Wednesday, December 21, 2011

एक सपना सा लगता है

बनिया, बेटी की शादी और एफ डी आई....Retail FDI... Social responsibility 
पर प्रतिक्रिया लेख

एक सपना सा लगता है की हर भारतीय अपनी मर्जी का मालिक था। स्वयं की खेती या स्वयं का धंधा था। नौकर किसी का नहीं था।
यह कोन से जमाने के किस भारत की बात हो रही है? जिस जमाने के सपने आप दिखा रहे है वो जमीदारी और राजे महाराजाओं का युग था. आम आदमी तो कीडे मकोडो की तरह सेकडॉ की संख्या में या तो खेतीहर मजदूर की तरह बेगार करता था फिर अछूत था. उन्हे दो जून रोटी मिल गई तो उस मालिक ( जमीदार) की दुआ मांनते थे. एक छोटे से कर्ज में गरीब अपने घर बार और खेती की जमीन से जुदा जो जाता था. जिस साहूकार की आप तारीफ कर रहे है उसकी गिद्द दृष्टि उस गरीब की जमीन जायदाद और बहू बेटीयों पर होती थी. लठ्ठ का जमाना था..जिसकी लाठी उसकी भेंस. जी हजूरी मे झुकी आंखे. अगर राज्य के विरूध जरा भी मूह खोला तो सीधे मौत. किस जमाने की बात कर रहे है... आप.! 
आम आदमी जानवर से बदतर था और राजा इतना शक्तिशाली और दंभ से भरा हुआ की अपने को भगवान की तरह पुजवाता. आम आदमी उनेक द्वारा बनाये नर्क को भोगने का शापित वरना क्या कारण था की मोका मिलते ही लोग शहरो की तरफ भागे और मजदूर बन गये. आज भी किसानों कि हालत किसी से छुपी नहीं है. आज भी वो बेचने की जगह आलू को सड़क पर फेंकने को मजबूर हो जाता है. फसल पर 20 पैसे और बाद में 20 रूपये किलो...क्यों.

अब राजा महाराजा तो रहे नही, साहूकार मतलबी है. सरकार के पास कल्याण कारी योजनाओं के लिये पैसा है नही, नेता का धन स्वीस बेंक में जमा है. आम आदमी के पास थोडा बहुत अगर पैसा है तो वो उसे अपने बुरे समय के नाम पर दबा छुपा के बैठा है. विकास के लिये पैसा आये तो आये कहां से.... जो थोडा बहुत विकास आप देख पा रहे है सब उधार का.... अब अगर विकास के लिये उधार ही लेना है तो उससे तो अच्छा है की जिस से उधार लिया जाये उसे ही मुनाफे का हिस्सेदार बना दिया जाये. कम से काम इससे योजनायें समय पर चलू हो सकेंगी. दूसरा उन्हे पैसा वापस तो नहीं करना पडेगा.
इस देश का आज लाखों लोग  15 रूपये एक बोतल पानी खरीदने के लिये प्राइवेट दुकान दार को दे सकते है, वही आदमी चाहता है की सरकार उन्हे पानी 5 पैसे प्रति बोतल से भी कम दाम पर दे. आप और हम भी भावनाओं मे बेहकर 5 पैसे प्रति बोतल की वकालात करने लगते है. जब की सब को पता है की इसकी असली कीमत भी वही आम आदमी ही दे रहा है. या फिर पानी  नाम पर कीचड पी रह रहा है.  5 पैसे के फेर मे 15 रूपये मे पानी बेचने वालों की चांदी हो जाती है.

पानी हो, सडक हो, या फिर  बिजली हो....ठेठ सरकारी योजनाओं का हाल यह देश देख रहा है उनके भरोसे रहे तो...! लालटेन और बेलगाडी युग वापस आने में देर नहीं लगेगी. सरकरी योजनाओं में पब्लिक धन की जो बरबादी हमने की है. उसके कसीदे पढने के लिये यह जगह छोटी है.

मामला सिर्फ इतना भर है की कोई आप के देश के बजार को देख पा रहा है और आपके यहां आकर पूजी लगाना चाहता है. उसे लगता है की इस देश के बजार में वो मुनाफा कमा सकता है. उसकी पूजी इस देश में थोडा बहुत विकास लायेगी, यह विकास जेसा भी होगा और जो भी होगा वो उधार की पूंजी से बेहतर होगा...कम से कम उस कर्ज को लोटाने की जरूरत तो सरकार को ना होगी. वरना आम आदमी के टेक्स का पैसा तो कर्ज चुकाने में ही चला जायेगा.

इस पूंजी को कुछ लोग इस देश में लाने से कतरा रहे है और उन्हे लगता है की अगर ऐसा किया गया तो यह देश फिर से गुलाम हो जायेगा...उन्हे लगता है की इस्ट इंडीया वाली गलती फिर से दोहराई जायेगी. क्या आज वाकई ऐसा हो सकता है?? क्या उन्हे पूजी निवेश करा देने भर से हम फिर से गुलाम हो जायेगे? और भारी कर्ज लेने के बावजूद हम गुलाम होने से बचा जायेगे...अब मेरा खुला सवाल ...यह देश अपने विकास के लिये पूंजी की व्यव्स्था कैसे करे...?

FDI आयेगा तो हो सकता है की आलू की चिप्स को वो 200 रूपये किलो में बेचे...पर कम से कम आलू 20 पैसे किलो में बरबाद होने से तो बच जायेगा. इसलिये भावनाओं में ना बहकर हम समय को पहचाने. और उनकी पूंजी को अपनी ताकत बनाये. ऐसा राजनितीक माहोल बनाये की वो पैसा हमारी शर्तों पर लगाये. और जिस सेक्टर में हम चाह रहे है उसमे लगाये.....इससे आगे बढकर सिमित संख्या मे उन्हे रिटेल सेक्टर में आने दे...कुछ समय उसे देखे परखे उसके बाद इस पर फेसला करे की क्या अच्छा था और क्या बुरा. वरना कही ऐसा ना हो की ख्याली खतरे के चक्कर में यह देश पूंजी निवेश का एक अच्छा मौका हाथ से गंवा दे.

...वो खतरनाक है इसलिये की वो हिम्मती है, पर इस देश के कानून से उपर नहीं. भले ही उनकी दुकाने आलीशान होंगी पर अच्छे गोदाम और अच्छी सडको के बिना सब बेकार होंगी.

रही बात RSS के बंदो के सेवा भाव की तो उसका FDI से क्या लेना देना वो तो आगे भी एसे ही चलता रह सकता है.

चलो एक कहानी सुनाता हू...एक कसाई बकरे को बेचने बजार जा रहा था गर्मी के दिन थे भरी दुपहरी थी रास्ते में एक गांव में पानी पीने के लिये रुका गांव के लडको को जब पता चला की बकरा कटने के लिये हाट जा रहा है तो उन्होने उसे वंही काटने को बोला. कसाई भी लालच में आ गया सोचा भरी गर्मी मे हाट जाने से अच्छा है कि इसे यही काट कर बेच देने में भलाई है, और वो बकरा काट बैठा....

लडके समझदार थे उन्हे मालूम था की अब कसाइ कटे बकरे को लेकर यहा से कही नही जा सकता.....और उन्होने उससे बकरे का मांस अपने चाहे गये दाम पर ही खरीदा...हो सकता है इस कहानी से आप भी कुछ समझ पा रहे हों...!

जब तक  हम जागरूक है....तब तक हमारे यहां पूंजी लगाकर खतरे मे वो है हम नही ...

Friday, December 16, 2011

Why don't we just live life?

Why don't we just live life?
we can't, we are born with minds and not with tails. Mind which question every thing around us. Explore every thing and that’s the reason we reached to present stage of our existence. We came out from caves and now living this life. The quest to know who we r why we r, what we r, how we r and where we r will keep our minds exploring and reasoning every thing around us until and  we find answer.

why don't we just live the life we have and treasure every single minute we spend here with our loves one and the people who we can meet?
… yes our ultimate goal is to live here with our love ones and with the people we  meet. But there are forces around us not allowing us to do that all time and at all places ..let it be the forces of natural calamity …disaster, disease, environment or simply war. So there has to be some one from us working consciously and continuously on it.

Its perfectly ok to live the way world around us offers. most of us live that way only. its like running on trade mill but some of us dare to step down and moves away from it. global issue like environment, hunger and population can not be addressed properly without knowing the reason of our being. the more we r knowing about mystery of life ..the more we r close to the solutions. as i said till now u could live your life the way u want but as we progressing we r getting more global. it means that even though your acts are in perfect harmony with local surroundings, some one else can make your life hale!

