Sunday, February 20, 2011

सफाइ और बिमारी

हर भोजन के बाद दांतों को ब्रुश करना हो सकता है दांतों के लिये हानिकारक यह हम नहीं अब यह बात टूथपेस्ट बनाने वाली एक कम्पनी बोल रही है. अब तक ये माना जाता था कि खाने के बाद पानी से कुल्ली कर लेने के बाद भी भोजन के कण दांतों के बीच फंसे रह जाते है और वहां सड़कर बैक्टीरिया पनपने की वजह बनते है इसलिये भोजन के बाद दांतों को भली प्रकार टूथपेस्ट और ब्रुश से साफ करने की सलाह दी।


अब टूथपेस्ट बनाने वाली ओर कम्पनी के सहयोग से किये गये एक शोध में पाया गया है कि ऐसा करना दांतों की ऊपरी चमकीली सफेद और सख्त परत ‘ इनेमिल’ के लिये हानिकारक हो सकता है। भोजन और कार्बो नेटेड पेयों के अन्दर उपस्थिति अम्ल भोजन के समय इस इनेमेल को कमजोर कर देते हैं। इस समय यदि ब्रुश कर लिया जाये तो इस कमजोर इनेमेल पर खरोंचें पड़ जातीं हैं और बार-बार ऐसा करने पर इसको गम्भीर नुकसान पहुंचता है। कार्बोनेटेड पेय पीते हैं या कोई खट्टा फल यथा मौसमी सन्तरा नीबू आदि दांतों की मदद से काट कर खाते हैं तो उसमें उपस्थित अम्ल भी दांतों के इनेमेल को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में यदि ऊपर से ब्रुश कर लिया जाये तो इस कमजोर हुये इनेमेल को काफी नुकसान पहुंचता है। अत: भोजन के बाद , विशेषकर उस भोजन या पेय जिसमें अम्ल की मात्रा ज्यादा हो यथा खट्टे फल, कार्बो नेटेड पेय, सॉस, केचअप आदि के बाद तुरंत ब्रुश नहीं करना चाहिये। अच्छा होगा की उसके बाद आप पानी से अच्छी तरह कुल्ला कर ले. फलों के रस या कोल्ड ड्रिंक आदि स्ट्रा से पियें और स्ट्रा को भी थोड़ा ज्यादा मुंह के अन्दर रखें ताकि पेय दांतों की ऊपरी सतह को न छुये।

इन पागलों को इतने दिन बाद यह बात समझ आई. अब हमारे लोगों को यह बात कब समझ आयेगी की टूथ पेस्ट या साबुन इतना जरूरी नहीं है. हम मुह को अच्छी तरह पानी से और उँगली का इस्तेमाल से कुल्ला करके या नीम की दातुन से भी भी वही ताजगी पा सकते है.

यही सवाल अब मेरा उन लोगों से हे जो साबुन से मल मल कर नहाते है और यही टनों साबुन दिनों दिन भुमीगत स्रोंतों या फिर नदी नालों में घुलकर हम सब के लिये जहर बन रहा है. यह सच है की साबुन हमारे शरीर से गंदगी हटाने मे मदद करता है. पर केसी गंदगी और कोन सी गंदगी. अकसर हम भ्रामक विज्ञापनों के जाल मे फंसकर अपने को गोरा और चिकना बनाने के चक्कर मे इन साबुनों को अपने बदन पर घिसते रहते है. नतीजा कई बार हम त्वाचा को गंभीर क्षती पहुचा देते है. उस पर मोजूद तेलिय ग्रंथी जो त्वाचा मे जरूरी नमी बनाये रखने मे मदद करती है उसे नुकसान पहुचा देते है.

जिस्म को सिर्फ पानी से मालिश कर उतनी ताजगी और सफाइ पा सकते है जितना हम साबुन मलकर पाते है. सच तो यह है की साबुन कुछ विशेष परिस्थति में ही इस्तेमाल होना चाहिये. जेसे अगर बदन पर ग्रीस या तेल लगा हो तो बेशक आप साबुन इस्तेमाल करे पर हम तो आदत से मजबूर झूठे प्रचार के कारण मल मल कर साबुन से नहाते है की वो हमे गोरा और हमारी काया को कचंन बना देगा. फायदे से ज्यादा अपनी त्वचा का नुकसान करते है.

अब बोलोगे की साबुन से नहीं नहायेगे तो बदन से बदबू कैसे आयेगी ...? अब ये किस ने कह दिया की साबुन बदबू भी भगाता है. वो भले ही त्वाचा की बदबू को कुछ देर के लिये कम कर भी दे. पर अदंर की बदबू का क्या करोगे! असल मे वो बदबू भगाता नहीं बदबू छुपाता है. अरे पहले सिर्फ पानी से अच्छी तरहा नहा कर तो देखो पानी मसाज करके देखो. कम से कम 5 मिनिट तक मसाज और उसका असर देखो.

