Saturday, December 25, 2010

छोटे महादेव से चिड़ी खो नरसिंहगढ़ में ट्रेकिंग संपन्न ।


19 दिसंबर 2010 को यूथ होस्टल्स एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया बी.एच.ई.एल.इकाई भोपाल, द्वारा संस्था सदस्यों हेतु एक दिवसीय ट्रेकिंग कार्यक्रम का आयोजन भोपाल शहर से 80 कि.मी.दूर स्थित "छोटे महादेव से चिड़ी खो " "वन अभ्‍यावरण परिक्षेत्र," नरसिंहगढ़ जिला: राजगढ़ (म प्र) में किया। जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के 67 सदस्य सम्मिलित हुए । सबसे कम उम्र 6 वर्ष के मास्‍टर अदनान नक्‍वी ने भी ट्रेकिंग को सफलता पूर्वक पूर्ण किया ।
सदस्यों ने " नरसिंहगढ़ से लगे "वन अभ्‍यावरण परिक्षेत्र," में मुख्य सड़क से 01किलोमीटर अंदर "छोटे महादेव ‘’ से अपनी ट्रेकिंग प्रारंभ की जो घने जंगलों के बीच से ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों पर तथा 80 से 90 फिट ऊचाई वाले पहाड़ो पर से नीचे उतरने के बाद चिड़ी खो वन विभाग के विश्रामगृह तालाब के किनारे 10 किलोमीटर कि दूरी तय कर पहुँचे ।
चिड़ी खो में भोजन के पश्चात अपने मनोरंजन हेतु छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम किया इसके बाद सभी सदस्‍यों को बस द्धारा माता मन्दिर, करोटिया गुफा, शैल चित्र कोटरा अभ्‍यावरण से 9 किलोमीटर दूर लेकर गये जहॉ पर सदस्‍यों को 100 फिट ऊँची पहाड़ि पर स्थित ऐसी गुफा, में निकाला गया जिसमें कोई भी व्‍यक्ति सीघे खड़े होकर तो निकल नही सकता । इसके बाद हमारे साथ उपस्थित संस्था सदस्यों को श्री अलकेश वैद्य , संस्था सचिव ने भारत सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के खेल एवं युवक कल्याण विभाग द्वारा चलाए जा रहे यूथ होस्टल्स में ठहरने के विषय में सदस्यों को संपूर्ण जानकारी दी
इस ट्रेकिंग का मुख्य उद्देश्य सदस्यों को साहसिक कार्यक्रमों से परिचित कराना, कि इससे हमारे जीवन में क्या लाभ है तथा प्राकृति, वन संपदा, वहाँ के खुले प्रदूषण मुक्त वातावरण में जाकर पैदल घूमना एवं एवं राष्ट्रीय एकता की भावना जागृत करना इसके साथ ही संस्था द्वारा प्रत्येक माह में एक दिवसीय ट्रेकिंग के कार्यक्रम को आयोजित करने एक कारण यह भी है कि सदस्यों को अपनी दैनिक दिनचर्या से हठ कर नये वातवरण में जा कर यह पता चल सके कि हम अपने आप में कितने शरिरीक रूप से कितने स्वस्थ है।
अंत में संस्था के कार्यकारिणी सदस्यों श्री आर0 इक्का ने ट्रेकिंग सफलता पूर्वक पूर्ण करने हेतु बधाई दी । तथा ट्रेकिंग कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस एक दिवसीय ट्रेकिंग कार्यक्रम का संचालन एस0 ए0 ए0 नक्वी, श्री आर इक्का एवं श्री आर0 पी0 सिहं संस्था कार्यकारिणी सदस्यों ने श्री अकलेश वैद्य, सचिव के मार्ग दर्शन तथा "वन अभ्‍यावरण परिक्षेत्र," नरसिंहगढ़ जिला: राजगढ़ के वन मण्‍डलाधिकारी श्रीवर्मा जी कि अनुमति से रेंजर श्री दिलीप कुमार पुरीया, वन रक्षक श्री कुशवाह एवं श्री गुर्जर के सहयोग से संपन्न कराया। जिसके लिए संस्था आभार व्यक्त करती है