Finding answer to the basic question will remain valid to the curious mind of some of us. recent news that scientist has invented chip which replicate human brain thinking...if that’s true...then we will see an massive change in next few decade. where we will b surrounded with designer babies and human robos...it means what!..no wonder when u come across ‘terminator’ ( hope u hav seen this movie..:) like situation when war will be fought by machines. When these machine will be designed to kills humans and only humans.

today Also war is getting more with machine but right now these are controlled by humans..but later due to its complicacy it will be controlled by more intelligent machines who can think like we do…? So if we don’t know our own true purpose and jus go with knowledge and science where it will lead to...very theoretical and very imaginative question but some body has to work on it before its too late.

… look if we don’t do some other will do…and it is not necessary that they will take care of us too… In India, today most suffered population r our tribes. They were in total harmony with nature, keeping there desires and need to the bare minimum.  in that way they lived there life with nature for thousands of years.   They are now at the verge of extinction due to non of there fault. there forest …river and mountains are exploited by so called smart and intelligent civilization. It means being simple and harmonious is not the perfect way of living. As today it will not take us long on the road of survival. Those who think and act global will decide world fate.
durwesh

Monday, December 12, 2011

भ्रष्टाचार के नाले में

मेरा देश इंडिया दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र
इसका नागरिक होने का अविवादित लाभ यह कि
यहां आप पूरी तरह स्वतंत्र है कि
सच-झूट, सार्थक-निरर्थक, मीठा-कड़ुआ
आप जो चाहे कर लें
भ्रष्टाचार के नाले में
जब चाहें, जितना चाहें नहा ले
पर इसी देश ने अपने नागरिकों को
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी दी
इसी का लाभ लेते हुए
मैं कुछ कहने जा रहा हूं
ओछी राजनिती का गंदा राज खोलने जा रहा हू
क्षमा करें यदि आप ‘ऑफेंडेड’ या आहत हों
पर क्या गलत कर रहा हूं?
‘फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’ नामक अधिकार
का ही तो प्रयोग कर रहा हूं,
इसलिये राज की बात ध्यान से सुने कि
प्रधानमंत्री देश का असरदार सरदार होता है
पूरे देश के राजकाज को
करीने से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है
अगर वह बेईमान लोगों को साथ लेकर चल रहा हो
उनको जो जी में आए उसे करने की छूट देता हो
उनके क्रियाकलापों की समीक्षा करने से कतराता हो
तो उसे पाक साफ नहीं कहा जा सकता है
क्योंकी कोई भी ईमानदार व्यक्ति
बेईमान लोगों की शर्तों पर
राजकाज चलाने को तैयार नहीं हो सकता
भ्रष्टाचार बढ़ता जाए
लोग ‘त्राहि माम’ कहने लगें
फिर भी प्रधानमंत्री ‘गठबंधन धर्म’
जैसे भ्रामक शब्द
बोलकर अपने दायित्व से बचता रहे
और निहायत बचकानी हरकत करते हुये
स्वच्छ छवि वाली स्वपोषित स्वघोषित घोषणा कराता रहे
कभी-कभी तो मुझे लगता है
कि वो महात्मा गांधी के
‘तीन बंदरों’ का अनुयायी हैं
इसलिये भ्रष्टाचार के बारे में वो
न देखता है, न सुनता और न कुछ बोलता हैं
शायद चुप्पी लगा आँख मूंद सोच लिया उन्होने की
समय के साथ, सब शांत हो जाएगा
जनता कि है यादाश्त कमजोर, सब वो भूल जयेगी
पर उन्हे नही मालूम की जनता को
खाने को मिले या न मिले
पास में पहनने-ओड़ने को कुछ रहे या न रहे,
खुले आसमान के नीचे पडे रात गुजारनी
फिर भी वो दाग़ी को छोडते नहीं ये बात है पुरानी

Sunday, December 11, 2011

LPG गेस स्वास्थय और जेब के लिये खतरा

जब LPG गेस पर लिखने का मन में विचार आया तो लगा की इसके बढे हुये दामों ने मेरा दिमाग घुमा दिया है, ऐसा कैसे हो सकता की लाखों घर का जिससे खाना बनता हो उसमे कुछ खराब हो. जब नेट पर इस बारे मे जानकारी ली तो मुझे पता लगा की मैं गलत नहीं था पचास सालों से भी ज्यादा, भारतीय घरों की रसोई में खाना बनाने वाली गेस के बारे में इस नजर से कभी देखा ही नहीं गया. ज्यादा से ज्यादा गेस लीक से होने वाली आग की दुर्घटनाओं के बारे में लोगों को सचेत भर किया गया.
इसमे कोई शक नहीं की यह हर तरह से लकडी के चूल्हे और अगीठी से तो अच्छी है. इस का चूल्हे और अगीठी तुलना में आधुनिक, साफ सुथरा और सस्ता होना इसके प्रसार का बहुत बढा कारण रहा. ये चूल्हे और अगींठी से ज्यादा दक्ष भी साबित हुई.
भारतीय घरों के अदंर LPG गेस पर खाना बनाने से होने वाले नुकसान का अभी तक कोई अधिकारिक सर्वे मेरे पास नहीं है, मुझे नहीं लगता इस बारे मे कभी सर्वे हुआ होगा. इस तरह के सर्वे विदेशों में जरूर हुये है. वहां हुये सर्वे के परिणाम चिंता जनक है. हम सब जानते है की गेस के जलने से कार्बन डाइ ओक्साइड बनती है पर अगर किसी कारण से गेस ठीक से पूरी ना जेल तो वो जहरीली कार्बन मोनो ओक्साईड गेस भी बनाती है. जो गंध रहित बेहद जहरीली गेस होती है और हमे इसका पता भी नहीं चलता. अकसर एसी गंभीर दुर्घटना के समाचार ठंड के दिनों मे मिलते रहते है की जब बंद कमरे में खाना बना और फिर सोते समय ही इस गेस ने सब को अपने आगोश मे ले लिया.
गेस चूल्हे में बर्नर के जलने पर और भी कई तरह की गेस निकलती है जो हमारे स्वास्थ के लिये नुकसान देह है. यह बात सही है की अगर खिडकी खुली हो तो सब गेस बाहर निकल जाती है पर यह कुछ हद तक ही ठीक है क्योंकी गेस जो बर्नर से निकलती है वो खिड़की से बाहर निकलने से पहले सारे घर में भी फेलती है उसी तरह जेसे खाने की भीनी भीनी गंध घर के सारे लोगों को बता देती है की घर में क्या बना रहा है.
गेस में मिलावट का अंदाजा उसके फ्लेम को देखकर किया जा सकता है. रंग बिरंगी लो मिलावट या बर्नर चोक होने का संकेत हो सकता है. खाना बनाते समय गेस का धुआ चाहे या अनचाहे हमारे अदंर जाता है. खासकर जब आप गेस के उपर झुक कर काम कर रहे होते है तब आप हर सांस के साथ इन सारी गेसों को भी अदंर ले रहे होते है. BTEX (benzene, toluene, ethylbenzene and xylene), methane, radon and other radioactive materials, organometallic compounds such as methylmercury organoarsenic and organolead, mercaptan odorants, nitrogen dioxide, carbon monoxide, fine particulates, polycyclic aromatic hydrocarbons, volatile organic compounds (including formaldehyde), and hundreds of other chemicals. यह सब गेस रोटी सेंकते हुये रोटी में भी जाती है. इन सब के बुरे असर में बारे में कृपया नेट में खोजे. हम तो बस इतना कहेगें की यह एक बहुत ही धीमा पर मारक जहर है. क्या पता की यह आपके शरीर के मोजूद बिमारीयों की एक बहुत बढी वजह हो.
इसका तुरंत कोइ असर नहीं होता इसलिये हम इसकी चिंता नहीं करते. सिगरेट के धुयें का भी तो तुरंत कोई असर नहीं होता. पर हम सब को मालूम है की सिगरेट पीने से क्या होता है. इस पर भले ही हमारे देश में सर्वे ना हुये हों पर विदेशों में हुये सर्वे बताते है की गेस और गेस चूल्हे को हानि कारक ना मानना बहुत बढी गलती है.
धुम्रपान के पैकट पर जो लिखा गया क्या वो गेस चूल्हे और गेस सिलिडंर पर नहीं लिखना चाहिये. ऐसा करने पर कम से कम गृहणियां कुछ तो सावधान होगीं. किचन को हवादार बनाने पर वो गंभीरता से सोचेगी. आज किचन को हवादार सिर्फ इसलिये बनाने की सोचते है कि तलने पर तेल की वाष्प किचन को चिकना किये बगेर बाहर निकल जाये. उन्हे आज भी गेस से कोई खतरा नजर नहीं आता.
यह गर्म और हल्की होने से उपर के कमरों में भी तेजी से फैलती है. अगर गेस लीक हो रही हो तो वो और भी गंभीर प्रणाम देती है. ये हल्की लीक किचन के वातावरण को प्रदूषित करती रहती है. आकडे बताते है की यह अस्थमा और सांस की अन्य बिमारी की एक बडी वजह है. इसलिये अगर खाना बनाने वाले को असथ्मा या फेफडॉं की बिमारी के अन्य रोग है तो वो इसे और बढायेगी. यही हाल गेस से चलने वाले बाथरूम वाटरहीटर का है. बंद बाथरूम में ये और भी नुकसान दे सकते है.
अब गेस को अलविदा कहने का वक्त आ गया है. उसकी कई वजह है. पहली वजह उसकी बढती कीमते, दिनों दिन इसके घटते स्रोत और तीसरी सबसे बढी वजह स्वास्थय के लिये खतरा.
खतरे की एक और वजह इस पर सेंकना और  तलना आसान होना. अब हर किसी क मालूम है की तला हुआ और सिका हुआ खाना हमारी सहेत के लिये कितना हानीकर है पर हम स्वाद से मजबूर ऐसा करने के लिये मजबूर है जब तक की डाक्टर का अंतिम फरमान ना आ जाये. देखा जाये तो तला हुआ या सिका हुआ खाना अब जेब पर भी हावी होने लगा है, क्योंकी यह उर्जा का बहुत बढा हिस्सा बरबाद करने का कारण है.
गेस की उपलब्धता तेजी से कम होती जा रही है. आजकल 21 दिन पहले नबंर लगाना पडता है फिर भी कोई भरोसा नहीं की गेस समय पर मिल ही जायेगी. दाम दिनों दिन बढते जा रहे है. इसलिये अब यह सही समय है कि हम इसके विकल्प की तलाश करें. और इसकी तुलना बजार में उपलब्ध दूसरे साधनों से करें.
आज हमारे पास सोलर और बिजली पर खाना बनाने का कम से कम दो सबसे बेहतर तरीँके है. क्यों ना हम सोलर को प्राथमिकता देते हुये दूसरे नंबर पर बिजली और तीसरे नबंर पर गेस को रखे. आज माइक्रो वेव और इंडक्शन कूकिंग जेसे दक्ष उपकरण बजार में है. जो लोग गेस को बिजली से सस्ता समझते है,  गेस पर सबसिडी के खत्म होते ही उन्हे उसकी असली कीमत का अदांज हो जायेगा. अच्छा हो की हम गेस को बडे उद्योगों और बिजली घरों में इस्तेमाल होने दे क्योंकी वहां शायद अभी यह इंधन का अच्छा विकल्प सबित हो! वेसे भी वहाँ के उपकरण उसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकते है.
अगले किसी लेख में हम गेस चूल्हे की तुलना में इंडक्श्न कूगिंग और माइक्रोवेव को परखेगे! तब तक आप सभी से इस लेख पर प्रतिक्रिया जानने की उम्मीद है.