अरे चाहो तो बदबू भगाने के लिये अलग से सेंट लगा लो. असल में साबुन भी यही करता है! हमारे यहां उमस भरी गर्मी और पसीने के कारण हालत खराब हो जाती है..पर उसके लिये हर बार साबुन लगाने की जरूरत नहीं है. यह सलाह में साबुन के पैसे बचाने के लिये नहीं दे रहा हू. वेसे भी अगर यह पेसे बच भी जाये तो किसी अच्छे काम के लगा सकते है. पर इस साबुन की गुलामी से अपने को मुक्त करके देखो.

मानो या ना मानो पर यह सच है कि में नहाने के लिये साबुन का इस्तेमाल ना के बाराबर किया जा सकता है. इसका आपकी बदबू भगाने या ताजगी से कोइ सीधा रिश्ता नहीं है. बदबू की कई दूसरी वजह भी हो सकती है. त्वाचा और दाँत के लिये डाक्टर से अलग से राय ली जा सकती है..खाने के बाद अच्छी तरह पानी के साथ कुल्ला करने से ज्यादा फायदा है.

साबुन का अपना महत्व है. इसलिये जब बहुत जरूरी हो तभी इसका इस्तेमाल करे.

अब यह वहम की साबुन बेक्टीरिया मारता है, हम सब को लुई पास्चर बना रहा है. साबुन से बेक्टीरिया कम होते हो? पर कितनी देर के लिये. ये तो हवा की तरह हमारे चारो और मोजूद है. खुद बेक्ट्रिया के वहम से लुई पास्चर 65 साल की जवानी में ही खुदा को प्यारा हो गये थे.

देखा जाये तो डिटोल साबुन की एक बोतल पूरे परिवार को साल भर के लिये काफी होनी चाहिये.

हां कपडे जरूर साबुन से धोने की मजबूरी है..पर उस पर भी खोज जारी है एसे कपडे की जो  शरीर के लिये आरामदेह हो और बिना साबुन के साफ होता हो अच्छा हो की पानी की भी जरूरत ना हो ऐसा कुछ की हवा के प्रेशर से ही वो साफ हो जाये. सोचो अगर ऐसा हो जाये तो हमारी पानी और प्रदूषण की कीतनी समस्या हल हो जायेगी....

जो बच्चे मिट्टी के साथ खेलते है उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली जो बच्चे मिट्टी के साथ नहीं खेलते उनसे बहेतर  होती है। इसलिये अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को ताकतवर बनाए. पर उसके लिये हर बार साबुन की जरूरत नहीं है.

मुझे अकसर सिरफिरे सफाइ पसंद यात्री ट्रेन में सफर करते मिल जाते है जो खिड़की का परदा भी रुमाल से पकडकर खिसकाते है कि पता नहीं कैसे कैसे हाथोँ ने उसे छुआ होगा. बेड रोल की चादर से सीट साफ करते है और फिर अपने साथ लाइ हुई चादर बिछाते है. और दूसरोँ के लिये अपनी गदंगी फेलाकर चले जाते है. अकसर एसे लोगोँ से मेरी कहासुनी हो जाती है. जब भी कोई ऐसा मिल जाता है तो उनकी जम कर क्लास लेता हू. उन्हे एसे एसे सफाइ भरे किस्से सुनाता हू की उन्हे अपने आप से घिन आने लगती है.

शायद उन्हे मालूम नहीं कि टायलेट सीट से ज्यादा जीवाणुओ का घनत्व  मोबाइल या कम्प्यूटर की बोर्ड पर हो सकती है. Stuffed toys या फिर एसी ही चीजेँ जीवाणुओ से भरें हो सकते है. इसलिए एसा  विश्वास विकसित करें कि आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली आपके शरीर की देखभाल करने में सक्षम है। और ये रोगाणु आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचाएंगे जब तक आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली अच्छी  हो।

बेशक रोकथाम इलाज से बेहतर है लेकिन आपको रोकथाम के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं है?

हमे पब्लिक प्लेस की सफाइ का भी उतना ही ख्याल रखना चाहिये जेसा हम अपने लिये चाह्ते है कम से कम उसे और गंदा नहीं करे. आपकी अपने खुद की इस तरह की सफाइ का कोइ मतलब नहीं होता जब आपके आस पास गंदगी और खाने पीने के सामान में बेशर्मी की हद तक मिलावट हो.

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