Sunday, October 17, 2010

BHEL Bhopal unit of YHAI organises Narad Gufa Trek




Bhopal, January 17, 2010

The Youth Hostels of India BHEL unit organised a daylong trekking for its members. The 67-member team trekked from Patni Village of Bari (Raisen district) to the natural caves, ‘Narad Gufa’. The purpose of the trekking was to get adventurous spirit to the members.
After reaching the entrance of the cave the members entered into it one by one. Inside the cave it was full darkness and with the help of big torches they moved in groups for about 450 meters. The team felt that there was no shortage of oxygen in the cave and apart from bats no other living creature was found inside it. They were surprised as to how the Sadhus lived and offered pooja and prayer in the darkness of the cave. They could see proofs of the Sadhu’s life and pooja like ‘havan kund’, trident, pictures of gods etc inside the cave.
Inside the cave there were several paths to caves on all sides and these caves had no end. Still members of the team explored most of the caves to some extend and returned safely. The team included children of five years to men of 65 years. Some residents of Patni Village helped the team in the trekking.

Sunday, October 10, 2010

एरियेटेड शावर

नहाने के समय 90% पानी बरबाद हो जाता है. यह हमारे शरीर को छू भी नहीं पाता. यह बिना छुये ही बेकार चला जाता है. अब एसी तकनीक बजार में उपलब्ध है जो इस बरबादी तो काफी हद तक कम कर सकती है. इस तकनीक का नाम है एरीयेटेड शावर. एरीयेटेड वाटर शावर का मतलब हवा और पानी मिश्रित शावर.
इस शावर से पानी के छोटे छोटे बुल्बुले बनते है जिनमे हवा भरी होती है. इनकी बूंदे शरीर पर पडते ही फूट कर बिखर जीती है. हवा इअनकी तेज रफ्तार बनाये रखने मे मदद करती है. और एक बएहतर मसाज का मजा देता है. यह थोडे मंहगे जरूर हो सकते है. पर इनके द्वारा बचाये पानी से इनकी कीमत कुछ ही महिनों मे  बसूल हो जाती है. एक बार शावर से नहाने में हम 80 से 90 लीटर पानी खर्च करते है. बाल्टी मग से नहाने पर भी यह 25 से 30 लीटर हो सकता है. वही काम यह 10 से 15 लीटर मे कर सकता है.
देखा जाये तो नहाने के समय पानी हमारे शरीर से उष्मा का स्थानंतरण करता है, यह त्वचा से चिपके पदार्थों को बहाकर सफाई मे मदाद करता है... हमारी त्वाचा के को यह अच्छा लगता है. हो सकता है यह कुछ लोगों को खराब भी लगता हो :-D
इसको लगाने के बाद इसका पानी बचाने की क्षमता की परख जरूर कर लें. इसके लिये आपको एक नार्मल शावर से एक बालटी पानी भरने मे लगने वाले समय की तुलना इस शावर से लगने वाले समय से करनी होगी.
ओसतन एक शहरी परिवार 250 से 300 लीटर पानी का इस्तेमाल वो नहाने धोने के लिये करता है. खास ब्बत यह की हमारे शहरों मे पीने के पानी और toilet  मे इस्तेमाल होनेवाला पानी एक ही होता है.  इसलिये हमारे द्वरा बचाइ गई एक एक बूंद किसी की प्यास बुझाने का कारण बन सकती है.
 

Thursday, June 24, 2010

striling walking beam working engine


This is a set of plans for a Stirling “hot” air engine. It incorporates a “walking beam” to transfer mechanical actions from one part of the engine to the other. The walking beam is on the upper half of the engine and looks like an old weight scales. Walking beams were quite common on early steam engine of the 1800’s. In this research, a gamma-type, low-temperature differential (LTD) solar Stirling engine. Click the link and make a working model