Sunday, November 27, 2011

रिटेल मे FDI.. आपका स्वागत है जी

पिछले 2 दिन से टीवी और मिडिया मे पुर जोर से रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेशकों के लिए खोलने का विरोध हो रहा है. यह विरोध सिद्धांतिक कम और सियासी ज्यादा है. क्योंकी हम सब सुविधा पसंद और आराम तलब लोग हो गये है. अब हमे वातानुकुलित माल की आदत सी हो गई है,  टीवी देखते हुये और बरगर पीजा खाते हुये बडी हो रही  युवा पीढी के लिये वो अब स्टेटस सिम्बोल है. जिस किसी की हेसियत उसमे खरीददारी करने की है वो वही करना चाहता है. और जो नही कर सकते है वो आइसक्रीम खाते हुये विंडो शापिंग का मजा लेते हुये उसमे एक दिन दिल खोलकर खरीद दारी करने का सपना  देखता है.


रिटेल क्षेत्र को विदेशी निवेशक कुछ वेसा ही बनाने में मदद करेगा जेसा आज कल के सुपर माल है. इन सुविधाओं की कीमत वो खरीददारों से ही वसूल करेगा. अगर ऐसा होगा तो उनके सामानों के दाम आज स्थापित छोटे दुकानदारों से ज्यादा होंगे. इसके बाबजूद कुछ लोगा गुंणवत्ता और सुविधा और स्टेटस के लिये वहाँ से ही खरीद दारी करना चाहेगे. आज उपभोक्ता का एक बडा समूह सुविधा और गुण्वत्ता और स्टेटस के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार है. उसे जो यह दे देगा वो उसे अपने सिर आंखों पर बैठायेगा. इसलिये यह बजार अभी फिलहाल उन्ही के लिये है.

जो लोग छाती पीट कर रोने का नाटक कर रहे है वो नींद से जागे. और समय के साथ चले. वेसे भी 125 करोड़ की आबादी वाला ये देश बहुत बड़ा बाजार है. यहाँ हर किसी के लिये जगह है. पर टिकेगा वही जो उपभोक्ता के माप दंडो पर खरा उतरेगा. उपभोक्ता अब बदबूदार कीचड और धूल भरी सडकों, गायों और सुअरों की बीच खरीद दारी नहीं करना चाहता. वो अब अपनी मर्जी से और अपनी पसंद से माल खरीदना चाहता है क्या आप इसमे कोई मदद कर सकते है ...अगर नहीं ...!! तो जो करने को आ रहा है उसे आने दे.

हमने लाखों करोडों का काला धन विदेशों मे जमा करने मे शर्म नही की. उनकी संस्कृति को अपनाने मे कोई कसर नही छोडी. तो अब यह घडीयाली आंसू किस लिये. ?

अब आगे आगे देखो होता है क्या । मीडिया उनका,  दुकान उनकी माल उनका वो बार बार अपने माल को सबसे अच्छा बाताएगे  और तुम्हारे बाप दादाओ  ने जो खाया पिया उसे बुरा बाताएगे।  बेहिसाब पैसा आपके हीरो को देगे जो उनके माल को आपके लिए सबसे  अच्छा बाताएगे और उसके बाद आप उसे किसी भी की मत पर  खरीदने को मजबूर हो जायेगे फिर उसके लिए उधार लेना पड़े तो क्या ?
तुम ऊअनके लिए मात्र बाजार हो जिसके मालिक वो है।

 ॥ बच्चा ॥ अबे सालों ...इसे ही तो गुलामी कहते है॥
....happy shopping

दुर्बेश

Wednesday, November 23, 2011

अलार्म बजते ही सुबह नींद से कैसे उठे

रात को सोने से पहले आपने सुबह उठने के लिये अलार्म लगाया और गहरी नींद में सो गये. सुबह अलार्म बज उठा... मन और शरीर अभी भी सुबह की मीठी नींद का मजे ले रहा है और यह अलार्म!...हाथ अपने आप बजते अलार्म को बंद कर देते है. आप का उनींदा मन सोच रहा है..उफ्फ क्या मुसीबत है ये अलार्म ....क्या मीठी नींद है... क्या अभी ऊठना जरूरी है?..क्या हो जायेगा अगर 5 मिनिट और आराम कर लू!..अभी तो समय है ...मेने बेकार में इतनी सुबह अलार्म लगा दिया...औ...र. फिर से गहरी नींद...


1 घंटे बाद......हे भगवान ..आज फिर लेट...आप बिस्तर से उछल पडते है और देर से उठने के लिये अपने आप को कोसने लगते है. पेट पर बढती चर्बी, एक्सरर्साइज ना करने का गुस्सा. गुस्सा आ रहा है की क्यों अलार्म के बजते ही बिस्तर से नही उठे. शायद आज बिना नाश्ते के जाना होगा स्टाफ बस तो अब मिलने से रही...टेक्सी से जाना होगा और आफिस में बोस की घूरती आंखों का सामना...उफ्फ क्या जिंदगी है!!....

