रहे जो  कभी नेनो, पिको, माइक्रो, या मिली फेराड में होते थे.





पहला सुपर केपेसिटर 1950 में बनाया गया उसके बाद इसमे लगातार सुधार होता रहा नेनो टकनीक ने इसकी क्षमता को कई सौ गुना बढा दिया उर्जा घनत्व के मामले में अभी भी यह यह पंरपरागत बैटरी का मुकाबला नही कर सकते पर इनमें  खतरनाक रसायन नहीं होते और यह जल्दी खराब नही होते. इन्हे लाखों बार चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है.






अल्टरा केपेसीटर मैसाचूसिट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों के दिमाग की उपज है। एमआईटी की इस टीम का कहना है कि यह बैटरी और केपेसिटर का मिला जुला रूप है. और इन्हे कितनी ही बार चार्ज किया जा सकता है. इनमे ओवर चार्जिंग का भी कोई खतरा नहीं है. बहुत ही कम विद्युत अवरोध  के कारण इनका चार्ज और डिस्चार्ज रेट बहुत ज्यादा हो सकता है इनकी cycle efficiency 95% तक हो सकती है. MIT  के वैज्ञानिकों ने जो विधि विकिसित की है उससे कार्बन नेनो ट्यूब अपने आप को वर्टीकली अलाइंड कर लेती है इससे सस्ता, दक्ष और दीर्ध जीवन काल वाला अल्ट्रा केपेसीटर बनाने में मदद मिलती है. इस विधि पर आधारित वो अब ऐसा सुपर अल्ट्रा केपेसिटर बना रहे है, जिसकी उर्जा भंडारन क्षमता 3000 WH /KG होगी. लेड एसिड बैटरी  की उर्जा भंडारन क्षमता 30 to 40 wh/kg  और आधुनिक लिथियम आयन बैटरी की 160 wh/kg होती है . पेट्रोल की करीब 12,000 wh/kg, जो 15%  कार्य क्षमता के साथ (टेंक से व्हील तक) उसका फायदा 1800 wh/kg ही मिलता है. अगर इसमे यह सफला होते है तो हम पेट्रोल और डिजल पर वाहनों की निर्भरता को काफी हद तक खत्म कर सकेगें.


टेक्सास की एक कंपनी का भी दावा है की उसने बेरियम टाइटेनेट (BaTiO3) पर आधारित सुपर बैटरी का निर्माण कर लिया है जिसकी पावर घनत्व 26 वाट/इंच3 से भी ज्यादा है जो साधारण लेड एसिड बैटरी का कम से कम दस गुना है. अगर यह सच है तो यह एक क्रांतकारी आविष्कार साबित होगा. ओटोमेटड असेमब्ली तकनीक और इनकी बढती मांग के कारण इनकी कीमत  दिनों दिन कम होती जा रही है. वो दिन दूर नहीं जब इनकी कीमत पंरपरागत बैटरी से कम होगी.

पर्यावरण अनुकूल विद्युत कारों और ट्रामों के इस्तेमाल में अभी तक सबसे बड़ी अड़चन बैटरी चार्ज होने में लगने वाला वक्त ही रहा है। अगर चंद मिनटों में बैटरी चार्ज हो जाये तो ट्रामों को चलाने के लिये ओवरहेड तारों की जरूरत नहीं होगी क्योंकी यह हर स्टाप पर अपने को तुरंत चार्ज कर पायेंगी. इलेक्ट्रिक कारें एक बार चार्ज करने के बाद मात्र 50 से 60 किलोमीटर तक का सफर तय कर पाती है. उसके बाद इन्हे कम से कम 8 घंटे तक चार्ज करना होता है. इन्हे चार्ज करने के लिये लगने वाला समय बैटरी से चलने वाली कारों और ट्रामों के उपयोग को सिमित कर देता है अब अगर बैटरी भी वाहन में पेट्रोल भरने में लगने वाले जितने समय में चार्ज हो जाये तो यह एक क्रांतकारी बदलाव ला सकता है.  शहरों में अधिकतर हम एक बार में  15 से 20 किलोमिटर ही वाहन चलाते है उसके बाद वो पार्क किये जाते है. सभी पार्किंग जगहों पर अगर चार्जिंग सुविधा देने लगें तो बैटरी के वज़न में भारी कमी ला सकते है. इलेक्ट्रिक  कार और स्कूटर की अधिकतम गति 40 से 50 kmph होती है जो इन बैटरी के आते ही यह पेट्रोल इंजन की तरह तेज रफ्तार हो पायेंगी




यह सच है की अभी भी पंरपरागत बैटरी उर्जा भंडारणके मामले में आज भी अल्टरा केपेसिटर से बेहतर है पर शक्ति के मामले में अल्टरा केपेसिटर का मुकाबला नही कर सकती. भविष्य में इनके मिले-जुले इस्तेमाल में हमारी कई उर्जा समस्याओं का समाधान छुपा है.