Sunday, June 13, 2010

हरित शौचालयः ईको फ्रैंडली टॉयलेट

आजकल सामान्य तौर पर उपयोग किये जाने वाले आधुनिक शौचालय (फ़्लश वाले शौचालय) का आविष्कार हुए सम्भवतः सौ वर्ष हो चुके हैं, हालांकि इस बात पर मतभेद हो सकते हैं, क्योंकि यह पता नहीं है कि फ़्लश शौचालय का आविष्कार असल में किसने और कब किया होगा। बहरहाल, करोड़ों लोगों के लिये जिन्हें रोजमर्रा के जीवन में यह फ़्लश शौचालय की सुविधा आसानी से हासिल है, और करोड़ों ऐसे भी लोग, जिन्हें यह आधुनिक सुविधा हासिल नहीं है, उन सभी के लिये एक मिनट रुककर सोचने का अवसर है कि लाखों टन प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले “मानवजनित अपशिष्ट” के भविष्य के बारे में चिंता की जाए। क्या फ़्लश शौचालय उपयुक्त है? खासकर उस स्थिति में जबकि हमें यह पता हो कि थोड़े से अपशिष्ट को भी ठिकाने लगाने और हमारी आँखों और दिमाग से दूर हटाने के लिये बड़ी मात्रा में पानी लगाना पड़ता है।इसका उत्तर अलग-अलग हो सकता है। सच तो यही है कि भले ही फ़्लश शौचालयों ने हमें एक अद्वितीय सुविधा प्रदान की है, लेकिन पिछली शताब्दी में ये शौचालय, पर्यावरण स्वच्छता और आर्थिक बोझ के रूप में एक बुरा सपना ही साबित हुए हैं। इस मानव अपशिष्ट को उपचार संयंत्रों तक ले जाने वाली, पानीदार विशालकाय संरचनायें एक तरफ़ जहाँ निर्माण में बर्बादी की कगार तक महंगी हैं वहीं दूसरी ओर उनका रखरखाव भी बहुत खर्चीला है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अमेरिका और यूरोप के पुराने सीवेज पाइप लाइनों को अगर दुरुस्त करना हो अथवा बदलना हो तो तत्काल लाखों डालरों की आवश्यकता होगी। कोई नहीं जानता कि इतना पैसा कहाँ से और कैसे आयेगा? इससे भी बदतर स्थिति यह है कि अचानक आये हुए तूफ़ानों और बाढ़ के चलते सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट (मलजल उपचार संयंत्र) पानी की अधिकता के कारण काम करना बन्द कर देते हैं, उस स्थिति में मलजल को बिना उपचार के नदियों अथवा समुद्र में ऐसे ही छोड़ने के अलावा कोई और रास्ता शेष नहीं होता। इस बारे में भारत में मौजूद व्यवस्था के बारे में कहना बेकार ही है। बिना उपचारित किया हुए मलजल का प्रदूषण, ज़मीन और भूमिगत जल पर कितना गहरा असर डालता है? न सिर्फ़ यह मलजल हमारे कुँओं, बावड़ियों, नहरों और नदियों के पानी को नाइट्रेट और पैथोजन्स से प्रदूषित करता है, वरन जब यह समुद्र में पहुँचता है तब समुद्री जल-जीवन और मूंगा की चट्टानों को घातक रूप से प्रभावित करता है। सब जानते हैं कि दिल्ली के नज़दीक से बहने वाली पवित्र यमुना नदी को हमने कैसे एक “राष्ट्रीय नाला” बनाकर रख दिया है। विडम्बना यह है कि जिसे हम “अपशिष्ट” या बेकार समझकर दूर-दूर नदियों और समुद्रों में छोड़ देते हैं, बहा आते हैं, वैज्ञानिक शोधों द्वारा अब यह साबित हो चुका है कि असल में वह अपशिष्ट मिट्टी और ज़मीन के स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिये उपयोगी मित्र साबित हो सकता है। क्या अब हम पुराने “चेम्बर पॉट” सिस्टम पर लौट सकते हैं? क्या शहरी जनता की “सुविधा” को तकलीफ़ में न बदलते हुए भी इस दिशा में कुछ किया जा सकता है? आर्थिक योजनाकारों, नीतिनियंताओं और यहाँ तक कि बड़े-बड़े पर्यावरणविदों के लिये भी जनता को इस बारे में समझाना मुश्किल है, खासकर शहरी जनता को, कि अब वे लोग फ़्लश टायलेट का उपयोग बन्द करके पुराने तरीके पर लौटें।