हर रोज ऐसा ही होता है रोज अलार्म लगाओ...उसके बजने पर ना उठो और फिर देर से उठने के लिये खुद को कोसने लगो. ऐसा क्यों होता है...सुबह अलार्म बजते ही मन ना उठने के बहाने क्यों खोजने लगता है. जेसे वो मन आपका नहीं किसी और का हो!.

आप में अनुशासन की कमी नहीं है, आप में इच्छा शक्ति भी भरपूर है. पर सुबह की मीठी नींद में जेसे अनुशासन धरा का धरा रह जाता है और इच्छाशक्ति हवा हो जाती है. रात जिस उम्मीद के साथ अलार्म लगाते है ...सुबह की मीठी नींद सब उम्मीदों पर पानी फेर देती है. जब तक कोई मुसीबत ना आ जाये तब तक सुबह उठने का मन ही नहीं करता.

ऐसा हम सब के साथ होता है ...मेरे साथ भी यही सब होता था ...पर अब नहीं होता. अब जब में सुबह उठता हू तो कोई आवाज मेरे मन में नहीं उठती. मुझे उठने के लिये चेतन मन की कोई जरूरत नहीं है इसलिये ना कोई चेतन को सवाल ना उससे किसी जबाब का इतिंजार. कोई सवाल-जबाब नहीं. अलार्म बजा और स्वत: ही उठने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है वेसे हि जेसे पेव्लोग का कुत्ता अलार्म बजते ही खाने के लिये तैयार हो जाता था.

अब अलार्म बजते ही मेरी आंखे धीरे से खुलती है ..हाथ की उगलिया अलार्म बंद करती है और फिर गहरी सांस लेकर फेफडो में हवा भरता हू...एक भरपूर अगडाई लेता हुआ बिस्तर से उठता हू, दो गिलास पानी पीकर बाथरूम की तरफ बढ जाता हू. सब कुछ जेसे अपने आप होता है जेसे में कोई रोबोट हू. ना कुछ सोचने की जरूरत ना ज्यादा कुछ समझने और समझाने की जरूरत.

बाथरूम में ब्रश करते हुये नींद पूरी तरह भाग चुकी होती है. सुबह की ताजी हवा मे सांस लेते हुए नये दिन का स्वागत करने के लिये मन और शरीर तैयार है...यह सब कैसे संभव हो गया इसे समझने के लिये हमे अपने मन को समझना होगा.

आप ने नोटिस किया कि रात को जब आप अलार्म सेट करते हो और सुबह जब उठने की कोशिश करते हो उन दोनों समय में हमारे दिमाग की सजगता एक सी नहीं होती. रात को दिमाग अलार्म लगाते हुये जितना सजग था, सुबह अलार्म बजते समय उतना ही उनींदा, सुस्त, अक्षम. सुबह उठने का निर्णय आप इस उनींदा, सुस्त, अक्षम चेतन मन से कराने की कोशिश करते हो जो बहुत कुछ उस समय अवचेतन मन के बस में है.

हमे लगता है की हमे और कडे अनुशासन और ज्यादा इच्छा शक्ति की जरूरत है इसलिये हम उतने ही जोरादार तरीके से अपने को कोसने लगते है. पर सुबह नींद मे तो हम अवचेतन मन के बस में है और अवचेतन मन अनुशासन नहीं समझता वो तो आदत का गुलाम है. शरीर को ज्यादा से ज्यादा आराम देने लिये प्रतिबद्ध. उस समय चेतन मन तो उनींदा, सुस्त, अक्षम है, वो कैसे कोई ठीक निर्णय कर सकता है. इच्छा शक्ति और अनुशासन चेतन मन समझता है. अवचेतन पर इसका कोई असर नहीं होता है.

आपको अनुशासन और इच्छा शक्ति की जरूरत तब ज्यादा होती है जब आप पूरे होश में हो. आप सुबह के उनींदा, सुस्त, अक्षम चेतन मन से अनुशासन की उम्मीद कैसे कर सकते है. हम कई बार अलार्म बजते ही उठ जाते है पर उसकी वजह डर या चिंता होती है. शायद यही वजह है की अगर सुबह ट्रेन पकडनी होतो अलार्म बजते ही आप बिस्तर से उछल पडते है. अब अगर सुबह उठने का काम भी डर के साथ करना चाहते हो तो आपकी मर्जी. पर जो काम एक आदत को बनाने से हो सकता है उसके लिये डर को वजह बनाना कहां की अक्लमंदी है.

इसके लिये आप को आदत बनानी होगी बेसे ही जेसे आप ने कार चलाना सीखने के लिये बनाई, याद है पहली बार जब आप ने कार चलाना सीखी तो आप का पैर ब्रेक और एक्सीलेटर खोजता था और हाथ स्टेयरिग और साईड इंडीकेटर नोब के बीच उलझे हुये और आंखे ...फिर कुछ ही हफ्तों से जेसे जादू सा हो गया. सब कुछ जेसे अपने आप होने लगा था. सब स्वत: होने लगा. एसे ही आप को एक ओर नई आदत बनानी होगी....सुबह अलार्म बजते ही उठने की आदत.

कुछ दिन आप को अलार्म के बजते ही उठने की आदत बनानी है, पर यह काम आप को उनींदी सुबह में नहीं करना है. इसे तो पूरे होश और हवास में कुछ दिन दोहराना है. तब तक दोहराना है जब तक की वो आपकी आदत ना बन जाये. एक आदत जो सुबह का अलार्म बजते ही स्व्त: ही उठने की आदत. किसी अनुशासन और इच्छा शक्ति के बिना. बस एक आदत. इसके लिये आपको ड्रामे की रिहर्सल नीचे दिये स्क्रिपट के अनुसार कुछ दिन तक करनी होगी,

अपने बेडरूम में 10 मिनिट बाद का उठने का अलार्म सेट करो. और सोने के लिये जो भी तैयारी करनी हो उसे करो. जेसे अगर सोने के लिये नाईट ड्रेस पहनते हो तो उसे पहन लो. रात को सोने से पहले अगर ब्रश करते हो तो उसे कर लो. सोने से पहले अगर चशमा उतारते हो तो उसे उतार दो. कबंल ओढ्कर एसे लेटो जेसे सच में सो रहे हो. जेसे ही अलार्म बजे तो जागने का अभिनय करते हुये उसे बंद करो. अगडाई लेते हुये फेफडो में सांस भरो और उठ जाओ जा कर एक गिलास पानी पीओ ओर बाथरूम जाओ. यानी की वो सब करो जो सुबह उठते ही करना चाहते हो.

अब इस क्रम को बार बार दोहराओ कम से कम एक दिन में तीन चार बार...कुछ दिनों तक करते रहो.. कुछ दिन में यह आपकी आदत बन जायेगी. इस पूरे ड्रामे को दिमाग में भी दोहरा सकते है पर मेरी राय है की कुछ दिन आप इसे करके देखे उसके बाद आप चाहे तो इसे दिमाग में दोहरा कर भी इसकी प्रेक्टिस कर सकते है.

बस आपको इतना ध्यान रखना है की इस ड्रामे को करते समय चेतन मन में उठने वाले सवालों पर ध्यान नहीं देना है. हो सकता है की आपका चेतन मन आपको बोले की क्या बेवकूफी कर रहे हो....याद रखो यही वो चेतन मन था जिसने पहली बार जब आपने कार चलाना सीखी थी तो कितना डराया था. तब आप ने इस की नहीं सुनी और आप ने अपनी इच्छा शक्ति का इस्तेमाल करते हुये वही किया जो आपके अंतरमन में था तो आज भी आप इसकी नही सुनों आपकी यह सुबह अलार्म बजते ही उठने का ड्रामा करने की आदत को अपनी इच्छा शक्ति का इस्तेमाल करते हुये इसे करो. और उसके जादू भरे परिणाम की प्रतिक्षा करो. विशवास करो आप को कार सीखने में लगे समय से बहुत कम समय इस आदत को सीखने मे लगेगा.

सोचो इस आदत को सीखते ही आपकी जिंदगी कितनी आसान हो जायेगी...कितने रुके हुये और उलझन भरे काम आसानी से आप अब कर पाओगे वो भी बिना किसी अतिरिक्त डर या चिंता के..

जितनी बार आप प्रेक्टिस करेगे वो उतने गहरे में आपके मन मे उतर जायेगा. अलार्म बजा...तो उठना है.... अलार्म बजा...तो उठना है. एक बार यह आपकी आदत बन गई तो फिर उसके बाद सब आसान ...फिर आपके मन में सुबह कोई सवाल जबाब नहीं होगा..अलार्म बजेगा और बिस्तर छोडने की प्रक्रिया स्वत: ही चालू हो जायेगी. यह आसान सा प्रयोग आपको आपके अव चेतन मन के काम करने के तरीके के बारे में आपकी समझ को बढायेगा.





