Wednesday, January 19, 2011

16 जनवरी 2011 एक दिवसीय आम खो से गिन्नौरगढ़ किले तक देलावाड़ी अभ्यांरण्य। में ट्रेकिंग संपन्न ।

यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया बी.एच.ई.एल.इकाई भोपाल, द्वारा दिनांक 16/01/11 दिन रविवार को संस्था सदस्यों हेतु एक दिवसीय ट्रेकिंग कार्यक्रम का आयोजन भोपाल शहर से 50 कि.मी.दूर स्थित " आम खो से गिन्‍नौरगढ़ किले " "वन अभ्‍यारण्‍य रातापानी परिक्षेत्र," देलावाड़ी जिला: रायसेन (म प्र) में किया। जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के 70 सदस्य सम्मिलित हुए । जिसमें सबसे कम उम्र 5 वर्ष के मास्‍टर अनसूल सेन ने भी ट्रेकिंग को सफलता पूर्वक पूर्ण किया । सदस्यों वन अभ्‍यारण्‍य रातापानी परिक्षेत्र देलावाड़ी के सामने मुख्य सड़क आम खो से अपनी ट्रेकिंग प्रारंभ की जो घने जंगलों के बीच से दो तीन ऊबड़-खाबड़ 100 से 150 फिट ऊचाई वाले 60 से 70 डिग्री वाले पहाड़ो को पार करते हुये गौड़ राजा का किला गिन्‍नौरगढ़ एवं वहॉं स्थित बहूत सी बावडि़या देखते हुये वन विभाग के चेकपोस्‍ट तक किलोमीटर कि दूरी तय कर पहुँचे ।गौड़ राजा का गिन्‍नौरगढ़ किला क्षेत्र जो कि वर्तमान में वन विभाग के अद्यीन है जहॉं पर आज भी ऐसी चट्टानों वाले पहाड़ को हमारे सदस्‍यो को देखने का मौका मिला जो कि ऐसा लगता है कि एक के ऊपर एक बड़ी - बड़ी फर्सीनूमा चट्टानों को रखकर बड़े बड़े पहाड़ बनाये हो जो कि इस क्षेत्र मे प्रकृतिक रूप से देखने को मिली।
इसके बाद सदस्यों ने वन विभाग के चेकपोस्‍ट के पास भोजन कर अपने मनोरंजन हेतु छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ ही सभी सदस्‍यों ने आपस में एक दूसरे को अपना अपना परिचय दिया । हमारे साथ उपस्थित संस्था सदस्यों को श्री अलकेश वैद्य , संस्था सचिव ने भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के खेल एवं युवक कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे यूथ होस्टल्स में ठहरने के विषय में सदस्यों को संपूर्ण जानकारी दी
इस ट्रेकिंग का मुख्य उद्देश्य सदस्यों को साहसिक कार्यक्रमों से परिचित कराना, कि इससे हमारे जीवन में क्या लाभ है तथा प्राकृतिक, वन संपदा, वहाँ के खुले प्रदूषण मुक्त वातावरण में जाकर पैदल घूमना एवं राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत करना इसके साथ ही संस्था द्वारा प्रत्येक माह में एक दिवसीय ट्रेकिंग के कार्यक्रम को आयोजित करने एक कारण यह भी है कि सदस्यों को अपनी दैनिक दिनचर्या से हठ कर नये वातवरण में जा कर यह पता चल सके कि हम अपने आप में कितने शरिरीक रूप से कितने स्वस्थ है। अंत में संस्था के संगठन सचिव श्री आर इक्का ने ट्रेकिंग सफलता पूर्वक पूर्ण करने हेतु बधाई दी । तथा एक दिवसीय ट्रेकिंग कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस ट्रेकिंग कार्यक्रम का संचालन श्री एसए नक्वी, श्री आर इक्का एवं श्री आर पी सिहं संस्था कार्यकारिणी सदस्यों ने श्री अकलेश वैद्य सचिव के मार्ग दर्शन तथा "वन अभ्‍यारण्‍य परिक्षेत्र सक्‍सेना जी कि अनुमति से अधीक्षक श्री राघवेन्‍द्र सिंह, वन रक्षक श्री नागर एवं चौकिदार श्री फईम के सहयोग से संपन्न कराया। जिसके लिए संस्था वन विभाग आभार व्यक्त करती है.

Monday, January 17, 2011

एक अफ़गानी शहर…

सूरज डूब गया,
मलवे का ढेर
ये शहर डूबा हे अँधेरे में,
रोशनी का एक कतरा भी नहीं!
उजाड़ बियाबान
सूनी सड़कें,
दो पैर के
किसी भी चलते फिरते
जानवर को
गोली मारने का
खुला आदेश
कुछ आवारा
कुत्ते गली में घूमते ...
टूटी फूटी दीवारों
के पीछे डर
से कांपती आंखें!
भूखे पेट
सहमे बच्चे,
रोना कब के भूल चुके
कुछ दिन पहले
ये शहर जिंदा था. 