चाहे तरल हो या ठोस रूप में, मानव अपशिष्ट के द्वारा एक उत्तम किस्म का उर्वरक बनाया जा सकता है, इसी प्रकार मानव मूत्र जिसे वैज्ञानिक सभ्य भाषा में ALW अर्थात “एंथ्रोपोजेनिक लिक्विड वेस्ट” कहा जाता है, वह भी अपने एंटीबैक्टीरियल गुणों के लिये जाना जाता है। बजाय इसके कि इस बेहतरीन उर्वरक का उपयोग मानव प्रजाति की खाद्य सुरक्षा में किया जाये, हमने करोड़ों डालर कृत्रिम उर्वरक बनाने के कारखानों में लगा दिये हैं, ऐसे उर्वरक जो प्रकृति ने पहले से ही मानव शरीर द्वारा निर्मित करके दिये हैं। ज़ाहिर है कि हमें इस समस्या को नये सिरे से देखने की आवश्यकता है, क्या अब हम पुराने “चेम्बर पॉट” सिस्टम पर लौट सकते हैं? क्या शहरी जनता की “सुविधा” को तकलीफ़ में न बदलते हुए भी इस दिशा में कुछ किया जा सकता है? आर्थिक योजनाकारों, नीतिनियंताओं और यहाँ तक कि बड़े-बड़े पर्यावरणविदों के लिये भी जनता को इस बारे में समझाना मुश्किल है, खासकर शहरी जनता को, कि अब वे लोग फ़्लश टायलेट का उपयोग बन्द करके पुराने तरीके पर लौटें। सो अब जबकि राष्ट्र एक नई शताब्दी में प्रवेश कर चुका है, सुरक्षित रूप से कचरा निपटान नहीं करने के कारण, सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्याओं पर पकड़ बनाने और स्वच्छता अभियान के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये हमें आर्थिक रूप से सक्षम और पर्यावरण की दृष्टि से स्थाई व्यवस्था का निर्माण करना होगा। सच का सामना करना ही होगा कि दुनिया की लगभग ढाई अरब से भी अधिक उस आबादी के लिये, जिसे उचित सेनिटेशन और पानी मुहैया नहीं है, हमें भी एक पहल करनी होगा, हमें समझना होगा कि इस समस्या को हल्के से नहीं लेना चाहिये। विकल्प मौजूद हैं, बस उन पर काम करने की आवश्यकता है। “प्राकृतिक स्वच्छता” एक प्रकार का विशिष्ट प्रतिमान है जो अपशिष्ट को एक संसाधन में बदल सकता है। अधिक विस्तार में न जाते हुए सिर्फ़ यह जानें कि “ईको-सैन” पद्धति में पानी के उपयोग के बिना ही अपशिष्ट को उसके मूल स्रोत पर ही ठोस और तरल रूप में अलग-अलग कर दिया जाता है, और फ़िर उस अपशिष्ट को उपयोग करने लायक खाद में बदला जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस “ईको-सैन” कार्ययोजना को लागू करने और उसे लोकप्रिय करने में हमारी संस्था “अर्घ्यम” में हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। इसी के साथ हम विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों को इस सिलसिले में शोध और ट्रेनिंग देने के लिए भी कह रहे हैं। हमारा ल्ष्यृ सामान्य तौर पर ऐसे छोटे किसान हैं जिनके पास पारम्परिक शौचालय नहीं हैं और उन्हें महंगे उर्वरक खरीदने में भी कठिनाई होती है। केले की खेती पर ALW के उत्तम उपयोग के प्रभाव को देखने के लिये आपको खुद ही देखना होगा तभी आप इस पर विश्वास करेंगे। एक किसान को आसानी से एक बार में ही इस “ईको-सैन” तकनीक के बारे में समझाया जा सकता है जो उसके उर्वरकों पर खर्च के हजारों रुपये तो बचायेगा ही साथ ही उसकी मिट्टी के उपजाऊपन को भी बरकरार रखेगा। यदि यह इतना ही आसान और प्रभावशाली हल है तो फ़िर क्यों नहीं यह तेजी से पूरे देश में लागू किया जा सकता, बल्कि समूचे विश्व में भी? लेकिन इस राह में कई चुनौतियाँ हैं, जैसे जागरूकता, अच्छी डिजाइन, सरकार की नीतियाँ, आर्थिक और अन्य प्रोत्साहनों के साथ-साथ भारत जैसे देश में संस्कृति और जात-पात से भी जूझना पड़ेगा। “ईको-सैन” छोटे ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता प्रबन्धन का समाधान प्रस्तुत करने में सक्षम है। हालांकि इनमें से कोई भी पूर्ण नहीं है, लेकिन हमें नई “ग्रीन अर्थव्यवस्था” बनाने हेतु विजेताओं की आवश्यकता है। ऐसे विजेता जो लगातार और आशावादी तरीके से आज के मार्केट आधारित सिस्टम पर खरे उतर सकें, लोगों को समझा सकें कि पर्यावरण बदलाव क्या है और हमें लम्बे समय तक टिकाऊ स्वच्छता पाने के लिये क्या-क्या करना चाहिये। “इन्द्रधनुषी सपनों का पीछा करने वालों को निश्चित रूप से अन्त में सोना हाथ लगता है। “ 