Sunday, November 20, 2011

साइकिल..जरा याद इन्हे भी कर ले!

हमारे देश के मध्यम वर्ग एवं उच्च वर्ग के युवा लोग साइकिल चलाने की सोच भी नहीं सकते, ये आधुनिकता के परिणाम ही है कि किशोर होते ही वे मोटर साइकिल और कार चलाना चाहते है और पैदल चलना या साइकिल चलाना अपनी शान के खिलाफ समझते है. जीवन मूल्यों मे यह बदलाव पिछले तीन दशक मे तेजी से हुआ है.

कुछ दशकों पहले फिल्मों में हीरो होरोईन साइकिल का प्रेम गजब का था. ये वो जमाना था जब साइकिल गली महोल्ले की शान होती थी. जब साइकिल खरीदी जाती थी तो उसकी खुशी में सबको मिठाई खिलाई जाती थी. बच्चे अपने पापा का शाम को दफ्तर से आने का बेसब्री से इंतिजार करते थे की कब पापा आयें और साइकिल चलाने को मिले. अगर उनके पास साइकिल होती तो वो शहर के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने में कोई झिझक महसूस नहीं करते थे. पिता खुश होकर अपने बच्चों को साईकिल इनाम में देते. स्कूल में जिस के पास साइकिल होती थी उसकी शान ही अलग होती.

जमाना बदल गया. साइकिल की जगह अब स्कूटी और मोटर साइकिल ने ले ली पिछले दो दशक में तो जेसे चार पहिया वाहनों की बाढ़ सी आ गयी है. ऐसे समय में साइकिल को अती गरीब की सवारी मान लिया गया है. इस गला काट जिंदगी में जब हमारे जीवन मूल्य तेजी से बदल रहे हो तो आपको मेरा साइकिल के बारे में बात करना अजीब लग रहा होगा. 

उन्नत देशों में साइकिल प्रेम बढता जा रहा है. कार चलाते चलाते और हवाई जहाज उडाते उडाते उन्हे अब इसकी अहमियत मालूम हो गई है. वेसे भी वहां के युवाओं और किशोरों में अब भी साइकिल प्रेम बाकी है. ये उनके यहां स्पोर्ट टीवी पर दिखाई जाने वाली प्रतियोगिता में उनके उत्साह को देखकर समझा जा सकता है. वहां की सरकारे साइकिल संस्कृति को बढावा दे रही है. व्यस्त मार्गों पर साइकिलों के लिए अलग से ट्रैक निर्माण तथा लोगों को साइकिल संस्कृति से जोड़ने के लिए पब्लिक और प्राइवेट वाहनों में साइकिलों को समुचित रूप से टांग सकने के लिए विशेष प्रकार के कैरियर लगवाना साइकिल के प्रति उनके समर्पण को दिखाता है. स्कूलों में साइकिल स्टंट के लिये विशेष साइकिल का प्रचलन और उसके लिये अलग से साइकिल ट्रेकस का निर्माण.

पश्चिम की बुराईयों को आसानी से हमने अपना लिया हमारे बुजुर्ग रात दिन उन बुराइयों क लेकर अपना सिर पीटते रह्ते है पर पता नहीं क्यों हम उनकी इस अच्छाई को क्यों नहीं अपना पाये. आज प्रदूषित महानगरीय जीवन शैली में साइकिल और भी प्रसांगिक हो गई है. अगर आपको लगता है कि साइकिल वहां सिर्फ गरीबों की सवारी है या इसे सिर्फ गांवों में चलाया जाता है तो आप गलत हैं । शायद आपको नहीं पता कि हालीवुड की सेलिब्रिटी मैडोना एक प्रसिद्ध साइकिल चालक हैं।

हमारे यहां तो सरकारी नियम और कानून सब साइकिल विरोधी है. यहां तक की ट्रेफिक हवलदार भी साइकिल सवार को पहले पकडता है. ट्रेफिक नियम साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों के सबसे बाद में प्राथमिकता देते है. एसे में साइकिल केसे बनी रह पायेगी. धूल और कीचड से सनी गढों के बीच से गुजरती खस्ता हाल बरबाद सडकों से घिरे इन शहरों और कस्बों में साइकिलों के लिए अलग से ट्रैक एवं पार्किंग विकास एक मजाक सा लगता है.

यहां तक की सरकारी गेर सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थानों में साइकिल पर आने वाले कर्मचारी को चार पहिया वाहन वाले से आने वाले कर्मचारी की तुलाना में बेहद कम कनवेंस एलाउंस मिलता है. जबकीइंधन बचाने और पर्यावरण बचानेके नाम पर उसे सबसे ज्यादा एलाउंस मिलना चाहिये. गेट पर खड़ा गेटकीपर भी साइकिल से आते कर्मचारी को हिकारत की नजरों से देखता है जेसे वो कोई कर्मचारी ना होकर चोर हो. पर कार को देखते ही तनकर स्लूट मारता है.

क्या आपने कभी सोचा है कि फैंसी जिम या उच्च प्रोफ़ाइल प्रशिक्षकों के बिना भी आप अपने आपको फिट रख सकते हैं । इसके लिये आपको सिर्फ कुछ देर साइकिल के पैडल घुमाने हैं । अगर चिकित्सकों की या शोधकर्ताओं की मानें तो फिट रहने के लिए साइकलिंग सबसे प्रभावी और कम लागत वाला नुस्खा है। साइकिल चलाना शरीर के लिए संपूर्ण व्यायाम है । साइकलिंग से रक्त का प्रवाह ठीक रहता है और यह आपके पैरों को सही आकार देता है । शहरी युवाओं में रीढ़ की हड्डी की समस्या बहुत ही आम है और साइकिल चलाने से आपकी रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है । अमेरिकी कॉलेज आफ स्पोर्टस मेडिसिन की पत्रिका में छपे शोध के अनुसार वो बच्चे जो साइकिल से स्कूल जाते हैं वो उन बच्चों की तुलना में ज्यादा सक्रिय होते हैं जो यातायात का कोई और साधन अपनाते हैं।


शहरों में एक सर्वे से पता चला की हमारे 70% से ज्यादा रोजमर्रा के काम 2 किलोँमीटर की परधी में हो जाते है. जो आसानी से साइकिल चलाकर हम पूरा कर सकते है. साईकिल एक जीरो फ्यूल वाली एक बेहद सबसे सस्ती सवारी जो आसानी किसी भी उबड खाबड सड़क पर निकल जाती है. क्या ही अच्छा हो की स्थानीय स्तर पर पार्षद अपने क्षेत्र में साइकिल और पैदल चलने वालों के लिये साफ और सुरक्षित पथ बनवायें. साइकिल प्रतियोगिता करा कर इसको किशोरों और यूवाओं में बढावा दे. पब्लिक वाहनों में एसी सुविधा हो जिससे उसमे साइकिल लादी जा सके जिससे गंतव्य पर पहुचने पर बाकी का सफर साइकिल से कर सके.

अब समय आ गया है कि हम साइकिल को पर्यावरण का दोस्त मानकर उसे सम्मान की दृष्टी से देखे और उसे चलाने वालों को पूरा सम्मान देते हुये उन्हे जाने की पहली प्राथमिकिता दे. हमारी सेहत का ख्याल रखने वाली हमारी सबसे अच्छी डाक्टर साबित हो सकती है. साइकिल चलाना अपने आप में एक विशेष अनुभूति होती है बशर्ते साइकिल चलाने वाले में इस विशेष अनुभूति का अनुभव करने की ललक हो

कुछ दिन हमने भी साइकिल चलाई थी और आफिस भी गये. पर इस दोरान जो झेला उसे फिर किसी दिन बयान करेगे. अभी तो फिलहाल बस इतना कह सकते है की इस देश के योजनाकारों और निंयताओं की नींद खुले और साइकिल जेसे छोटे छोटे पर अति महत्वपूर्ण पहलुओं पर उनकी नजरे इनायत हो. लाखों करोड रूपये पेट्रोल सब्सिडी पर फूंक देने वाली सरकार अब साइकिल पर भी ध्यान दे और साइकिल संस्कृति को बढावा देने के बारे मे गंभीरता से सोचे.   सब्सिडी के जाल मे उलझे इस देश को इससे थोडी तो राहत मिलेगी.


