Monday, April 18, 2011

एसे हल की खोज मे, जो देश को भ्रष्टाचार के केंसर से निजात दिला सके ...2

भ्रष्टाचार के केंसर से निजात हल



1. इसकी पहल भ्रष्टाचार की गंगा की गंगोत्री से करनी होगी. ऐसा राजनितिक पार्टीयों को स्वालंबी बनाने से हो सकता है उनके पास आय का कोई ऐसा स्रोत हो जिस से पार्टी के खर्चे को वे उठा सके तो कम से कम इसके लिये उन्हे गलत लोगों के साथ चलने की मजबूरी तो खत्म हो जायेगी. ऐसा प्रवाधान हो की हम आयकर का कुछ हिस्सा सीधे मनचाही पार्टियों को दे सके. राजनैतिक पार्टीया भी अपनी आय और खर्च का हिसाब दें.

2. जन प्रतिनिधी को उसे के काम की कोई तनखाह नहीं मिलती है, जब तक कि वो पार्षद या विधायक नहीं बन जाता. और ना ही हम खुले दिल से दान देते है. अकसर जो हम देते है वो काम का कमीशन होता है. जिसे पहले ही कानून ने गलत घोषित किया हुआ है. क्या ही अच्छा हो की हर पूर्ण कालिक जन प्रतिनिधी को उसकी पार्टी से भुगतान मिले साथ ही वो अपने काम की रेट लिस्ट सार्वजनिक करे. और उससे मिले पेसे को वो आमदनी में दिखा कर उस पर सर्विस टेक्स और इनकमटेक्स दे. हम क्यों नही मान लेते की जब एक वकील अपनी गलत और सही काम की फीस ले सकता है तो नेता या जनप्रतिनिधी क्योँ नहीं!

3. UPSC, PSC, CDS, की तरह कोई आयोग जन प्रतिनिधी और नेता या जन सेवा का कार्य करना चाह्ते हो उनके लिये हो, इसे पास करना पडे या कम से कम लाइसेंस जेसा कुछ हो. यह लाइसेंस कुछ मानदंडो के आधार पर ही दिया जाय और इसे निरस्त करने का अधिकार भी इस आयोग को हो. और चुनाव में खडे होने के लिये उसके पास यह लाइसेंस होना अनिवार्य हो.

4. लोकतंत्र में चुनाव संख्या बल के आधार पर होता है. राजा और रंक लोकतंत्र की नजर में समान बन गये उनके वोटींग का वेटेज एक सा कर दिया जो सुनने में बड़ा लुभावना था पर उस का असर जो हुआ वो बडा ही खतरनाक हुआ. जिसे देश की समस्याओँ से कोई लेना देना नही था ना ही जिसे कूटनितिक समझ थी वो देश का नेतृत्व चुनने लगा. जिस देश की अधिकांश जना संख्या अनपढ, गंवार, गरीब और भुखमरी की श्रेणी में आती थी देश के प्रतिनिधी चुनने लगी. इन्हे आसानी से धर्म जाति रंग बोली के आधार पर बेवकूफ बनाया जा सकता था. इस लोकतंत्र ने सभी को एक समान वोटिंग राइट दिये है. सभी की वोट की कीमत एक समान है. क्यों नहीं हम कुछ मानदंड के आधार पर इन का कीमत बनाते. क्यों एक अनपढ और पढेलिखे के वोटिंग की कीमत एक समान हो. अब तक सब कुछ संख्या बल के आधार पर ही तय होता रहा की कोन चुनकर जायेगा. उसका नतीजा हमारे सामने है. अब इसे बदलने का समय आ गया है.

5. विधान सभा और लोक सभा में सरकारा बनाने के लिये 50% से ज्यादा मत होना अनिवार्य है. जिसके कारण वैचारिक रूप से विरोधी दल सत्ता में आने के लिये अनुचित समझोते करते है. और सरकार गिरने का भया सत्ता धारी पार्टी पर हर समय लटकता रहता है अधिकांश समय वो ब्लेक मेल की हद तक एक दूसरे का शोष्ण करते है. क्यों नहीं राष्ट्रिय पार्टीयों की संख्या के आधार पर इस प्रतिशतको बदला जाये. अगर 10 राषट्रीय दल है तो प्रतिशत 10 के आसपास हो ना की 50. इसका मतलब यह हुआ की जिस पार्टी का मत प्रतिशत सबसे अधिक हो और अगर साथ ही वो निर्धारित मत प्रतिशत भी हासिल कर ले तो उसे सीधे सरकार बनाने का मोका दिया जाये. उसके बाद अगर वो चाहे तो दूसरे दल का सहयोग ले सकता है. कम से कम उसे मजबूरन गट बंधन बनाने की मजबूरी तो नहीं रहेगी. सरकार गिराने के लिये 2/3 का बहुमत सही है इससे सत्ता धारी पार्टी को स्थायित्व मिलेगा.

6. हम किस लिये 546 की संख्या के साथ पार्लियामेंट चलाना चाहते है. क्यों हम अपने राज्योँ में 250 से 400 तक विधायक चुनकर विधानसभा में भेजते है जब की हमे मालूम है की अधिकांश को इन सब से कुछ लेना देना ही नहीं है. हम यह क्यों नही समझते की निर्णय एक छोटे ग्रुप में करना ज्यादा आसान और कारगर होगा. इतनी बढी संख्या के वाबजूद हमारी पार्लियामेंट और विधानसभा के निर्णय जन विरोधी और देश हित के विरूध होते है. अधिकांश समय वो जिस तरह अधिवेशन का समय बरबाद करते है उसे देख कर आम आदमी का सिर भी शर्म से झुक जाता है.

7. मिडिया के रोल को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता जिस तरह वो लोकतंत्र में सक्रिय भूमिका निभाते हुये मुद्दो पर राष्ट्र व्यापी बहस कराने में मदद की है. जब हमारे सांसद और विधायक सोते रहते है उन्हे जगाने का काम भी ये करता है. इनकी मदद लेते हुये किसी भी राष्ट्रिय महत्व में मुद्दे पर निर्णय लेते समय इनका उपयोग किया जा सकता है.

8. अब हालत ये है कि सभी पार्टीयों में दागी उम्मीदवारोँ की भरमार है. गभींर अपराधों के आरोपी चुनाव में खडे होते है. वो जेल में रहते हुये चुनाव पर्चे दाखिल करते है और विजय हासिल भी करते है. अकसर देखा गया है राजनितिक प्रतिद्व्दिंता के चलते झूठे आरोप लगाकर सत्ता पर काबिज अपना उल्लू सीधा करते है. इसलिये जब तक न्याय अपना निर्णय ना दे उन्हे दोष मुक्त मानकर चुनाव लडने दिया जाये. पर जब तक वो दोष मुक्त ना हो जाये उन्हे कोई पोस्ट ना दी जाये. और अगर वो दोषी पायेजाते है तो उनका चुनाव निरस्त माना जाये. इस तरह के केस फास्ट कोर्ट के जरिये निपटाये जाये.

9. पिछले 100 सालों में बने कानूनों की समिक्षा की जाये. और जनता पर इसके बोझ को कम किया जाये.

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