Friday, June 11, 2010

idea-2 school project: wind turbine model


wind turbine model :
This wind turbine model makes its electricity with a simple generator which produces pulses of current, or
alternating current. It does so by passing strong magnets over coils of fine wire. Each time a magnet passes
over a coil, the coil becomes energized with electricity. With 4 coils connected together in series, the result is a
quadrupling of the voltage.
This is the simplest and possibly most efficient way to generate electricity, and is the same basic principle used
in almost all wind turbines, even the large scale commercial ones. The electricity from a wind turbine varies with the wind speed, so to make practical use of it, you must be able to store it in batteries, or change it into a form that gives a stable, constant voltage. Usually, electricity from wind turbines is converted from alternating current to direct current, which can be used for battery charging.
click the link below to down load pdf file

idea-1 Archimedes' Screw pump


Archimedes' Screw pump While in Alexandria, he invented a device now known as Archimedes' screw . It was first used to pump water out of ships and was later used in irrigation. This type of water pump is still used in many parts of the world today. Its very simple project model for viii and ix. A long, helical pipe if tilted 45 degrees and the lower end is inserted in water then Rotating the pipe moves water up to and out the top.

ग्लोबल वार्मिंग की रोकने की तरफ छोटे से ही सही पर अपने कदम जरूर बढायें

ग्लोबल वार्मिंग धरती गर्म हो रही हे गलेशियर पिघल रहे दुनिया भर मे मौसम दोस्ताना ना रहा सर्दी मे अधिक सर्दी गरमी मे अधिक गर्मी बरसात मे बाढ के नजारे है। धूल उडाती धरती …तेजी से खत्म होते जंगल। हजारों तरीके हे हमारे पास जिनसे अभी भी हम इस सब को कुछ हद तक काबू मे ला सकते हे। हम आसान और छोटे और आसान से दिखने वाले तरीकों से अपनी शरुआत कर सकते है।
  1. हम बेकार पडे कार्टून से सोलर कूकर बना सकते हे। जो सस्ता हे पर बड़ा ही करामती हे।
  2. बेकार पडे रद्दी न्यूज पैपर को हम छत पर बिछाकर छत को सूरज की सीधी तीखी गर्मी से बचा सकते हे। आप को तापमान में अतंर साफ दिखाइ देने लगेगा। यह एसी के बिल मे भी कटौती करेगा।
  3.  बायो डीग्रेडेबल साबुन और डीटर्जेंट बाजार मे आसानी से उपलब्ध । इसलिये इनका इस्तेमाल कर बाथरूम के पानी को नाली में बेकार जाने की जगह उसे किचन गार्डन और बगीचों और गमलों में डालें।
  4. बाथरूम मे एरीयेटेड शावर और नलों का इस्तेमाल से पानी की खपत में 15 से 20% की कटौती की जा सकती हे
  5. सी एफ एल के कम उर्जा वाले बल्बों का इस्तेमाल।
  6. घरों कि डिजाइन में मौसम और आसपास के भूगोल का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये। जिससे  हवा का बहाव धूप कि दिशा घर के वातावरण को प्राकृतिक तरीके से अनकूल रख सके।
  7. एसे ही अनगिनीत उपाय हे जिन्हे माइन्ड मेप से समझा जा सकता हे कुछ मेप नीचे दे रहे है…हो सकता हे आपके दिमाग की बत्ती भी जल जाये। अगर कुछ भी दिमाग में आये तो इस ब्लोग पर शेयर कर सकते हे।