Friday, November 18, 2011

YHAI मेम्बर शिप क्यों!!!



YHAI मेम्बर शिप क्यों!!!




यूथ होस्टल एशोसियेशन आफ इन्डिया अनखोजे अनजाने या फिर जाने पहचाने लोकल ट्रेक राष्ट्रीय ट्रेक और साहस और रोमांच से भरपूर खेल कराती है...

  • क्या आप परिवार के साथ छुट्टीयां प्लान कर रहे हें?
  • क्या दोस्तों के साथ ट्रेकिंग या घूमने का प्रोग्राम बना रहे है?
  • क्या आप विदेश जा रहे है?
  • क्या आपका स्कूल विद्यार्थियों के लिये टूर पैकेज प्लान कर रहा हे?
  • या फिर ठहरने के लिये सस्ते पर साफ-सुथरे बजट होटल और होस्टल की तलाश है

फिर इंतिजार किस बात का यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ओफ इंडिया के मेम्बर बन कर यह सब सभंव करें।

मेम्बर शिप के फायदे:
  • 48 से ज्यादा जगहों पर यूथ होस्टल के सस्ते होस्टल में ठहरने की सुविधा
  • यह मेम्बरशिप कार्ड पूरी दुनिया के बेहतरीन 4500 जगहों पर काम आता है
  • समय समय पर आयोजित होने वाले एडवेंचर और ट्रेकिंग प्रोग्राम में भाग ले सकते हे
  • निरुला रेस्टारेंट में YHAI मेम्बर को डीस्काउंट।
  • GTDC (Goa tourism development corporation) होटल में डीस्काउंट।
  • HPTDC (Himachal Pradesh Tourism Development Corporation) के होटल और ट्रासपोर्ट में डीस्काउंट।
  • UP (Run by UP State Tourism).ट्यूरिस्ट होटल के होटल और ट्रासपोर्ट में डीस्काउंट।

 मेम्बरशिप की विभिन्न दरें जानने के लिये YHAI साईट पर क्लिक करे

मेम्बरशिप लेने के लिये मेम्बरशिप फार्म डाउनलोड कर उसे पूरी तरह भरकर एवं उसके साथ

• 1-फोटो ( 2फोटो लाइफ मेम्बरशिप के लिये)
• मेम्बरशिप शुल्क का डिमांड ड्राफ्ट in favour of "YOUTH HOSTELS ASSOCIATION OF INDIA" payable at New Delhi.
• Identity cum address proof के लिये (पासपोर्ट , वोटर कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस की फोटो कोपी जरूरी है

यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ओफ इंडिया , बी एच ई एल भोपाल यूनिट की सदस्यता पाने के लिये आप भरा हुआ फार्म  नीचे दिये पते पर जमा कर सकते है-

 यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ओफ इंडिया

 बी एच ई एल भोपाल यूनिट
कार्यालय: 05/N-3/'D'-सेक्टर बरखेडा भोपाल-462021
मेल: yhaibhel@bhelbpl.co.in

Thursday, November 17, 2011

जेम्स फोरसिथ पगडंडी पर बीएचईएल भोपाल यूनिट के सदस्यों ने की साहसिक ट्रेकिंग

पचमढ़ी हिल स्टेशन के खोजकर्ता कैप्टन जेम्स फोरसिथ द्वारा वर्ष 1862 में पहली बार जिस रास्ते का इस्तेमाल किया, उसी रास्ते पर यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया बी.एच.ई.एल.इकाई भोपाल, के 39 सदस्यों ने दिनांक 13/11/11 से 15/11/11 तक तीन दिवसीय साहस और रोमांच से भरे ट्रेकिंग कार्यक्रम ’’री विजिटिंग फोरसिथ लैण्ड’’ मैं हिस्सा लिया.


इस अनोखे ट्रेकिंग कार्यक्रम को 10 से 17 नवंबर तक सतपुडा टाईगर रिजर्व होशंगाबाद द्वारा  पचमढ़ी खोज के 150 वर्ष पूर्ण होने और मध्यप्रदेश के वन विभाग की स्थापना के 150 साल पूरे होने के अवसर आयोजित किया.

इस यात्रा को ’’री विजिटिंग फोरसिथ लैण्ड’’ नाम दिया गया। विभाग के मुताबिक इसी पगडंडी से जाकर कैप्टन जेम्स फोरसिथ ने पचमढ़ी की खोज की थी। 1862 में बनाया गया यह रास्ता सैलानियों के लिए बंद था। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व द्वारा इस अतिदुर्गम पर्वतों के बीच से जाने वाले इस मार्ग को पहली बार ट्रेकिंग के लिये खोला गया। लगभग 37 किमी के इस दुर्गम रास्ते पर ट्रेकिंग करने का बेहद रोमांचक अनुभव इस टीम ने किया हैं। रास्ते में वन्य प्राणियों और दुर्लभ वनस्पतियों की महत्वपूर्ण जानकारी के साथ ही वहां रह रहे वनवासीयों से मुलाकात और उसकी संस्कृति जानने का मोका इस टीम को मिला.

मध्य प्रदेश के प्रभारी वनमंत्री ने हरी झंडी दिखाकर समूह को जिप्सी वाहनों से रावाना किया. दल झिरपा होते 21 किलोमीटर का सफर तय कर दोपहर के भोजन के समय तक झेला कैम्प तक पहुचा. रास्ते मे सात धारा पर थोडी देर का विराम दिया गया जिससे सदस्य मनोहारी दृश्य का मजा ले सके.
झेला कैम्प ट्रेकिंग का पहला पडाव था। इस स्थल पर ईको पर्यटन से संबंधित शैक्षणिक; मनोरंजक तथा साहसिक गतिविधियॉ संचालित की गई और रात्रि मे यही दल के सभी सदस्यों ने विश्राम किया।

दूसरे दिन सुबह झेला केम्प से पैदल देनवा नदी के किनारे ट्रेकिंग आरंभ कर  9 किलोमीटर ट्रेक करते हुये दल दोपहर 2 बजे कांजीघाट पहुचा. दोपहर का भोजन करने के बाद यहॉ सभी ट्रेकर्स कमाण्डो नेट तथा बर्मा ब्रिज जैसे साहसिक खेलों में सम्मिलित हुए। रात्रि में स्थानीय वनवासीयों ने केम्प फायर के दौरान पारंपरिक लोकनृत्य पेश किया.

तीसरे दिन कांजीघाट से सुबह चल कर दल दोपहर बाद पचमढी मे बायसन लॉज पहॅचा। वर्तमान मे पचमढी मे जो बायसन लॉज है कभी वह जेम्स फोरसिथ का आश्रय स्थल था उन्होने ही इसे बनाया था। वन प्रांतर मे स्थित साज;साल; सरई; सर्रू; हर्रा; आम जामुन; महुआ के वृक्ष और बल खाती देनवा नदी और उसके स्वच्छ जल के झरनों दुर्गम पहाडियो के बीच इस टेकिंग का अपना खास महत्व रहा।


Wednesday, November 16, 2011

how to meditate



When we listen good music, natural scene like sun set or sun rise one feels good as it takes us to a  relax state of mind. However meditation goes beyond simple state of relaxation, it brings a complete thought less relaxed mind. Music, reading or visualization is not suggested in meditation as it  can bring some amount of thoughts.
We know that thoughts and emotions are like violent water waves over the surface of pond. when it occurs we can not see bottom of pond, but when  these waves are silent one can see the bottom of pond clearly. In a similar way thought less relaxed mind is like a pond water with no waves. Salient but alert mind is not a easy task. bcause alert mind is always surrounded with some kind of thought and emotion generated by conscious and subconscious mind.
But if some way such silence is achieved, it  helps meeting your super conscious hidden deep in our mind...whenever such event occurs one  may experience it like meeting a god. it will not happen in just one day..but if one practice regularly, it is most likely to meet your god one day.
To start meditation choose time and place where you can have your privacy and no external disturbance like mobile and TV for the time meditation is done. Choose a place where you can perform this repeatedly over a long period of time. Do some breathing and starching exercise as it help distress your self and prepare mood for meditation. It is not mandatory but it is desirable as one can train mind easily if it done repeatedly the same way and at same place. It means as soon as u will enter in the room and do exercise mind will understand that its time to meditate. It is similar to the events like when we see toilet and feel like going toilet. Whenever we see kitchen we salivate for eating something…whenever we see tv we search remote. And whenever we see deities picture our hands lift and eyes closes for prayer.