हिंदी की बात

आज हिंदी को कितना भी बुरा भला कहा दे, है तो हमारी अपनी भाषा. यह हमारे देश में आज भी सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है.  पर  आज यह गरीबों और कमजोरों की भाषा बनकर रह गई है. यह भी सच है कि इसका  बुरा, हम हिंदी बोलने वालों ने सबसे ज्यादा किया.  भला हो बजारवाद का, कि उसके कारण दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनीया अपना माल बेचने के लिये हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का सहारा ले रही है.
किसी भी भाषा की ताकत उसका ज्ञान होता है. जरूरी नहीं की वो उनका अपना हो. पर ये जरूरी है की वो सब उनकी अपनी भाषा में हो जिसे उसके लोग पढ सके और समझ सके.... हिंदी जानने और समझने वालों ने पिछले 60 सालों से साहित्य लिखने के अलावा कुछ नहीं किया. हमारे विश्व विद्यालय लोगों को डिग्रीया बांटते रहे. बिना इस बात की चिंता किये की जो ज्ञान वो विदेशी भाषा में उपलब्ध करा रहे है वो उनकी अपनी भाषा में भी उपलब्ध हो. इसे किसी भी तरह असंभव काम नहीं कहा जा सकता..बस हमारे अदंर इच्छा शक्ति नहीं थी. अगर एक प्रोफेसर अपने विषय को अपनी भाषा में ना पढा सके तो लानत है एसे प्रोफेसरी पर.
सच तो यह  है कि पढने वाले को नोकरी के लिये डिग्री चाहिये थी और पढाने वालों को अपनी तन्खाह से मतलब था. अब अगर ऐसा है तो फिर हिंदी हो या कोई और भाषा  रहे क्या फर्क पडता है. क्योंकी ये दोनों काम तो हो ही रहे है.
आज भाषा पेट से जुडी है. अंग्रेजी हम भारतीयों की जरूरत है क्योंकी यह हमे रोटी दे रही है. कल अगर जर्मन या फिर चाइनिस वो काम करेगी तो हम वो सीख लेगे... आज हम गलोबल युग में है. जो बेहतर होगा वो ही टीकेगा...जिसके पास ताकत होगी वही रहेगा...बाकी सब इतिहास की गर्त में होगा....इसलिये जागो और ओछी भाषाई राजनिती से उपर उठ कर सोचो.
इस देश को अपनी भाषा चाहिये. एक एसी भाषा जो कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और गुजरात से लेकर नागालेंड तक सबकी अपनी हो. इसके लिये क्यों ना हम उस भाषा की बात करे जो ना हिंदी है ना इगलिश ना उर्दू है ना मराठी और ना ही वो तमिल है. एक जन सामान्य की भाषा, वो भाषा जिसे हम भारतीय रोज इस्तेमाल करते है. बस उसे स्वीकार भर करने की जरूरत है.
उसमे सभी भाषाओं के प्रचलित शब्द हों जिससे किसी को यह शिकायत ना रहे कि उसे अनदेखा कर दिया.
एक बात और पूरे भारत मे लिखने की एक ही लिपी का इस्तेमाल हो. अगर मानक लिपी मे अन्य भाषा का कोई विशेष स्वर वाला अक्षर ना हो तो उसे उसमे जोडा जा सकता है. इस मानकीकरण  से पूरे भारत मे एक जेसा लिखा जा सके. अभी तो तमिल नाडू में तमिल में तो केरल में मलियाली मे तो बंगाल में बँगला मे लिखा होता है.   अगर किसी एक लिपी का इस्तेमाल हो, तो कम से कम उसे हर भारतीय पढ तो सकता है. अभी तो हाल यह है की दूसरे राज्यों के लोग बसों पर लिखी जगह का नाम तक नहीं पढ पाते.  इससे दूसरे राज्यों की भाषा को सीख़ना भी हमारे लिये आसान हो जायेगा. अंग्रेजी भी खुले दिन से दूसरे भाषा से शब्दों को आयात कर अपने क्लो दिनों दिन विकिसित करती जा रही है. फिर हम अपनी भाषा के साथ एसा क्यों नही कर सकते.
अगर आपको लगता है की हिंदी को इस देश की प्रथम भाषा होनी चाहिये तो राजनिती से उपर उठकर पहले कम से कम इतना भर कर ले की हिंन्दी को सभी जगह लिखने के लिये इस्तेमाल करे. अगर जरूरी हो तो इसमे नये अक्षर जोडे जा सकते है. या उसे भी हम राजनीती में उलझा देना चाहते है, जब अग्रेजी एसा कर सकती है तो हमारी अपनी भ्षा क्यों एसा नही कर सकती. इसे ही तो भाषा का विकास कहते है.
हमें बाते कम और काम ज्यादा करना है. नहीं तो हम और आप हिंदी और अंग्रेजी करते रह जायेगे....और कोई  हमारे वतन में ही हमे अजनबी बना देगा.  
जो लाखों करोडों किताबे और इंटर नेट पर ज्ञान है उस सबका अनुवाद हिंदी मे करना है. जिस दिन एसा कर पायेगे ...हिंदी इस देश की क्या वो विश्व भाषा बन जायेगी. अगर सच में आप 150 करोड़ हो तो उसे काम से साबित करो.  कुछ लोग इस काम मे लगे हुये है...आप चाहो तो आप भी उनके साथ मिल जाओ...वरना शोर ना मचाओ. ना ही राज नेता की तरह बाते करो. काम करो... . अगर आप भाषाई राजनिती से उपर नही उठोगे तो नीचे जाओगे...अरे नीचे जाओगे क्या ...आपकी दुआ से नीचे जा रहे है.
वेसे हम बेशर्म लोग है. कितना भी बुरा भला कहा लो हम वो काम नहीं करेगे जो दिल कहता है, हम वो काम करेगे जो हमसे डंडे की चोट पर कराया जाता है. या फिर पैसा फेंक कर हमसे कोई भी काम करा लो....यार कुछ तो बोलो...भगवान भला करे आपका