follow following sequence for practicing meditation:
  1. Sit at one place with closed eyes and doing nothing, not a easy task to start with, as sudden itching sensation..pains will start appearing in different part of body which will keep on distracting or disturb your mind. Your mind will compel you to move …and provoking thought one after another will try to overcome you. to prove that whatever you are doing is a  bull shit. Don't listen to it after few session this will disappear. As you feel comfortable increase time
  2. Posture is not very important. But I prefer sitting on chair and hands on my lapse spine erect or otherwise sitting on ground with crossed legs hands resting on ankle with palms up and keeping spine erect and straight.
  3. If successful then start noticing emotion, thought, words appearing in mind from next time onwards. But don’t give attention to it and don’t start any dialogue with it. with time these emotions, thoughts and words start reducing in quantity and intensity and you will slowly start drifting towards heaviness and feel sleepy. Certainly a good sign.  micro sleep are normal but avoid long duration of sleep.
  4. If you are really feeling too sleepy,  it only means that your body need rest…so allow it to sleep but remember when you are awake continue meditating at least for 5 minutes before leaving place. Believe me it will give an wonderful feeling.
  5. Otherwise one can overcome uncontrolled sleepiness by doing meditation with half open eyes.Doing with sitting posture while keeping spine erect and straight will also help avoiding sleepiness. This is considered to be difficult stage one has to be persistence. soon you will be able to do it effortlessly.
  6. After some time, mind and body will learn to stay calm and awake without doing anything and mind without indulging internal and external dialogue.
  7.  After few days practice you may experience one or all of this with no particular order during meditation 
    1. A color full patterns start at centre of the eyes. Or a bright light or a certain color remains 
    2. You may start seeing glimpse of picture or short dream about known or unknown
    3. Picture of your deity or guru may appear
    4.  You may experience sudden numbness in certain body part or feeling pains and fatigue
    5. You may hear noise, music or unexplained sound
    6. You may experience vibrations at different part of body. Some time feeling as if whole body expanding and contracting in rhythm.
    7. Some time feeling like floating in air.
    8. Some times your nose may fill with smell…bad or good
    9. Some time your old memories may become alive as dream.
    10.  Some time you see a new place meet new people in dream like situation
    11.  Not aware of your body and time, as if you were  unconscious
I m also at step 7 and experiencing (a) to (k) at different times of meditation. so can not comment more then that on meditation, it is not that important , what you feel during meditation. more important how you feel after meditation.
one thing for sure that after effects of meditation are wonderful.  As I am progressing my mind body relationship getting better day by day. My quality of life is improving. nagging, anxiety, anger reduced to great extent. No prolong state of anger or fear. experiencing full of energy, good quality sleep in less hours.... means more time to devote for my hobbies and interest. World around me looks more friendly.

Mediation experience can't be explained, it can only be felt by an individual, regualr practice of it creates an extra ordinary state of mind and body. It gives us something extra ordinary. Something beyond the approach of our logical active mind. On a scale of 0 to 10 one can have varying degree of meditation even having meditation at level of 2-3 when one feel like state of relaxation can create wonders to us. So when ever possible have it, experience it and enjoy it. just keep practice and ripe the fruit of true joy and happiness. 
Meaning full solution to the issue are result of concentration and contemplation on the issue which is effectively achieved through meditation. its a cycle as below 
Relax>>Meditation>>Contemplation>>Concentration>>Relax 
Before meditation clearly define issue and then carry out above cycle on it during meditation let idea from your subconscious mind flow towards conscious zone. most of the itme those idea will be in raw form which need further contemplation and concentration refine the idea and carry out this cycle with new information few times till you get clear and complete solution 
durwesh



मस्तिक तंरगे(Brain wave)

वैज्ञानिक शोध से पता चला की मस्तिक विद्युत तंरगे पैदा करता है. इन मस्तिक तंरगो का व्यक्ति के मन स्थति के अनुसार एक निश्चित पेटर्न होता है. जिसे माप कर व्यक्ति के दिमाग के क्रिया-कलाप के स्तर का पता लगाया जा सकता है. यह पता लगा है की क्रियाशील दिमाग बीटा विद्युत तंरगे पैदा करता है जिसकी आवृति 15 से 40 चक्र हो सकती है. सक्रिय बातचीत में भी एक व्यक्ति बीटा तरंगों पैदा करेगा इसी तरह एक भाषण, देने वाला या एक शिक्षक क्लास में बच्चों को पढाते समय बीटा तंरेगे पैदा करेगे, वंही झगड़ने वाला उच्च बीटा में होगा.


अगली अवृति श्रेणी की तरंग अल्फा है. जहाँ बीटा उत्तेजना का प्रतिनिधित्व करती है, वही अल्फा गैर उत्तेजित मन का प्रतिनिधित्व करती है. अल्फा मास्तिक तंरगे की आव्रति कम है, पर आयाम में ये बीटा से उच्च हैं. इनकी आवृत्ति 9 से 14 चक्र प्रति सेकंड हो सकती है. एक व्यक्ति जो किसी कार्य को पूरा कर आराम करने के लिए बैठता है उसका दिमाग अल्फा तंरगे उतस्रजित करने लगता है. बगीचे में टहल रहा वयक्ति का दिमाग भी अकसर अल्फा स्थति में होगा

अगली श्रेणी, थीटा मास्तिक तंरगे की आती है, ये भी पहले वाली से अधिक आयाम और धीमी आवृत्ति होती है. थीटा मास्तिक तंरगों की आवृत्ति रेंज आम तौर पर 5 और 8 चक्र है. एक व्यक्ति जो उनींदा सा हो, अक्सर उसका मास्तिक थीटा स्थति में होगा. जेसे एक व्यक्ति अगर हाईवे पर गाडी चला रहा हो, और उसे याद नहीं की पिछले 1-2 मील कैसे गुजर गये तो संभवत: उसका दिमाग थीटा मास्तिक तंरगे में होगा. जो अकसर हाईवे ड्राइविंग की प्रक्रिया की एकरस्ता से प्रेरित हो जाता है. ट्ढी मेडी घुमाव दार उबड खाबड सडके ड्राईवर को सजग बीटा स्थति में रेखेगी वही हाइवे पर अकसर ड्राइवर थीटा मास्तिक तंरगे की स्थति का अनुभव करेगा.

अकसर थीटा मास्तिक अवधियों के दौरान अच्छे विचार आने लगते है. यह स्नान करते हुये या हजामत बनाते या ब्रश करते हुये भी हो सकता है यह एक स्थति है जहां कार्य तो स्वत: हो जाते हैं और मन कही और होता है. थीटा स्थति के दौरान विचार अक्सर मुक्त प्रवाह के होते है और सेंसरशिप या अपराधबोध के बिना होता है. यह आमतौर पर एक बहुत ही सकारात्मक मानसिक स्थिति है.

अंतिम मास्तिक तंरग स्थति डेल्टा है. यहाँ मास्तिक तंरगे सबसे बड़ा आयाम और धीमी आवृत्ति के हैं. वे आम तौर पर 1.5 से 4 चक्र प्रति सेकंड होती है. यह कभी भी शून्य नहीं हो सकती क्योंकी तब इसका मतल्ब मृत मस्तिष्क होगा. लेकिन, गहरी स्वप्न रहित नींद में यह सबसे कम आवृत्ति 2 से 3 चक्र तक जा स्कती है.

जब हम बिस्तर पर नींद से पहले कुछ मिनट के लिए पढ़ते तो मस्तिक तंरगे का लो बीटा में होने की संभावना होती हैं. जब हम पुस्तक नीचे रख आँखें बंद करते है तो अल्फा या थीटा स्थति में हो सकती है. अंत में, जब नींद से भारी पलके हमे मस्तिक को डेल्टा तरंग़ में होने का संकेत देती है. रात भर की नींद में हम कई बार इन चारों स्थति में से गुजरते है इन चारों स्थतियों का एक चक्र करीब 90 मिनिट में पूर्ण होता है इस तरह रात भर की नींद में हम 4 से 6 चक्र पूरा करते है.

संक्षेप में सभी पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का मस्तिक इन चार मास्तिक तंरग स्थतियों जो उच्च आयाम, कम आवृत्ति डेल्टा से कम आयाम, उच्च आवृत्ति बीटा की विभिन्न स्थतियों का मिश्रण होता है, से गुजरता है. अनुसंधान में देखा गया की कीसी भी स्थति में यह चार प्रकार कि तंरगे का मिश्रित सवरूप हमारे मस्तिक में बनता रहता है. पर मन स्थति के अनुसार उनमे चारों प्रकार की तंरगो के ताकत अलग अलग हो सकती है. गहरी नींद में बीटा तरंगे अपने सबसे सूक्ष्म स्थति में होती है. वही पूर्ण सजगता में डेल्टा तंरगे बहुत कमजोर होती है. किसी एक प्रकार की मास्तिक तंरग स्थति का प्रबल होना, व्यक्ति की गतिविधि के स्तर के आधार पर हो सकता है, शेष तीन मस्तिष्क तंरगे भी मिश्रत अवस्था में रहेगी पर उनकी स्थति पहली वाली से कमजोर रहेगी. इस तरह इन चारों प्रकार कि तरंगो का आपस में साक्षेप स्थति उस समय मन स्थति तय करेगी.

प्रयोगों से देखा गया की बाहरी कारण इन तंरगों को सीधा प्रभावित करते है. मेरा व्यक्तिगत अनुभव है की इन ब्रेन बेव्स को बिना किसी रासायनिक ड्रग को लिये बिना भी आसानी से बदला जा सकता है. इस तरह इनका उपयोग हम अपने मस्तिक कि कार्य क्षमता को बढाने में कर सकते है. आसानी से किसी भी समय रिलेक्स फोकस और क्रीयेटिव हो सकते है. जरूरत पढने पर गहरी नींद मे जा सकते है या फिर उनींदे दिमाग को चाय या काफी पिये बिना सजग बना सकते है.

हम इन मस्तिक तंरगों को नियंत्रित कर हम मन की विभिन्न स्थ्ति पर काबू पा सकते है. और काफी हद तक उसे मन चाही स्थति में ला जा सकते है. अब जेसे पिछले उदाहरण में हाइवे पर ड्राइव करने की स्थति में मस्तिक में उठती थीटा तंरगे ड्राइवर को आंनद और ताजगी का अनुभव कराती है और वो आरामदायक स्थति का अनुभव करता है. पर ड्राइव करने वाले के लिये यह खतेरे कि स्थति हो सकती है क्योंकी उसके तुरंत बाद मस्तिक डेल्टा स्थति में जाने के लिये तैयार रहता है. जो एक निद्रा की स्थति बनकर अनेक बार एक्सीडेंट का कारण बन जाती है. अब ड्राइवर एसे उपाय कर सकते है जिससे अपने को थीटा स्थति में जाने से रोक सके. अब तक ड्राइवर ठंडे पानी के छींटे आंखो पर मार कर, चाय और सिगरेट पीकर अपने को उस स्थति में जाने से रोकते थे. अब उससे बेहतर उपाय खोज लिये गये है.

एसे बहुत सारे रासायनिक और भौतिक उपाय है जिनसे इन तंरगों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. चरस और गांजा का सेवन कर अकसर लोग गहरी थीटा स्थति में सपनों की दुनिया में पहुच जाते है. उसी तरह शराब का सेवन उन्हे एल्फा या थीटा स्थति में ले जाता है जहां वो आराम का अनुभव करते है. पर इन ड्र्ग्स के खतरनाक दुष्परिणाम इनके उपयोग को बेहद सिमित कर देते है.

लय और रिदिम पर आधारित विधिया ध्यान और रिलेक्शेश्न के लिये खोजी या विकिसित की गई. जो सदियों से लोग इस्तेमाल कर रहे है. जेसे झूमना, झूलना, ड्रमबीट्स पर नाचना या थिरकना, या फिर बस सुनना, सूफीयाना स्टाइल में गोल गोल घूमना. बेली, कथक. मदिंर या गिरजाघर में बजते घंटे घंटीयां की आवाज. ताली पीटते और गरदन दांये बांये घुमाते हुये ध्यान और आराम का अनुभव करना. शास्त्रीय संगीत भी हमे इसी कारण एक आत्म शांति का अनुभव कराता है.

एक छोटा सा प्रयोग करके देखे. आंखो को बंद करे और शरीर को डीला छोडते हुये गरदन को दांये और बांये अपनी आराम सुविधा के अनुसार जितनी दूर ले जा सकते है ले जाते हुये एक लय में झूमते हुये कुछ देर तक हिलाना शुरू कर दे. आवृति 50 से 80 प्रति मिनिट और उसके बाद महसूस करे कि केसा लगा. पर ध्यान रहे जिन्हे गरदन दर्द रहता हो या फिर अगर ऐसा करने से चक्कर आते हो तो ना करे.

एक और प्रयोग करके देखे. हाथों को दांये बांये पूरा फेलाते हुये आंखे बंद कर तेजी से घूमना शुरू करते हुये कम से कम 10 चक्कर पूरा करे. अब यही आंखे खोल कर करके देखे. कोन सा असान था और क्यों. अच्छा इस बार घूमते हुये आंखे बंद कर किसी आसान से गण्ति के जोड को करके देखे देखे जेसे 79+13+37=?...देखा चक्कर आने लगा ना....यही इसकी खूबी है. आप इस तरह घूमते हुये चाहते हुये भी कुछ सोच नहीं सकते क्योंकी सोचते है आपका संतुलन बिगड जायेगा. इसी सिद्धांत को इस्तेमाल करते हुये एक सूफी फकीर घंटो ऐसा करते हुये गहरे ध्यान में उतर सकता है.

कुछ बोडी मूवमेंट्स की विधियों का ग्राफिक विवरण दिया गया है. ज्यादातर से आप प्रचलित होंगे. ये सब विधियां रिलेक्स, या फिर ध्यान में लिये इस्तेमाल की जाती है. इसमे कुछ को जरूर करके देखे और उसका प्रभाव देखें

बाजार मे न्यूरल बीट और ब्रेन बेव पर आधारित ओडीयो उपल्बध है जिसे उसके प्रकार के अनुसार मस्तिक तंरगों को उत्तेजित करने के लिये किया जाता है जिन्हे सुनकर आसानी से आप रिलेक्स, फोकस, और क्रीयेटिव, या ध्यान का अनुभव कर सकते है. नींद ना आ रही हो तो इसे सुनकर गहरी नींद के लिये मन को तैयार कर सकते है. अगर गहरी नींद और थकान हो रही है और जागना या सजग रहना जरूरी है तो यह आपको सजग और उत्तेजित रखेगी.

रात को बिस्तर पर लेटने से पहले किताब पढ़ना अच्छा लगता था पर इधर कुछ महिनों से एसा करते ही पलके नींद से भारी हो जाती और 2 से 3 पेज भी पढ़ना मेरे लिये असंभव सा हो जाता. जब मेंने सजग रहने में मदद करने वाला ब्रेन बेव पर आधारित ओडीयो अपने आइ पोड से हेड फोन लगाकर सुनते हुये किताब पढना शुरू की तो आशचर्य जनक परिणाम मिले और आसानी से मेंने जब तक चाहा किताब पढता रहा. वो भी बिना किसी थकान और नींद का अनुभव किये. उसके बाद नींद लाने वाला ओडियो लगाया और कब नींद ने आ घेरा मुझे पता ही नहीं चला. आज कल रिलेक्स होने के लिये या फिर सपने देखने के लिये अकसर इसे इस्तेमाल करता हू.

यह शुरू शरू में सुनते समय अरूचिकर और अनचाहे शोर जेसा प्रतीत होंगी आप उस पर ध्यान ना दे और उसे अपना काम करने दे और आप अपना काम करते रहे. अगर आप सहन नहीं कर पा रहे है तो उसका वोल्यूम को कम करके देखें. अच्छा हो उसका वोल्यूम आप कम से कम इतना तो रखे जितना आप अकसर पोप संगीत सुनते समय रखते है. कुछ समय बाद इनसे डीस्टर्ब हुये बिना काम करने की आदत सी बन जायेगी वेसे  ही जेसे  बस की खड, खड भड भड की आवाज आपको गहरी नींद में सुला देती है.. और अगर हजार कोशिश के बाद भी ऐसा ना हो तो साफ है की यह विधि आप के लिये नहीं है. :)
याद रहे इन्हे हेड्फोन लगाकर सुना जाता है. क्योंकी यह न्यूरल बीट्स पर अधारित होते है. दांयॉ और बांई ध्वनी मस्तिक के अदंर पहुचकर कम आवृति की बीट्स बनाती है जो चाही गई मस्तिक तंरगों को उत्पन्न करने मे मदद गार होती है.

फ्री mp3 ओडीयो ब्रेन बेव सेम्पल के लिए आप मुझे vichar2000@gmail.com  पर मेल कर सकते है.